देवेन्द्र कुमार नयन
भारत रत्न केवल एक अलंकरण या सम्मान नहीं है, यह उस व्यक्तित्व की स्वीकृति है जिसने अपने जीवन से राष्ट्र की दिशा और दशा को बदलने का प्रयास किया हो। जब झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और आदिवासी समाज के जननायक शिबू सोरेन के नाम पर भारत रत्न देने की चर्चा होती है, तो यह बहस एक व्यक्ति तक सीमित नहीं रहती। यह बहस उन करोड़ों आदिवासियों की भी है जिनकी पहचान, जिनकी अस्मिता और जिनकी लड़ाई सदियों से चली आ रही है। शिबू सोरेन का जीवन इसी संघर्ष और इसी जद्दोजहद का प्रतीक है।
दिशोम गुरु के नाम से विख्यात शिबू सोरेन का जीवन असाधारण संघर्ष और सामाजिक चेतना का प्रतीक है। 11 जनवरी 1944 को हजारीबाग जिले (वर्तमान रामगढ़) के नेमरा गाँव में जन्मे शिबू सोरेन का बचपन बेहद कठिन परिस्थितियों में बीता। उनके पिता की हत्या जमींदारों और माफियाओं ने कर दी थी। उस घटना ने एक बालक के मन में अन्याय के खिलाफ आग जलाई और वही आगे चलकर उन्हें समाज का नेता बना गई। जल, जंगल और ज़मीन पर आदिवासियों का अधिकार हो, यह उनका पहला और अंतिम सपना रहा। इसी सपने ने उन्हें आंदोलनकारी बनाया जिनसे लोग उन्हें गुरुजी और दिशोम गुरु कहने लगे। दिशोम एक संथाली शब्द है, जिसका अर्थ होता है, “देश या समाज” और गुरु का अर्थ होता है, “मार्गदर्शक”। यानी दिशोम गुरु का अर्थ होता है, देश या समाज का मार्गदर्शक। सचमुच वे आदिवासी समाज के मार्गदर्शक ही नहीं, बल्कि उनकी चेतना के प्रतीक भी बन गए।
उनका संघर्ष केवल चुनाव जीतने या हारने तक सीमित नहीं था। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की और आदिवासी समाज को संगठित किया। उन दिनों आदिवासी आवाज़ें अक्सर दबा दी जाती थीं, लेकिन गुरुजी ने उन्हें संसद से लेकर सड़क तक गूंजाया। उन्होंने जल, जंगल और ज़मीन की लड़ाई को जनांदोलन का रूप दिया। जब 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य का गठन हुआ, तो यह केवल भौगोलिक नक्शे का बदलाव नहीं था, बल्कि यह आदिवासी अस्मिता का ऐतिहासिक क्षण था। उस क्षण के सूत्रधारों में सबसे बड़ा नाम शिबू सोरेन का था।
झारखंड बनने के बाद भी उनका संघर्ष रुका नहीं। वे चाहते थे कि राज्य के प्राकृतिक संसाधनों का लाभ यहां के लोगों को मिले। उन्होंने बार-बार यह बात कही कि अगर झारखंड की मिट्टी, कोयला और खनिज देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत कर सकते हैं, तो यहां का युवा बेरोज़गार क्यों रहे और यहां का किसान बदहाल क्यों हो। उनकी इसी सोच में हमेशा एक आम आदमी की पीड़ा झलकती थी। यही कारण है कि मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री जैसे ऊँचे पदों पर पहुँचने के बाद भी उनका आचरण बेहद सादा और सरल रहा। गांव-देहात के लोग आज भी उन्हें अपने जैसा मानते हैं।

