कुर्सियांग (पश्चिम बंगाल)
आज एक बैंड मेघालय की संस्कृति और लोकगीतों को पुनर्जीवित करने के लिए जी-जान से जुटा है। काम के अनुसार ही बैंड का नाम भी मेघालय की गारो जनजाति के युद्ध में विजयी होने पर इस्तेमाल किए जाने वाले नारे ‘अहोवी’ पर ही रखा गया है। बड़ी बात यह कि बैंड के सिद्धांत भी इस अहोवी शब्द से प्रेरित हैं, जो अपने पूर्वजों की युद्ध भावना और प्रतिकूल परिस्थितियों का भी डटकर मुकाबला करने का संदेश देते हैं और वे इसी को अपने पूर्वजों के लिए सच्ची श्रद्धांजलि समझते हैं।
यूं तो बैंड ने वर्षों से कई चुनौतियों का सामना करते हुए लंबा संघर्ष किया, लेकिन आज यह बैंड आदिवासियों की समृद्ध विरासत और संस्कृति को वैश्विक दर्शकों के समक्ष बड़ी खूबसूरती से पेश कर रहा है।
शुरुआत में बैंड ने पश्चिमी संगीत और उसके गहरे प्रभाव के बीच अपनी जगह बनाने की कोशिश की और रॉक गाने बनाए, लेकिन उन्हें इतने भर से संतुष्टि नहीं मिल रही थी। एक खालीपन साथ-साथ चलता रहा। इसलिए वे धीरे-धीरे अपने लोक संगीत की जड़ों की ओर मुड़ गए। संभवत: यह बैंड इसी मकसद को पूरा करने के लिए अस्तित्व में आया था।
जैसे ही बैंड ने अपने संगीत के सुर बदले, तो सुनने वाले मदहोश हो गए। जैसे इस संगीत के रस को पीने के लिए वे कब से प्यासे थे। धीरे-धीरे संगीत बैंड ने अपनी पहचान बनाई और वर्ष 2023 में मेघालय के पर्यटन विभाग ने गारो संस्कृति को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों के लिए राज्य के सांस्कृतिक राजदूत श्रेणी में अहोवी बैंड को रजत पुरस्कार प्रदान किया। बैंड ने 2023 में ही इवनिंग क्लब शिलांग में मेघालय ग्रासरूट्स म्यूजिक प्रोजेक्ट के लिए अतिथि बैंड के रूप में और 2021 में विंटर टेल्स शिलांग कार्यक्रम में प्रस्तुति देकर अपनी अलग छाप छोड़ी। इसके अतिरिक्त अहोवी ने 2018 में आई गारो फिल्म मा.अमा के लिए मूल साउंड ट्रैक की भी रचना की, जिसे खूब सराहना मिली।
बैंड के सदस्य
पिछले 10 वर्षों की संगीत यात्रा में अहोवी बैंड के साथ कई नए सदस्य जुड़े और कई पुराने साथियों ने इसे अलविदा भी कहा। इस समय बैंड में कुछ बहुत अच्छे और प्रतिभाशाली लोग शामिल हैं। गेब्रियल जी. मोमिन (32) वर्ष 2015 में फ्रंटमैन और बांसुरी वादक के रूप में बैंड से जुड़े थे। अब वह फ्रीलांसर के तौर पर काम करते हैं। जीफोर्ड आर. मारक (31) वर्ष 2016 में बैंड में शामिल हुए। पहले वह गिटार बजाते थे, लेकिन बाद में दोतारा बजाने लगे। इसी प्रकार बैंड के एक अन्य साथी मोरोचिको स्नाल्ड संगमा (28) तो 2024 में ही बैंड में शामिल हुए। वह गिटार बजाते हैं और अच्छे संगीतकार हैं। दिपेनबर्थ जी. मोमिन (28), मैथ्यू चोंगकम राकडिलसेंग जी. मोमिन (33) और गेलुसैक मोमिन (36) पुराने सहयोगी हैं। तीनों ही 2013 में बैंड से जुड़े थे। दिपेनबर्थ बेसिस्ट, मैथ्यू हार्पर और गेलुसैक ड्रमर के रूप में शानदार काम कर रहे हैं। इनमें दो सरकारी कर्मचारी और एक व्यवसायी हैं। इनके अलावा, मैनरिक एन. संगमा (26) वर्ष 2022 से नागरा वादक हैं। वह अभी अपनी पढ़ाई कर रहे हैं।
