मंडला/बालाघाट
मध्य प्रदेश के कान्हा टाइगर रिजर्व के प्रसिद्ध मक्की गेट के खूबसूरत परिदृश्य देखकर बड़ा ही सुकून मिलता है। लंबी चांदी सी सफेद केन घास मंद-मंद हवा में इधर-उधर हिलती-डुलती बिल्कुल प्रकृति की बलाए लेकर झूमती सी प्रतीत हो रही है। ऐसे अनगिनत प्राकृतिक नजारों के अलावा जो चीज सबसे अधिक ध्यान खींचती है, वे हैं यहां ढलानदार छत वाले कच्ची मिट्टी के दो तले घर। ये घर केवल रिहायश ही नहीं हैं, इनकी दरो-दीवारों पर, कमरों में, छत पर यानी हर जगह आदिवासी संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।
कान्हा टाइगर रिजर्व के पास कुरकु ट्टी चेकपोस्ट पर तैनात भवानीलाल यादव इन प्राकृतिक दृश्यों को निहारते हुए अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं। वह वन विभाग में 1980 से कार्यरत हैं। पूछने पर तपाक से कहते हैं, यहां जो कोई आता है, वह अभिभूत होकर यहीं का बन जाता है।
मक्की रेंज में तैनात बीट गार्ड लक्ष्मी मरावी ने The Indian Tribal को बताया कि ये अनूठे घर इस तरह बने होते हैं कि परिवार बड़ा होने पर जरूरत पड़े तो इनके ऊपर एक और छत डालकर रहने की जगह तैयार की जा सके। घर के ऊपर वाले हिस्से को पाटन कहते हैं और इसमें अमूमन धान और ज्वार-बाजरा जैसे अनाज सुरक्षित रखे जाते हैं। वह बताती हैं कि पूरे कान्हा टाइगर रिजर्व के आसपास रहने वाले गोंड जनजाति के अधिकांश लोग इसी शैली में घर बनाते हैं।
![Tribal Houses in Kanha, MP](https://theindiantribal.com/wp-content/uploads/2023/11/kanha-1-1024x768.jpg)
पास के बामनी गांव में गोंड समुदाय की सुकली बाई टेकम ने इन घरों की विशिष्टता के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि हमें हर साल घर की दीवार को गाय के गोबर से लीपना पड़ता है। वह बताती हैं कि कई घरों में ऊपरी कमरा या पाटन को स्टोर रूम के तौर पर भी इस्तेमाल नहीं किया जाता, लेकिन हर घर पर यह खूबसूरती बढ़ाने के लिए बनाया जाता है। यदि ऊपर स्टोर रूम बनाते हैं, तो मकान की ऊंचाई और बढ़ जाती है और अगर ऊंचाई कम रखते हैं, तो उसमें पाटन नहीं बनाया जाता। केवल हल्का ढलान बनाते हैं।
पड़ोसी मोवाला गांव की रहने वाली सुकली बाई बामनी गांव में अपनी बेटी के घर आई हुई थीं। यहां से उनका गांव पांच किलोमीटर दूर है और वह यहां तक पैदल ही चलकर आई हैं। वह बताती हैं कि इन घरों की दीवारों को मजबूती देने के लिए बनाते समय इनमें बाजरे के तिनके या भूसा मिलाया जाता है। इससे दीवारें इतनी मजबूत हो जाती हैं कि वर्षों तक यूं ही खड़ी रहती हैं। इन घरों की एक विशेषता यह है कि ये चिलचिलाती गर्मी के मौसम में भी ठंडे रहते हैं।
![Mud Houses of Kanha Tribals](https://theindiantribal.com/wp-content/uploads/2023/11/kanha-5-1024x768.jpg)
![Mud Houses of Kanha tribal](https://theindiantribal.com/wp-content/uploads/2023/11/kanha-4-1024x768.jpg)
सुकली बाई ने बताया कि घर बनाने के लिए पास के गांवों से मिट्टी लायी जाती है, लेकिन देखना होता है कि यह अच्छी गुणवत्ता की हो। कई जगह लोग दिवाली के आसपास अपने घरों की दीवारों को चूने से रंगते हैं। इससे इनकी खूबसूरती और बढ़ जाती है। मिट्टी के घरों को मजबूत लकड़ी की कड़ी का सहारा देकर रोका जाता है। इस तरह इनसे लगते और कमरे आसानी से बनाए जा सकते हैं।
ढलान वाली छत बनाने के बारे में गुडमा गांव में महार समुदाय के कुंदन लाल वासनिक कहते हैं कि यहां अत्यधिक बारिश में ढहने से बचाने के लिए घर की छत ढलानदार बनाई जाती है, ताकि पानी आसानी से नीचे आ सके और कहीं ठहरकर दीवारों में न रिसे। इन मकानों की छत पर लाल रंग की खपरैल डाली जाती हैं, जिन्हें मिट्टी से घर पर ही तैयार किया जाता है। बारिश के कारण ये खपरैल धीरे-धीरे खराब हो जाती हैं। इसलिए हर तीन-चार साल में इन्हें बदलना पड़ता है।
![Tribal houses in Kanha](https://theindiantribal.com/wp-content/uploads/2023/11/kanha-7-1024x768.jpg)
बंधा टोला गांव में एक बहुत ही खूबसूरत घर दिखा, जिसमें बड़ा सा स्टोर रूम भी था। उसमें अनाज भरा था। स्टोर रूम तक पहुंचने के लिए घर के अंदर ही सीढिय़ां बनी हुई थीं। इन सीढिय़ों पर अमूमन अंधेरा रहता है, क्योंकि ये घर के ऐसे हिस्से में बनी होती हैं, जहां सूरज की रोशनी नहीं पहुंच पाती। कमरे की छत मजबूत लकड़ी के भारी-भरकम लट्ठों या कड़ी डालकर रोकी जाती है। छत को सहारा देने के लिए ऐसे कड़ी खड़ी और पट दोनों तरह से रखी जाती हैं। इसके अलावा इन घरों में एक और चीज खास देखने को मिली, वह मिट्टी से बना आयताकार कंटेनर, जिसे स्थानीय बोली में घोरसी कहते हैं। बैगा जनजाति के सानियारो टेकम बड़े गर्व से बताते हैं कि इन घोरसी में पांच कुंतल धान आराम से रखा जा सकता है। लोग अमूमन इसे बिल्कुल सील बंद करके रखते हैं, ताकि अनाज खराब न हो।