चेन्नई
तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई जिले में जवाधु पहाड़ियों के पास स्थित पुलियूर गांव की रहने वाली वी. श्रीपति ने सिविल जज बनकर मिसाल कायम की है। यह उपलब्धि हासिल करने वाली वह अपने समुदाय की पहली महिला हैं। वैसे, उन्हें इतना बड़ा पद यूं ही नहीं मिल गया। धैर्य, जिजीविषा और दृढ़ संकल्प से वह इस मुकाम तक पहुंची हैं। उनके दृढ़ संकल्प का अंदाजा इसी लग जाता है कि पिछले साल नवंबर में जज की परीक्षा देने के लिए वह मां बनने के केवल दो दिन बाद ही अपने गांव से 200 किलोमीटर से अधिक की यात्रा कर चेन्नई पहुंचीं।
मलयाली आदिवासी किसान एस. कलियाप्पन और के. मल्लिगा जो घरेलू काम कर अपने पांच लोगों के परिवार का भरण-पोषण करने में मदद करती हैं, की सबसे बड़ी संतान श्रीपति ने ठान रखा था कि उन्हें जज ही बनना है। तमिलनाडु मीडिया के हवाले से उन्होंने कहा, ‘अपने समुदाय के लोगों को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए उन्होंने डॉ. आंबेडकर गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री हासिल की, क्योंकि लोग अपने कानूनी अधिकारों के बारे में बिल्कुल नहीं जानते हैं।’
अथनावूर गांव में सेंट चार्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल की छात्रा श्रीपति शुरू से ही पढ़ाई में अच्छी थीं। उनके स्कूल के प्रिंसिपल ने कहा, ‘उन्होंने अपनी स्कूल की परीक्षा में 75 फीसदी से अधिक अंक हासिल किए। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद भी वह स्कूल आ जाया करती थीं और बच्चों से अनुभव और विचार साझा करती थीं।’
एम्बुलेंस ड्राइवर एस वेंकटेशन से उनकी शादी कर दी गई, इसके बावजूद वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के दृढ़ संकल्प से पीछे नहीं हटीं।
उस समय उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा जब उन्हें पता चला कि उन्होंने तमिलनाडु लोक सेवा आयोग (टीएनपीएससी) की ओर से आयोजित परीक्षा पास कर ली है। उन्होंने अपने सपने को साकार होते महसूस किया। चेन्नई में टीएनपीएससी कार्यालय के बाहर अपनी बच्ची को गोद में लिए हुए उनकी तस्वीर वायरल हो गई।
तमिलनाडु के पहाड़ी इलाके से आने वाली एक आदिवासी महिला के जज बनने पर मुख्यमंत्री एमके स्टालिन भी तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाए और उनकी उपलब्धि की खूब सराहना की। स्टालिन ने एक्स पर कहा, ‘मुझे यह जानकर बेहद खुशी है कि एक पहाड़ी गांव के आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली युवा महिला ने बिना अधिक सुख-सुविधाओं के जज बनने जैसा मुकाम हासिल किया। मुझे गर्व है और मैं उनकी मां और पति को उनके अटूट समर्थन के लिए बधाई देता हूं। तमिलनाडु में ऐसे लोगों के लिए जो सामाजिक न्याय शब्द का सही तरीके से उच्चारण भी नहीं कर सकते, वहां से श्रीपति जैसे लोगों की सफलता तमिलनाडु के लिए बहुत मायने रखती है।’
मुख्यमंत्री स्टालिन ने यह भी कहा कि वर्ष 2021 में सरकारी आदेश (जी.ओ.) ने तमिल माध्यम के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों, पहली पीढ़ी के स्नातकों और उन युवाओं के लिए रोजगार की व्यवस्था करने को प्राथमिकता दी, जिन्होंने कोविड-v~ के कारण अपने माता-पिता दोनों को खो दिया था। इसी द्रविड़ मॉडल के तहत श्रीपति को यह उपलब्धि हासिल करने में मदद मिली।
राज्य के खेल मंत्री और द्रमुक की युवा शाखा के अध्यक्ष उदयनिधि स्टालिन ने कहा, ‘श्रीपति की परीक्षा उनके बच्चे के जन्म के ठीक दो दिन बाद ही थी। अपनी जान जोखिम में डालकर श्रीपति परीक्षा में शामिल हुईं। क्योंकि इसके लिए उन्होंने अपने गांव से w®® किलोमीटर चेन्नई तक का सफर किया। यह उनके दृढ़ संकल्प को दर्शाता है, जो बहुत ही सराहनीय है।’