भुवनेश्वर।
ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर शहर आज अपने ऊपर गर्व कर सकता है कि उसके पास ओडिशा कार्टूनिस्ट अकादमी (ओसीए) है। इसका श्रेय प्रसिद्ध आदिवासी कलाकार और कार्टूनिस्ट सुनारामा को जाता है। पिछले साल ओडिशा के प्रसिद्ध कलाकार और कार्टूनिस्ट किशोर रथ की मृत्यु के बाद ओसीए की औपचारिक स्थापना हुई।
हुआ यह कि आदिवासी कलाकार और कार्टूनिस्ट सुनारामा सिंह अपने 16 दोस्तों और उनके जैसे अन्य चाहने वालों के साथ रथ के भुवनेश्वर के इडको टॉवर के पीछे स्थित निवास पर एकत्र हुए। यहां उन्होंने दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि देने के लिए इस आवास के अहाते में ही स्वर्गीय रथ के कार्टून बनाए।
वर्ष 2018 से ओसीए मात्र एक व्हाट्सएप ग्रुप के रूप में अस्तित्व में था। इसके केवल आठ सदस्य थे जो आपस में अपने विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए इस मंच का इस्तेमाल करते थे। लेकिन, रथ के निधन के बाद सुनारामा और कलाकार-कार्टूनिस्ट केसु दास जैसे लोगों के उत्साही नेतृत्व में इस अकादमी को औपचारिक आकार मिला। केसु दास बाद में ओसीए के उपाध्यक्ष बनाए गए। अब इस संगठन से 25 कलाकार जुड़े हैं। यह संगठन न केवल अब अपने सहयोगियों की समस्याओं को रचनात्मक और सामाजिक रूप से हल करता है, बल्कि अन्य राज्यों के कलाकार और कार्टूनिस्टों को भी सम्मानित करता है।
केसु दास कहते हैं कि ओडिशा के आदिवासी कार्टूनकारों में प्रतिष्ठित सुनारामा ऐसे कलाकार हैं जो अपना विषय स्वयं चुनते हैं और तीन मिनट में कार्टून बना सकते हैं। यह उनके मिजाज में है कि वह जो ठान लेते हैं, करके ही दम लेते हैं।
मयूरभंज के उदाला के निवासी भूमिजा जनजाति से ताल्लुक रखने वाले सुनारामा ने गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट्स (जीसीएसी), खलीकोट, गंजाम से पढ़ाई की। उन्होंने अपने छात्र जीवन (1982-87) से ही गलत के खिलाफ आवाज उठाने के लिए कार्टूनों का सहारा लेना शुरू कर दिया था। यहां तक कि ओडिशा ललित कला अकादमी ने भी उनमें एक कलाकार को तब पहचान लिया था जब वह जीसीएसी में दूसरे वर्ष के छात्र थे। अकादमी ने उस समय उनका चित्र ‘ट्रैकमैन’ 2000 रुपये में खरीदा था।
सुनारामा सात सदस्यों वाले एक गरीब बढ़ई परिवार से आते हैं और बारह ब्राह्मणों, 3,5000 संथालियों एवं छह भूमिजा परिवारों की भुरुदुबनी बस्ती (उदला) में वह पहले मैट्रिक पास हैं। वर्ष 1981 में मैट्रिक पास करने के बाद सुनारामा को उनके पिता ने पांच साल के कोर्स के लिए जीसीएसी में दाखिला दिलाने में बिल्कुल संकोच नहीं किया।
जीसीएसी में पढ़ाई के दौरान भी वह बहुत जल्दी कार्टून बना लेते थे। उनके कार्टून मजाकिया, गुदगुदाने वाले, उपहास या व्यंग्य का तीखा पुट लिए होते थे।
बताया जाता है कि जब उन्होंने जीसीएसी में दाखिला लिया तो वहां रैगिंग अपने चरम पर थी। उनके अनुसार, घमंडी शिक्षक अपने छात्रों के साथ गुलामों जैसा बर्ताव करते थे। यह परिदृश्य देख सुनारामा से रहा न गया और उन्होंने व्यंग्य और आलोचना दर्शाते हुए कार्टून बनाए।
सुनारामा ने The Indian Tribal को बताया कि उन्होंने संस्थान में ऐसे दासता वाले माहौल की निंदा करने के लिए इसके परिसर की दीवारों पर 20 से अधिक कार्टून बना डाले। इस दुस्साहसपूर्ण कृत्य पर वहां मेरे खिलाफ गुस्से का माहौल बन गया, लेकिन सब चुप रहे। आखिरकार, अधिकारियों ने कार्टूनों को छुपाने के लिए दीवारों को गेरू रंग से रंग दिया।
हालांकि, एक कार्टून जिसमें ‘जैविक आवश्यकता की संतुष्टि’ पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कुत्तों के संभोग को दिखाया गया था, ने परिसर में माहौल बहुत अधिक तनावपूर्ण बना दिया और जो लोग मेरे कार्टूनों से आहत और अपमानित महसूस कर रहे थे, उन्हें अपना गुस्सा निकालने का मौका मिल गया। लेकिन, मुझे कभी इसका पछतावा नहीं हुआ। मेरा मानना था कि यह महज एक व्यंग्यचित्र था, जिसका उद्देश्य किसी को ठेस पहुंचाना नहीं था।
सुनारामा के कार्टून अच्छा संदेश देते हैं। जब 1988 के आसपास भुवनेश्वर के ओल्ड टाउन के श्रीराम नगर में डेनिश इंटरनेशनल डेवलपमेंट एजेंसी (डेनिडा) द्वारा तैयार एक ट्यूबवेल को कुछ शरारती तत्वों ने बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया, तो उन्होंने लोगों को ऐसे कृत्यों से बचने का संदेश देने के लिए कार्टून बनाया। इस कार्टून में बने ट्यूबवेल से पानी की जगह आंसू निकल रहे थे। यह कार्टून लोगों के दिलों को छू गया।
कार्टून ने डेनिडा को इतना प्रभावित किया कि उसने मुझे अपने यहां कलाकार के तौर पर नौकरी की पेशकश की। मैंने इसे स्वीकार कर लिया और दो साल तक उनके लिए काम किया। वे मुझे डेनमार्क भी ले जाना चाहते थे, लेकिन मैंने मना कर दिया, क्योंकि मैं अपने माता-पिता को नहीं छोड़ सकता था। फिर मैं रमा देवी विश्वविद्यालय के साथ जुड़ गया और 2022 तक वहां काम किया। सुनारामा कहते हैं कि उन्हें फोटोग्राफी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। हालांकि वह विश्वविद्यालय में एक कलाकार-सह-फोटोग्राफर के पद पर थे।
जब सुनारामा से उनके जीवन के सबसे सुखद क्षणों के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने तुरंत खुशी से जवाब दिया- पिछले साल फरवरी में रमा देवी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को जब स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक रमा देवी का (4’x3’) का चित्र भेंट किया, तो वह उनके जीवन के सबसे सुखद पलों में से एक था। वह कहते हैं कि राष्ट्रपति ने मुस्कुराकर मेरा चित्र स्वीकार किया । वह मुझे बहुत ही मिलनसार प्रतीत हुईं।