पूर्वोत्तर खेलों में चिंगखेंगंबी हुइरेम को छह स्वर्ण पदक जीतने का गौरव हासिल है। वह खास हुनर की मालिक हैं। उन्होंने जूडो में केवल एक वर्ष का प्रशिक्षण लेकर नॉर्थ ईस्ट स्पोट्र्स फेस्टिवल में अपना पहला बड़ा टूर्नामेंट स्वर्ण पदक जीतकर धमाका कर दिया था।
चिंगखेंगंबी की किस्मत 15 साल की उम्र में उस समय बदली, जब उन्होंने 1999 में इंफाल में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में जूडो ओलंपियन लौरेम्बम ब्रजेश्वरी देवी को देखा। देवी से चिंगखेंगंबी इतनी प्रेरित हुईं कि उन्होंने इसी कला को अपना करियर बनाने की ठान ली और तुरंत जूडो कक्षाओं के लिए नामांकन कराने का निर्णय ले लिया।
जूडो फेडरेशन ऑफ इंडिया द्वारा सन 2000 से लेकर 2005 तक आयोजित जूनियर और सीनियर स्तर की सभी नेशनल चैंपियनशिप में चिंगखेंगंबी ने भाग लिया। साथ ही नॉर्थ ईस्ट गेम्स और ऑल इंडिया इंटर-यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप में भी लगातार जीत हासिल करती गईं।
चिंगखेंगंबी हुइरेम के नाम पूर्वोत्तर खेलों में छह स्वर्ण पदक हैं। वास्तव में, जूडो में केवल एक वर्ष के प्रशिक्षण से ही उन्होंने नॉर्थ ईस्ट स्पोट्र्स फेस्टिवल में अपना पहला बड़ा टूर्नामेंट स्वर्ण जीता।
इसके बाद एक मोड़ ऐसा आया कि वह खेल से दूर हो गईं। चिंगखेंगंबी जब वर्ष 2006 में नेताजी सुभाष नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोट्र्स, पटियाला में प्रशिक्षण ले रही थीं, तो उनके घुटने में चोट लग गई। यह चोट ऐसी थी कि खेल नहीं सकती थीं और उन्हें तीन साल तक जूडो से अलग होना पड़ा। हालांकि, उन्होंने निडर होकर इस स्थिति का सामना किया और पूरी हिम्मत के साथ इन हालात को अपने पक्ष में करते हुए इस दौरान एनएसएनआईएस से डिप्लोमा कोर्स पूरा कर लिया।
भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा चिंगखेंगंबी को वर्ष 2010 में मिजोरम में राष्ट्रीय कोच के रूप में नियुक्त किया गया। इसके तत्वावधान में वह 2018 युवा ओलंपिक और राष्ट्रमंडल चैम्पियनशिप में भारतीय जूडो दल का हिस्सा रहीं। दृढ़ संकल्प और प्रतिभा की धनी चिंगखेंगंबी हुइरेम मणिपुर में नवोदित खिलाडिय़ों और महिलाओं के लिए बड़ी प्रेरणा का स्रोत हैं।