बस्तर
छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल जिले बस्तर में मनीषा नाग ने अपना अधिकांश समय परिवार के छोटे-छोटे पुश्तैनी खेतों में धान की खेती की देखभाल करते हुए बिताया। वह कभी-कभी राष्ट्रीय उद्यान के पास स्थित मौलीपदर गांव में अपनी बुनियादी जरूरतों के सामान वाली छोटी सी दुकान भी चलाती थीं।
धुरवा आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली इस महिला गाइड ने एक खूबसूरत शाम को The Indian Tribal के साथ अपने काम के बारे में बहुत सारे अनुभव साझा किये। गुफाओं और पहाड़ी मैना के लिए प्रसिद्ध कांगेर घाटी में बड़े होने का मतलब था कि मनीषा को उस क्षेत्र के अन्य आदिवासियों की तरह ही कई पेड़ों और पौधों के नाम पता होने चाहिए। शायद यही वह बात थी, जिसने उन्हें कांगेर घाटी में एक प्रकृति मार्गदर्शक यानी गाइड बनने के लिए प्रेरित किया। इत्तेफाक से इस संबंध में अखबार में एक विज्ञापन छपा, जिसे देखने के बाद उन्होंने इस क्षेत्र में किस्मत आजमाने का निर्णय ले लिया।
मनीषा प्रति दिन दूर-दूर से आने वाले पर्यटकों के साथ कम से कम दो यात्राएं करती हैं। इस इलाके में 25 गाइड हैं। इसलिए पर्यटकों के साथ यात्रा के लिए उन्हें अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है। गाइडों के इस दल में मनीषा अकेली महिला हैं।
उन्होंने बताया कि पर्यटक कभी-कभी उनके मार्ग निर्देशन के लिए अपनी पसंद साफ जाहिर करते हैं। उनमें से कुछ लोग यह भी चाहते हैं कि मैं उनके साथ सफारी पर चलूं, लेकिन सभी पर्यटकों की मांग के हिसाब से काम नहीं किया जा सकता। संख्या ज्यादा होने के कारण हम सभी को अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है। बिना नंबर कोई भी गाइड सवारी अपने साथ नहीं ले जा सकता।
जब मनीषा से सवाल किया गया कि उनमें ऐसा क्या खास है जो पर्यटक उनके साथ सफर करना चाहते हैं, इस पर मनीषा ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘मुझे मार्गदर्शन करने में हमेशा खुशी मिलती है। मेरी पूरी कोशिश रहती है कि किस प्रकार यात्रियों यानी पर्यटकों को अपने सर्वोत्तम तरीके से वह सब जानकारी परोस सकूं, जिसकी तलाश में वे यहां तक आए हैं। इसके अलावा मेरी कोशिश यह भी रहती है कि अन्य चीजों में भी उनकी रुचि जगाती रहूं। सफारी के दौरान मैं नई चीजों के बारे में सोचने की कोशिश करती और उन्हें बताती रहती हूं। मैं लोगों को पक्षियों, जंगलों और वन्य जीवन के बारे में विस्तार से समझाती चलती हूं। कुछ लोग धुरवा जनजाति की संस्कृति के बारे में जानना चाहते हैं। जैसे इन जनजाति के लोग क्या खाते हैं, कैसे कपड़े पहनते हैं और अपना जीवन कैसे व्यतीत करते हैं? मैं उनकी इस बारे में हर जिज्ञासा पूरी करती हूं। हर सवाल का विस्तार से जवाब देती हूं।
मनीषा अपने दिन की शुरुआत सवेरे-सवेरे मुस्कुराहट के साथ करती हैं। वह पर्यटकों की बातें शांत भाव से सुनती हैं और यह समझने की कोशिश करती हैं कि वे आखिर क्या देखना चाहते हैं। किन क्षेत्रों में उनकी अधिक रुचि है। मनीषा गर्व से कहती हैं, “अधिकारी उनके काम से काफी खुश होते हैं और कई बार उनके बेहतर काम के लिए उन्होंने मुझे शाबाशी दी है।”
वह बताती हैं, “जब पर्यटक आते हैं और मेरे साथ घूमते-फिरते हैं तो उस समय वे कुछ नहीं कहते, लेकिन यात्रा के अंत में अधिकारियों के समक्ष अच्छी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। कई पर्यटक तो मुझे अपने यहां आने के लिए भी आमंत्रित करते हैं।”
मनीषा दो वर्षों से पर्यटकों का मार्गदर्शन कर रही हैं। उन्होंने कहा कि अभी और प्रशिक्षण लिया जाए तो उनके काम की गुणवत्ता और बढ़ जाएगी तथा वह बेहतरीन गाइड बन जाएंगी। अभी तो उन्होंने कभी कांगेर घाटी से बाहर कदम भी नहीं रखा है।
क्या मेहमानों के किसी प्रश्न से वह कभी परेशान भी हुई हैं? इसका जवाब वह बड़ी ईमानदारी से देते हुए कहती हैं, ‘मैं राष्ट्रीय उद्यान के बारे में जितना कुछ भी जानता हूं, सब कुछ पर्यटकों को बताती हैं। यदि किसी चीज के बारे में मुझे जानकारी नहीं होती तो बड़ी ईमानदारी से पर्यटकों के समक्ष इसे स्वीकार कर लेती हूं। कभी-कभी वह भी पर्यटकों से सवाल करती हैं। जैसे वे कहां रहते हैं? उन्हें क्या देखना, खेलना और खाना पसंद हैं और अन्य जगहों पर कौन सी दिलचस्प जगहें हैं, जहां वे जाना चाहेंगे?’
