रांची
सचिव, जनजातीय कार्य मंत्रालय सह नीति आयोग रंजना चोपड़ा ने आज कहा कि अब समय आ गया है कि देश के पीवीटीजी (आदिम जनजातीय समूह) क्षेत्रों में हाउसहोल्ड सैचुरेशन की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं।
उन्होंने कहा कि जिन गांवों तक सड़क नहीं पहुंची है, वहां प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत मनरेगा के माध्यम से कार्य कराया जाए ताकि स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर भी मिल सकें। “गांवों तक ऐसी कनेक्टिविटी विकसित की जानी चाहिए कि लोगों के दरवाजे से अस्पताल, स्कूल और शहर तक वाहनों की सहज पहुंच संभव हो,” चोपड़ा ने कहा। वे पीवीटीजी समुदायों के विकास पर आयोजित सेमिनार को संबोधित कर रही थीं।
रंजना चोपड़ा ने बताया कि 2018 में पीवीटीजी कल्याण के लिए शुरू की गई योजना का अब सकारात्मक असर दिखाई दे रहा है। कई क्षेत्रों में हर घर नल योजना, सड़क निर्माण और विद्युतीकरण के कार्य सैचुरेशन मोड में पूरे किए जा चुके हैं। झारखंड समेत कई राज्यों में उल्लेखनीय प्रगति दर्ज हुई है।
उन्होंने जानकारी दी कि अब ऐसे टोलों में आंगनबाड़ी केंद्र स्थापित किए जाएंगे, जिनकी आबादी कम से कम 100 लोगों की है। साथ ही, आदिम जनजाति की महिलाओं को काम के दौरान राहत देने के लिए क्रेच (बच्चों की देखभाल केंद्र) खोले जाने की योजना भी बनाई जा रही है।
चोपड़ा ने झारखंड के पीवीटीजी क्षेत्रों में हुए कार्यों और शेष कार्यों का विस्तृत डेटा तैयार करने का निर्देश दिया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किस क्षेत्र में कौन सी योजना लागू करने की आवश्यकता है।
नीति आयोग के अतिरिक्त सचिव एवं मिशन डायरेक्टर रोहित कुमार ने कहा कि पीवीटीजी योजना ऐसी पहल है, जिसके माध्यम से आदिम जनजाति समुदायों के समग्र विकास की परिकल्पना को साकार किया जा रहा है।यह सेमिनार पीवीटीजी समुदायों के सशक्तिकरण एवं विकास पर फोकस है।
उन्होंने कहा कि इस योजना का उद्देश्य उन प्रखंडों और क्षेत्रों को मुख्यधारा से जोड़ना है जो अब तक विकास की दौड़ में पीछे रह गए हैं। “जिन इलाकों में पिछड़ी आदिवासी कम्युनिटी निवास करती है, वहां विकास कार्यों के माध्यम से स्वावलंबन की दिशा में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं।
रोहित कुमार ने जोर देते हुए कहा कि ‘विकसित भारत’ के निर्माण के लिए हमें सामूहिक रूप से काम करना होगा। उन्होंने कहा, “आदिम जनजाति के उत्थान की नई गाथा हमें ग्राउंड लेवल पर सतत प्रयासों से लिखनी होगी।”नीति आयोग के मिशन डायरेक्टर ने यह भी कहा कि पीवीटीजी योजना केवल बुनियादी सुविधाओं की आपूर्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका लक्ष्य इन समुदायों को आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से सशक्त बनाना है ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।

सेमिनार के उद्घाटन सत्र में अपने स्वागत संबोधन के दौरान योजना एवं विकास सचिव श्री मुकेश कुमार ने कहा कि राज्य की भौगोलिक चुनौतियों के बावजूद झारखंड ने आदिम जनजातीय समुदायों के विकास में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं।
