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Home » द इंडियन ट्राइबल / हिंदी » द इंडियन ट्राइबल / उप्लाब्धिकर्ता » एक संथाली कलाकार की प्रेरक यात्रा, छोटी सी आदत को बनाया राष्ट्रीय पहचान

एक संथाली कलाकार की प्रेरक यात्रा, छोटी सी आदत को बनाया राष्ट्रीय पहचान

ओडिशा के उदाला जैसे एक छोटे से शहर से निकल कर इस आदिवासी युवक ने देशभर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। निरोज रंजन मिश्रा बता रहे हैं उनकी कहानी जो जुनून, संघर्ष और सफलता की मिसाल है

October 2, 2025
The Indian Tribal

जीतेन्द्र अपने बनाये हुए एक सेट के सामने

मयूरभंज

बचपन में तूलिका से खेलते-खेलते शुरू हुआ सफर आज 200 से अधिक राष्ट्रीय परियोजनाओं तक पहुँच चुका है। भोजपुरी टीवी सेट्स से लेकर ओडिया सांस्कृतिक उत्सवों तक, उन्होंने आदिवासी कला को आधुनिक मंच पर नई परिभाषा दी है।

उनकी कहानी केवल आर्थिक बदलाव की नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धैर्य, मार्गदर्शन और प्रेरणा की है—यह इस बात का प्रमाण है कि अवसर मिलने पर आदिवासी प्रतिभा राष्ट्रीय स्तर पर कैसे चमक सकती है।

मिलिए संथाली आदिवासी कलाकार जीतेन्द्र हेम्ब्रम से, जिन्होंने मंच सज्जा की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई है—उत्तर प्रदेश के नोएडा फिल्म सिटी और हैदराबाद के रामोजी फिल्म सिटी में ख्याति अर्जित करने वाले वही कलाकार, जो कभी 3,000 रुपये मासिक पर गुजारा करते थे।

आज, जीतेन्द्र की कला उन्हें हर महीने 1.30 लाख रुपये से अधिक की आय देती है और उनकी रचनात्मकता देशभर के आयोजनों और मंचों को सजाती रहती है।

“मैं अपनी कला के प्रति इतना जुनूनी था कि मैट्रिकुलेशन के बाद पढ़ाई जारी नहीं रख सका। परिवार की खराब आर्थिक स्थिति भी बाधा बनी। लेकिन काली सर से जुड़ाव ने मुझे परिवार की मामूली आय में मदद करने का अवसर दिया,” उन्होंने The Indian Tribal से कहा।

जुनून से शुरू हुई यात्रा

उदाला हाई स्कूल से मैट्रिक पास करने के बाद जीतेन्द्र ने 1997 में पहली बार तूलिका उठाई। तब उनकी मुलाकात स्थानीय साइनबोर्ड कलाकार कालीचरण बिन्धानी से हुई। उनके कौशल से मोहित होकर जीतेन्द्र को ब्रश थमाया गया और यात्रा शुरू हो गई।

The Indian Tribal
अपने काम में लीन जीतेन्द्र
The Indian Tribal
अपनी बनायीं हुई कलाकृति को अंतिम रूप देते हुए

उनके पिता, स्व. बिप्र हेम्ब्रम, किसान, बढ़ई और राजमिस्त्री थे। लेकिन जीतेन्द्र ने रंगों, मिट्टी और रचनात्मकता से भरे रास्ते को चुना। 1998–99 तक वे अनुभवी कलाकार रंजन परिड़ा के साथ काम करने लगे, जिन्होंने बाद में उन्हें नोएडा ले गए।

“जीतेन्द्र मुझसे उदाला में मिले और टीम में शामिल होने की विनती की। उनकी प्रतिभा मयूरभंज में व्यर्थ हो जाती। उन्होंने तेजी से सीखा और कटिंग, कर्विंग और नक्काशी के माहिर बन गए,” रंजन याद करते हैं।

नोएडा में ब्रेक और आगे की उड़ान

2001 से 2002 के बीच जीतेन्द्र ने नोएडा में काम करते हुए दूरदर्शन, ईटीवी, ज़ी टीवी, पीटीसी (पंजाब) और कई भोजपुरी धारावाहिकों के सेट सजाए। उनका बड़ा ब्रेक महुआ टीवी के ‘कलुआ दीह’से मिला, जहाँ उन्होंने 65 एपिसोड्स के स्टेजक्राफ्ट का काम स्वतंत्र रूप से किया।

यह अनुभव उनके लिए नए दरवाज़े खोल गया। 2014 तक उन्हें कई चैनलों से लगातार असाइनमेंट्स मिलने लगे और उनकी आय 60,000–70,000 रुपये मासिक तक पहुँच गई। 2017 में इवेंट मैनेजर्स से साझेदारी के बाद उन्हें हर साल 25 से अधिक प्रोजेक्ट मिलने लगे और आय 1 लाख रुपये से ऊपर हो गई।

