रांची
पारंपरिक प्रसिद्ध पकवानों के साथ-साथ झारखंड में कुछ ऐसे व्यंजन भी हैं, जिनके बारे में लोग बहुत अधिक नहीं जानते, लेकिन वे इतने स्वादिष्ट हैं कि आनंद आ जाए। यहां के व्यंजनों, विशेष रूप से जनजातीय व्यंजनों को अब पूरे देश में बढ़ावा दिया जा रहा है। राज्य से बाहर के लोग उन्हें खूब पसंद भी कर रहे हैं। यही कारण है कि बहुत कम
दिखाई देने वाले आदिवासी व्यंजन भी अब विशेष रेस्तरां के मेनू में शामिल होते हैं।
राज्य का इकलौता फाइव स्टार होटल रेडिसन ब्लू पिछले कुछ समय से देसी स्वाद के साथ खाने के शौकीनों का स्वागत कर रहा है। रेडिसन ब्लू होटल के एग्जीक्यूटिव शेफ, रामचंद्र उरांव The Indian Tribal को बताते हैं कि झारखंडी भोजन की लोकप्रियता का बड़ा कारण इनमें कम तेल और नाममात्र मसालों का उपयोग है। इसके अलावा विभिन्न प्रकार की विशिष्ट स्थानीय सामग्री भी खाने में डाली जाती है जो इसका स्वाद बढ़ा देती है और लोग बरबस ही इस भोजन की तरफ आकर्षित होते हैं।
धुस्का और छिलका रोटी, पीठा, होकू लाक और देसी चिकन आदि आदिवासी व्यंजन हैं जो ऐसी जगहों पर भी खूब लोकप्रिय हो रहे हैं, जहां पहले कभी इनके नाम भी नहीं सुने गए।
धुस्का
बेहद लोकप्रिय धुस्का पारंपरिक रूप से नाश्ते में खाया जाता था, लेकिन अब मांग बढऩे के साथ इसमें विविधता आ गई है। यह चावल और दाल का एक घोल होता है जिसे डीप फ्राई किया जाता है और चना दाल से बनी घुघनी के साथ परोसा जाता है। हालांकि, इसके साथ अन्य प्रकार की दाल, सब्जी, यहां तक कि चिकन और मटन भी अब परोसा जाने लगा है। इससे वैरायटी के साथ-साथ स्वाद में कई गुना इजाफा हो गया है।
छिलका रोटी
छिलका रोटी डोसा जैसी दिखती है और चना दाल की चटनी के साथ इसे परोसा जाता है। उरांव के अनुसार, इसका स्वाद बहुत अलग होता है। इसे चावल और बेसन के पेस्ट के रूप में तैयार किया जाता है और तवे पर खूब सेंक कर तह करके परोसा जाता है। सेफ बड़े गर्व से कहते हैं कि होटलों एवं रेस्टोरेंट में आने वाले ग्राहक इन आदिवासी व्यंजनों की खूब सराहना करते हैं और बार-बार खाने आते हैं। इनकी मांग लगातार बढ़ रही है।
राज्य की राजधानी झारखंड में आजम एम्बा रेस्टोरेंट है, जो दावा करता है कि यह आदिवासी व्यंजनों का अनोखा केंद्र हैं। यहां स्वदेशी को बढ़ावा देते हुए स्थानीय उद्यमियों और जैविक किसानों से सीधे आने वाली सब्जियां व अनाज से भोजन तैयार किया जाता है। आजम एम्बा को उरांव/कुरुख बोली में शानदार स्वाद कहा जाता है। यह अपने नाम के साथ ही शानदार स्वाद का एहसास करा देता है। इस तथ्य का प्रमाण यह है कि बाहर का खाना खाने के अधिकांश शौकीन आदिवासी व्यंजनों का स्वाद लेने के लिए इधर का ही रुख करते हैं।
इस विशेष रेस्टोरेंट की मालिक अरुणा तिर्की कहती हैं कि यह पारंपरिक झारखंडी व्यंजनों का इकलौता रेस्टोरेंट है जिसके स्वाद का कोई मुकाबला नहीं है। वह कहती हैं कि भारत और विदेशों में विभिन्न व्यापार और पर्यटन मेलों एवं सांस्कृतिक उत्सवों में स्थानीय व्यंजनों को हमेशा बहुत ही चाव से लोग खाते हैं। इसके चाहने वाले ढूंढते हुए
स्टाल पर आते हैं।
ऐसी ही एक डिश है पीठा, जिसे चावल के आटे से बनाया जाता है। इसे आप तला हुआ मोमो भी कह सकते हैं। मकर संक्रांति हो या पारिवारिक समारोह, पीठा हर जगह दावतों का स्वाद बढ़ाने के लिए तैयार होता है।
दाल पीठा
दाल पीठा झारखंड का पारंपरिक व्यंजन है, जिसे मसले हुए उड़द और विभिन्न प्रकार की स्टफिंग करके तैयार किया जाता है। हालांकि इस पीठा में यदि चिकन (जिल पीठा) भर दिया जाए तो फिर कहना ही क्या! बिहार में इसे दाल पिठ्ठी के रूप में जाना जाता है, जबकि पश्चिम बंगाल में इसे मीठाई के रूप में तैयार किया जाता है।
भारत और विदेशों में आयोजित होने वाले विभिन्न व्यापार-पर्यटन मेलों एवं सांस्कृतिक उत्सवों में झारखंडी व्यंजनों को हमेशा ही बहुत गर्मजोशी से लिया जाता है। इसके चाहने वाले ढूंढते हुए स्टाल पर आते हैं।