मुकेश कुमार ने कहा कि नीति आयोग एवं मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के मार्गदर्शन में राज्य सरकार पीवीटीजी समुदायों के समग्र विकास के लिए कई नवाचारों पर काम कर रही है। विशेष रूप से ‘डाकिया योजना’ जैसी पहल ने दूरस्थ गांवों में सरकारी सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित की है। इस योजना के तहत आवश्यक वस्तुएं, पोषण आहार और दवाएं सीधे लोगों के दरवाजे तक पहुंचाई जा रही हैं, जिससे जीवन स्तर में स्पष्ट सुधार हुआ है।
कुमार ने बताया कि राज्य के कई पीवीटीजी प्रखंडों में सड़क, बिजली, पेयजल, आवास और शिक्षा से जुड़ी योजनाएं सैचुरेशन मोड में लागू की जा रही हैं। “हमारा उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि झारखंड का कोई भी आदिम समुदाय विकास की मुख्यधारा से वंचित न रहे,” उन्होंने कहा।
उन्होंने कहा कि पीवीटीजी योजना का सकारात्मक असर जमीनी स्तर पर साफ दिखाई दे रहा है — बच्चों की शिक्षा में सुधार, मातृ-शिशु स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता, और रोजगार सृजन में वृद्धि इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
झारखंड में पीवीटीजी (विशेष रूप से आदिम जनजातीय समूह) समुदाय के समग्र विकास की दिशा में सरकार की महत्वाकांक्षी योजना “दीदी की दुकान” नई मिसाल कायम कर रही है। राज्य सरकार के पदाधिकारियों ने हाल ही में पीवीटीजी योजनाओं के संचालन से जुड़ी चुनौतियों और उपलब्धियों पर एक प्रेजेंटेशन प्रस्तुत किया, जिसमें बताया गया कि किस तरह “लखपति दीदी” पहल राज्य में ग्रामीण आजीविका की सशक्त कहानी लिख रही है।

विभागीय अधिकारियों के अनुसार, “दीदी की दुकान” योजना के तहत आदिम जनजातियों से जुड़ी महिला समूहों के माध्यम से दूरस्थ और पिछड़े क्षेत्रों में दैनिक जरूरत की वस्तुओं की दुकानें शुरू की गई हैं। इन दुकानों की शुरुआत 30 हजार से 1 लाख रुपये तक के लोन से की गई थी। वर्तमान में राज्य के विभिन्न प्रखंडों में कुल 1276 दीदी की दुकानें संचालित हो रही हैं। इनमें से 386 गांव ऐसे हैं, जहां पहली बार कोई दुकान खुली है।
पहले इन इलाकों के लोगों को जरूरत का सामान लेने के लिए चार किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता था, लेकिन अब वस्तुएं उनके गांव में ही उपलब्ध हैं। औसतन एक दीदी की दुकान से हर महीने लगभग 9,100 रुपये की आय हो रही है, जिससे महिलाओं की आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
इसके साथ ही राज्य के 113 गांवों में “दीदी का ढाबा” भी शुरू किया गया है। इससे न केवल रोजगार के नए अवसर सृजित हुए हैं, बल्कि महिलाओं ने आत्मनिर्भरता और सम्मान की दिशा में भी एक नई शुरुआत की है।
“दीदी की दुकान” जैसी योजनाएं न सिर्फ आजीविका को मजबूत कर रही हैं, बल्कि आदिम जनजातीय समुदायों में सामाजिक परिवर्तन का सेतु भी बन रही हैं
सुपर 60 सेमिनार में मुख्य रूप से पद्मश्री मधु मंसूरी, पद्मश्री जमुना टुडू, पद्मश्री सिमन उरांव, पद्मश्री जागेश्वर यादव, पद्मश्री कमी मुर्मू सहित एडिशनल मिशन डायरेक्टर आनंद शेखर, आदिवासी कल्याण सचिव झारखंड कृपानंद झा, विशेष सचिव योजना एवं विकास राजीव रंजन सहित छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, ओडिशा एवं झारखंड के पदाधिकारी उपस्थित थे।