आदिवासी परंपरा और आधुनिक कला का संगम

जीतेन्द्र का स्टेजक्राफ्ट आदिवासी पेंटिंग, फाइबर वर्क, मूर्तिकला, थर्माकोल नक्काशी, मिट्टी की मूर्तियों और धातु शिल्प का अनूठा मेल है। कई बार वे चिकिता माटी (विशेष मिट्टी) और बालिया माटी (रेतीली मिट्टी) से बनी प्रतिमाओं का प्रयोग करते हैं, जो उनकी रचनाओं को आदिवासी असलियत प्रदान करता है।

The Indian Tribal
अपनी बनायीं हुई कलाकृति के साथ जीतेन्द्र

उनकी कला ने भुवनेश्वर के मयूरभंज उत्सव और बारिपदा के मयूरभंज महोत्सव जैसे बड़े आयोजनों को भी आलोकित किया है।

“राज्य में 25 से अधिक कुशल मंच कलाकार हो सकते हैं, लेकिन हम जीतेन्द्र को उनकी संपूर्ण समर्पण भावना के कारण चुनते हैं। उनका काम बेमिसाल है,” मयूरभंज महोत्सव समिति के महासचिव कलिंग केसरी जेना ने कहा।

सम्मान और विरासत

जीतेन्द्र को उनकी कला के लिए स्थानीय स्तर पर 50 से अधिक अवसरों पर सम्मानित किया जा चुका है। 2011 में उन्हें ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने आदिवासी भाषा एवं संस्कृति अकादमी द्वारा आयोजित कार्यक्रम में सम्मानित किया था। बाद में उन्हें तत्कालीन संस्कृति मंत्री अश्विनी कुमार पात्र ने भी सम्मानित किया।

व्यक्तिगत सफलता से परे, जीतेन्द्र आदिवासी प्रतिभाओं को संवारने के लिए समर्पित हैं। उन्होंने अब तक 10 से अधिक युवा कलाकारों (जिनमें दो लड़कियाँ भी शामिल हैं) को प्रशिक्षित किया है। इनमें से कुछ स्वतंत्र रूप से 50,000 रुपये तक कमा रहे हैं।

“मैं अक्सर उन्हें अपने साथ बड़े प्रोजेक्ट्स में सहयोग करने के लिए बुलाता हूँ,” उन्होंने गर्व से कहा।

2015 में विवाह के बाद अपने गृहनगर उदाला में बसने के बावजूद जीतेन्द्र को राज्य से बाहर भी अपनी कला प्रदर्शित करने के लिए आमंत्रित किया जाता है।

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आदिवासी पीएचडी अभ्यर्थी को 2 लाख रुपए की प्रोत्साहन राशि

मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने आज IIIT रांची में आदिवासी समुदाय से चयनित सबसे कम उम्र की पीएचडी अभ्यर्थी सविता कच्छप को पढ़ाई पूरी करने हेतु झारखण्ड सरकार की ओर से 2 लाख रुपए की प्रोत्साहन राशि का चेक उनके परिजन को सौंपा। सविता कच्छप, जो वर्तमान में अपनी नानी के घर पर रह कर पढ़ाई कर रही हैं, ने मुख्यमंत्री को अवगत कराया कि वे आदिवासी समुदाय में सबसे कम उम्र (24 वर्ष) की अभ्यर्थी हैं जिनका IIIT रांची में पीएचडी हेतु इलेक्ट्रिक कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग कोर्स में चयन हुआ है। वे टेक्निकल फील्ड में पहला ट्राइबल रिसर्च स्कॉलर भी हैं तथा IEEE में अंतराष्ट्रीय नॉवेल्टी रिसर्च वर्क प्रेजेंट कर चुकी हैं। मौके पर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने सविता की हौसला अफजाई करते हुए उनसे कहा कि वे आगे अपनी पढ़ाई और शोध कार्य जारी रखें, राज्य सरकार हरसंभव उन्हें मदद करेगी। मौके पर सविता के परिजन एवं अन्य उपस्थित रहे।
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The Indian Tribal is India’s first bilingual (English & Hindi) digital journalistic venture dedicated exclusively to the Scheduled Tribes. The ambitious, game-changer initiative is brought to you by Madtri Ventures Pvt Ltd (www.madtri.com). From the North East to Gujarat, from Kerala to Jammu and Kashmir — our seasoned journalists bring to the fore life stories from the backyards of the tribal, indigenous communities comprising 10.45 crore members and constituting 8.6 percent of India’s population as per Census 2011. Unsung Adivasi achievers, their lip-smacking cuisines, ancient medicinal systems, centuries-old unique games and sports, ageless arts and crafts, timeless music and traditional musical instruments, we cover the Scheduled Tribes community like never-before, of course, without losing sight of the ailments, shortcomings and negatives like domestic abuse, alcoholism and malnourishment among others plaguing them. Know the unknown, lesser-known tribal life as we bring reader-engaging stories of Adivasis of India.

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