कांगेर घाटी में देखने के लिए बहुत कुछ है और पर्यटकों के साथ पूरी घाटी घूमने में अमूमन दो और कभी-कभी तीन घंटे भी लग जाते हैं। अधिकांश पर्यटक कुटुम्बसर गुफा जरूर देखना चाहते हैं। इसके अलावा कांगेर धारा, जो एक छोटा झरना है, भी आकर्षण का केंद्र रहता है। मनीषा ने कहा, ‘मैं इस बात का पूरा ध्यान रखती हूं कि बुजुर्ग लोगों को आराम करने दिया जाए और उन्हें आदिवासी संस्कृति के बारे में विस्तार से बताया जाए। वे भी उनकी बातें बड़े ध्यान से सुनते हैं।’
कुटुंबसर गुफा के अलावा, कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में दो अन्य गुफाएं- कैलाश और दंडक भी हैं, जो अपनी अद्भुत भूवैज्ञानिक संरचनाओं के लिए खासी प्रसिद्ध हैं। इसकी समृद्ध वनस्पतियों और जीवों के अलावा भूमिगत चूना पत्थर की गुफाएं बड़ी खूबसूरत लगती हैं।
मनीषा सुबह पांच बजे उठ जाती हैं और स्कूटी से अपने काम पर जाती हैं। कड़ाके की ठंड और कोहरे में भी वह स्कूटी से ही चलती हैं। कभी उन्हें साइट पर पहुंचने में एक घंटा लग जाता है। दस बजे तक ट्रिप निपटाकर वह सुबह 10 बजे तक आराम करने चली जाती हैं।
महिला गाइड मुस्कुराते हुए कहती हैं, ‘दिनभर काम के बाद मैं शाम को अकेली ही घर जाती हूं। पहले मेरे भाई ने मुझे छोडऩे और लेने आते थे, लेकिन अब मैं अकेली ही सफर करती हूं। रात के अंधेरे में भी उन्हें अब डर नहीं लगता। इसकी आदत सी हो गई है। मेरा परिवार मुझे काम करते हुए देख कर काफी खुश है। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि मैं यह काम कर पाऊंगी। मुझे स्वयं भी शुरू-शुरू में गुफाओं में डर लगता था, परंतु अब ऐसा नहीं है। एक नेचर गाइड को तो पूरी तरह निडर होना चाहिए।’
मनीषा 10वीं कक्षा तक पढ़ी हैं। उसके बाद वह आगे नहीं पढ़ सकीं। गाइड बनने के लिए उन्होंने आवेदन दिया था। इसकी स्वीकृति के बाद उन्हें प्रशिक्षण दिया गया और एक परीक्षा पास कर वह गाइड बन गईं। कांगेर वैली के निदेशक धम्मशिल गणवीर ने The Indian Tribal को बताया कि स्थानीय युवाओं से गाइड बनने के लिए आवेदन मांगे गए थे। सभी आवेदनों की गहनता से जांच की गई। उनमें मनीषा का चयन किया गया।
उन्होंने कहा, ‘गाइड बनने के लिए भविष्य में कुछ और महिलाओं का चयन किया जा सकता है। हाल ही में कुटुंबसर गांव में एक प्रकृति शिविर लगाया गया था, जिसमें तीन महिलाओं ने हिस्सा लिया।’