टुरा से The Indian Tribal के साथ विस्तृत बातचीत में गेब्रियल, गिफर्ड और दिपेनबर्थ ने अपने बैंड और पर्दे के पीछे से गारो संगीत को बढ़ावा देने की संघर्षपूर्ण यात्रा के बारे में विस्तार से बताया। गेब्रियल और गिफर्ड संगीत घरानों से आते हैं, लेकिन बैंड के अन्य सदस्यों की तरह उनके माता-पिता भी नहीं चाहते थे कि संगीत उनका पेशा बने। हालांकि आज उनके समर्पण और अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के प्रयासों को देखकर वे भी उनके साथ तन, मन और धन से खड़े हैं।
बैंड पहले शिलांग में काम कर रहा था, लेकिन अब गारो हिल्स आ गया है। सभी सदस्य शिलांग में एक बहुसांस्कृतिक विरासत वाले वातावरण में पले-बढ़े हैं। इसलिए दुनिया और संगीत के बारे में उनका दृष्टिकोण एकदम अलग है, लेकिन इसने उन्हें अपनी आदिवासी जड़ों से दूर कर दिया। वे अपनी आदिवासी विरासत से जुड़ने को बेचैन थे। इसी बेचैनी की वजह से रॉक बैंड को नई और सार्थक दिशा मिली।
पारंपरिक संगीत में पारंगत
- अहोवी के गीतों में उपयोग किए जाने वाले पारंपरिक संगीत में कई तरह के वाद्ययंत्र शामिल होते हैं। इनमें शास्त्रीय भारतीय बांसुरी और ओलोंगमा जैसी अनूठी गारो बांसुरी होती है। इसमें केवल दो छेद होते हैं- एक किनारे पर और दूसरा नीचे।
- इसके अलावा, एक मिनी सैक्सोफोन होता है, जबकि ओ-टेकरा यानी तीन छेद वाली बांसुरी होती है।
- पारंपरिक गारो ढोल भी इस संगीत का हिस्सा होता है, जिसे दामा कहते हैं। उसकी लंबाई लगभग 1.5 मीटर होती है। इसके अलावा बांस से बनाया गया एक चिग्रिंग भी इसमें इस्तेमाल किया जाता है।
- पारंपरिक गारो बास ढोल नागरा, दोतारा और सरेंडा भी शामिल होता है। सरेंडा को धनुष से बजाया जाता है।
- इसमें ढोल की थाप के साथ सामन्जस्य बैठाते हुए नियमित अंतराल पर एक कांस्य प्लेट रंग का भी उपयोग किया जाता है।
- यही नहीं, बैंड सदस्य अकोस्टिक ड्रम और गिटार की धुनों को भी अपनी संगीत रचना में सजाते हैं।
कड़ी मेहनत के सात साल
समूह के सदस्यों ने The Indian Tribal को बताया कि अहोवी बैंड ने अपा दे अंगको, नोकपांते, दानिया और सालजोंग तासिन मे.चिक ये चार गाने बनाए हैं। अंतिम गाना जनवरी 2024 में ही रिलीज किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने एक प्रसिद्ध गारो पौराणिक कथा सालजोंग तासिन मे.चिक पर 2016 में काम करना शुरू किया और उसी साल गाना तैयार करने की दिशा में बढ़े। अब सात साल बाद उनका संगीत वीडियो जारी किया गया। बैंड के साथ जुड़े कई वरिष्ठ सदस्यों ने इस संगीत समूह को केवल इसलिए छोड़ दिया क्योंकि उन्हें लगा कि वे कभी भी इस गीत के लिए आदर्श धुन नहीं लिख पाएंगे। इसके बाद कई नए साथी बैंड से जुड़े और संगीत रचना का सफर आगे बढ़ता गया।