अगर भारत रत्न की मांग की बात करें तो, भारत रत्न उन व्यक्तित्वों को दिया जाता है जिन्होंने राजनीति, समाज, साहित्य या विज्ञान के क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ी हो। अगर इसी कसौटी पर शिबू सोरेन को देखें, तो उनका योगदान किसी भी मायने में कम नहीं है। उन्होंने आदिवासी समाज को मुख्यधारा की राजनीति में पहचान दिलाई। उन्होंने उस समुदाय को यह भरोसा दिया कि उनकी आवाज़ दिल्ली तक पहुँच सकती है और वे भी भारत के भविष्य को दिशा दे सकते हैं। यह योगदान किसी एक राज्य या क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय स्तर पर लोकतंत्र को और समावेशी बनाने का प्रयास है।
यह सही है कि शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन विवादों से अछूता नहीं रहा है। उन पर आरोप लगे, मुकदमे चले और उन्हें कठिन समय का सामना करना पड़ा था। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि उनकी विरासत इन विवादों से कहीं बड़ी है। उनका असली मूल्यांकन इस बात से होना चाहिए कि उन्होंने अपने समाज को क्या दिया और देश की राजनीति को किस दिशा में मोड़ा। अगर केवल विवाद ही किसी की पहचान होते, तो भारत रत्न पाने वाले कई अन्य नेताओं को यह सम्मान कभी नहीं मिलता। इतिहास ने हमेशा यह माना है कि किसी व्यक्ति की सम्पूर्ण यात्रा उसके जीवन के छोटे-छोटे विवादों से कहीं बड़ी होती है।
शिबू सोरेन को भारत रत्न देने की मांग केवल झारखंड की मांग नहीं है। यह पूरे देश के आदिवासी समाज की आवाज़ है। यह सम्मान केवल एक व्यक्ति का नहीं होगा, बल्कि यह उस पूरे समुदाय का होगा जिसने सदियों तक शोषण और उपेक्षा झेली है। यह सम्मान उन्हें यह भरोसा देगा कि उनकी पहचान और उनकी संस्कृति को देश सर्वोच्च स्तर पर मान्यता देता है। जैसे कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर पिछड़ों और वंचितों की राजनीति को राष्ट्रीय मान्यता दी गई। उसी तरह शिबू सोरेन को भारत रत्न देना आदिवासी राजनीति और अस्मिता की राष्ट्रीय मान्यता होगी। यह केवल झारखंड की जीत नहीं होगी, बल्कि पूरे भारत की आत्मा को समृद्ध करने वाला कदम होगा।
आज झारखंड के गांव-गांव में यह चर्चा है कि क्या दिशोम गुरु को भारत रत्न मिलेगा? लोगों का मानना है कि अगर ऐसा हुआ तो यह केवल एक सम्मान नहीं होगा, बल्कि यह आदिवासी गौरव का पर्व होगा। यह उन युवाओं के लिए प्रेरणा होगी जो संघर्ष के रास्ते पर चल रहे हैं। यह उन किसानों के लिए सुकून होगा जो अपनी जमीन बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। और यह उन महिलाओं के लिए विश्वास होगा जो अपने बच्चों के भविष्य को बेहतर देखना चाहती हैं।
भारत रत्न तभी सार्थक होगा जब वह देश की विविधता और संघर्षशीलता को समाहित करे। शिबू सोरेन को यह सम्मान देना केवल झारखंड की जीत नहीं होगी, बल्कि यह पूरे भारत की आत्मा को समृद्ध करेगा। यह दिखाएगा कि हमारे नायक केवल महानगरों और सत्ता केंद्रों से नहीं, बल्कि गांवों और जंगलों से भी उठते हैं। शिबू सोरेन ने हमें यह सिखाया कि न्याय और समानता की लड़ाई कभी व्यर्थ नहीं जाती है। अगर उन्हें भारत रत्न दिया जाता है, तो यह न केवल इतिहास के साथ न्याय होगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सशक्त संदेश भी होगा कि भारत की आत्मा हर गांव, हर पहाड़ी और हर जंगल में बसती है, और वही आत्मा भारत रत्न कहलाने को हकदार है।
(लेखक पेशे से सिविल इंजीनियर हैं। यह उनके व्यक्तिगत विचार हैं)