रांची
पिछले 17 सालों से सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने के उपरान्त अंततः लातेहार के हेनार गांव निवासी आदिम जनजाति के युवा सुनील ब्रिजिया को उसका हक-अधिकार मिल गया।
एक न्यूज़ चैनल के रिपोर्ट से युवक के संगर्ष के बारे में पता चलने पर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने मामले का संज्ञान लिया और लातेहार के उपयुक्त को उचित जांच करते हुए आव्यश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
इस संबंध में मुख्यमंत्री को सूचित करते हुए उपायुक्त लातेहार ने बताया कि उक्त मामले में अनुकंपा समिति के निर्णय के आधार पर सुनील ब्रिजिया को नियुक्त करते हुए योगदान की तिथि से पदस्थापित किया गया है। उन्होंने बताया कि सुनील बृजिया को लातेहार शिक्षा विभाग में चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के रूप में नियुक्ति की स्वीकृति दी गई।
सुनील के पिता रामदास बृजिया सरकारी शिक्षक थे। वर्ष 2007 में उनकी मृत्यु हो गई थी। सरकारी प्रावधान के तहत अनुकंपा के आधार पर और इकलौते संतान होने के कारण उन्हें सरकारी नौकरी दी जानी थी। लेकिन पिछले 17 वर्षों से दर-दर भटकने के बावजूद उन्हें नौकरी नहीं मिली थी।
सीएम हेमन्त सोरेन का निर्देश मिलने के बाद शिक्षा विभाग के क्षेत्रीय उप निदेशक सौरभ प्रकाश के द्वारा शुक्रवार को एक पत्र जारी किया गया. जिसमें सुनील को नौकरी देने की अंतिम स्वीकृति दे दी गई। सुनील ने नौकरी की स्वीकृति मिलने के बाद सीएम हेमन्त सोरेन और लातेहार डीसी उत्कर्ष गुप्ता के प्रति आभार जताया है.
सुनील के संघर्ष की कहानी
- न्यूज़ चैनल ईटीवी भारत को सुनील ने बताया कि वे आठवीं पास थे. इसके कारण जिला स्तर पर आयोजित स्थापना समिति की बैठक में उनका चयन चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के रूप में हुआ। जिला स्तर पर नियुक्ति का आदेश भी पारित हो गया, लेकिन सरकारी अधिकारियों की मनमानी के कारण अलग-अलग कारण बताकर उनकी नियुक्ति एक साल तक लंबित रखी गई।
- उसके बाद वर्ष 2011 में सरकार का एक नया प्रावधान आया, जिसके अनुसार सरकारी नौकरी के लिए मैट्रिक पास होना जरूरी था। इस प्रावधान को मुद्दा बनाकर सरकारी क्लर्क ने फिर से अपनी मनमानी शुरू कर दी और उनकी नियुक्ति पर रोक लगा दी।
- सरकारी सिस्टम की मनमानी से परेशान होकर उन्होंने अपनी पढ़ाई आगे बढ़ाई और मैट्रिक पास किया सुनील की पत्नी हीरामणि देवी ने बताया कि मैट्रिक पास करने के बाद सुनील को नौकरी नहीं मिली, बिना रिश्वत लिए कोई उसकी फाइल आगे बढ़ाने को तैयार नहीं था। उनसे नौकरी के नाम पर पैसे भी लिए गए, लेकिन नौकरी नहीं दी गई।
- सुनील ने यह भी बताया कि सरकारी अधिकारियों ने न सिर्फ उनकी नौकरी में बाधा डाली, बल्कि प्रावधानों के अनुसार उनकी मां को मिलने वाली पेंशन में भी कई तरह की अड़चनें पैदा कीं। हालांकि किसी तरह उनकी मां की पेंशन स्वीकृत तो हो गई, लेकिन वर्ष 2009 में उन्हें जो पेंशन मिलनी शुरू हुई, वही आज भी मिल रही है। उनकी पेंशन में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई।
- सुनील ने बताया की मां को मिलने वाली 6000 रुपये की पेंशन से ही बूढ़ी मां, उनकी पत्नी और उनके नौ बच्चों का भरण-पोषण होता है।