नई दिल्ली
देश के मध्य हिस्से में झुलसाती गर्मी के सीजन के दौरान महुआ की अनदेखी करना मुश्किल है। इस तपते मौसम में हवा का हल्का सा झोंका इंद्रियों को शांत कर देता है। हवा में एक मीठी लेकिन भारी गंध घुलती चली आती है, जिससे संकेत मिलता है कि महुआ के पेड़ फूलों से सज गए हैं।
महुआ का नाम कानों में संगीत की तरह गूंजता और एक रोमांटिक एहसास पैदा कर देता है। हालांकि, वास्तविकता देखें तो इस फूल का जीवन से जुड़ाव बहुत ही नीरस नजर आता है। आदिवासी समाज में प्रेम और कविता की पंक्तियों को संवारने वाले इन फूलों से अलग महुआ का उपयोग व्यावहारिक जीवन में कहीं अधिक होता आया है।
आदिवासी बहुल गांवों में छोटे, रसीले और हल्के पीले फूलों को बड़ी सावधानी से लोग एकत्र करते हैं। महुआ के चरम मौसम के दौरान केवल घर के बड़े लोग ही काम पर नहीं जाते हैं। बच्चे और किशोर भी साल के ऊंचे-ऊंचे पेड़ों से घिरी सडक़ों पर फूलों को एकत्र कर अपने घर ले जाते हैं। चिलचिलाती गर्मी में लोग इन फूलों को चुनने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। मेहनत करें भी क्यों नहीं, यह आय का अच्छा साधन जो होता है। केंद्र सरकार की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित होने के कारण बाजार में इसकी अच्छी कीमत मिल जाती है।
गर्मियों के मौसम में बहारों सी सुगंध
दिल्ली और अन्य शहरों में जहां अमलतास एवं गुलाबी बोगनविलिया जैसे फूल पूरी तरह खिलकर गर्मी के मौसम के आगमन की घोषणा करते हैं, वहीं दूरदराज के क्षेत्रों खासकर आदिवासी इलाकों में वातावरण में फैली महुआ के फूलों की सुंगध चिलचिलाती धूप से अठखेलिया करती हुई इस मौसम का स्वागत करती प्रतीत होती है।


मार्च से मई तक मैदान पीले फूलों से ढके रहते हैं। फूल पत्तियों और टहनियों के बीच आधे छिपे रहते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि झाड़-फूस जलाए जाने के कारण उसी काली सतह पर फूल अपनी खुशबू बिखेरते हैं। ये फूल आसानी से एकत्र कर लिए जाते हैं, क्योंकि लोगों को फूल झाड़ियों में नहीं ढूंढने पड़ते। इससे उनके समय और मेहनत की बचत होती है। कभी-कभी फूलों को बटोरने के लिए जाल या साड़ियों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें पहले ही पेड़ों से बांध दिया जाता है। पेड़ से फूल झड़ते रहते हैं और इन जालों या साड़ियों में गिरते रहते हैं।
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में परिवार के परिवार विशाल महुआ के पेड़ों के नीचे गिरे हुए बेशकीमती फूलों को समेटते हैं। संग्रह का यह काम सुबह से ही शुरू हो जाता है और दोपहर तक चलता रहता है। जब लोग थक जाते हैं तो इन्हीं महुआ के पेड़ों की छाया तले बैठ कर भोजन और फिर आराम करते हैं। तमाम महिलाएं भी फूल एकत्र करने में अपने घर के मर्दों का साथ देती हैं। यहां पेड़ों की छांव तले बिछे पतले से कपड़े पर बच्चों का सोना और पास ही माताओं का फूल चुनना आम बात होती है।
किसानों के लिए धान की बुवाई और कटाई की तरह ही यह भी बेहद व्यस्त सीजन होता है। जब ये रसीले फूल संग्रह कर लिए जाते हैं तो इनमें से कुछ को स्थानीय बाजारों में बेच दिया जाता है। इन फूलों से किसानों को अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है।
शुरुआत में ताजे फूल तो जल्दी सूख जाते हैं। लेकिन सीजन के दौरान जब फूलों की मात्रा बहुत अधिक होती है तो इन्हें कई दिनों तक धूप में तब तक सुखाया जाता है जब तक कि उनका रंग न बदल जाए। इसके बाद उन्हें इकट्ठा किया जाता है। सूखे फूल 30 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बाजार में आसानी से बिक जाते हैं। भूरे रंग के सूखे महुआ का उपयोग पूरे साल शराब बनाने के लिए किया जाता है, जिसे आदिवासी इलाकों में मांड भी कहा जाता है। जैसे अन्य जगहों पर मेहमानों को चाय और कॉफी परोसी जाती है, ठीक उसी तरह बस्तर में अपने अतिथियों का स्वागत महुआ शराब परोसकर करने का पुराना रिवाज है।
सांस्कृतिक जुड़ाव
छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और झारखंड में महत्वपूर्ण लघु वन उपज महुआ न केवल आदिवासियों के लिए आजीविका का स्रोत है, बल्कि उनकी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा भी है।
आदिवासी बाजार सूखे महुआ के फूलों से पटे रहते हैं, जिससे यहां इनके महत्व पता चलता है। जब ये फूल सूख जाते हैं तो इनकी बिक्री का नंबर आता है। व्यापारी जमीन पर बैठकर ग्राहकों का इंतजार करते हैं। बाजार में ढेर-ढेर रखे ये फूल कुछ-कुछ किशमिश की तरह दिखते हैं। सूखे महुआ के फूल पूरे साल बाजारों में देखे जा सकते हैं। वैसे लोग इन्हें इसी रूप में खा भी सकते हैं।

गुलाब और लिली जैसे फूलों का अपना महत्व होता है लेकिन एक बार सूखने के बाद वे कूड़े के डिब्बे में ही पहुंच जाते हैं। ऑर्किड लंबे समय तक चल सकते हैं, लेकिन अंत में उनका हश्र भी गुलाब और लिली की तरह ही होता है। इसके उलट महुआ का फूल सूखने के बाद और भी कीमती हो जाता है और बोतलों में एक मादक पेय के रूप में नया रूप ले लेता है। महुआ शराब का आनंद पूरे साल लिया जाता है। शादी-समारोह हो या अन्य पार्टी हर जगह मेहमानों के स्वागत में यह शराब पेश की जाती है। महुआ की कहानी बहुत लंबी है। इसका संबंध दिल को छू लेने वाला और चिरस्थायी है… और यह सिलसिला जारी है।