जगदलपुर
बहुत समय नहीं गुजरा जब आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ के बस्तर और दंतेवाड़ा का नाम आते ही लोगों में भय फैल जाता था। नक्सलियों का खौफ इस कदर कि उन क्षेत्रों में जाने से भी लोग कतराते, लेकिन वामपंथी उग्रवाद अब कुंद पड़ गया है। अब जिले में पर्यटन गतिविधियों को बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। इसी के साथ उभर कर आ रहा है नया बस्तर।
कभी इस बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था, लेकिन अब आश्चर्य की बात नहीं है कि गांव-गांव बिजली पहुंच रही है। जल जीवन मिशन के तहत सौर ऊर्जा के माध्यम से पेयजल आपूर्ति की परियोजनाएं चल रही हैं। साथ ही साथ पर्यटकों के लिए होमस्टे (विश्राम स्थल) और जंगल ट्रेल्स बन रहे हैं।
जिला मुख्यालय जगदलपुर से 40 किलोमीटर दूर कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के आसपास के गांवों में रोजगार के साधन बढ़ाने के लिए स्थानीय युवाओं को पर्यटक गाइड के रूप में प्रशिक्षित किया जा रहा है।
होमस्टे विकास परियोजना के तहत 10 लाभार्थियों को एक लाख रुपये का ऋण वितरित किया गया है। इस क्षेत्र के धुरवा डेरा में कयाकिंग और कांगेर घाटी के तीरथगढ़ जलप्रपात क्षेत्र में मानसून ट्रेल्स पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बनते जा रहे हैं।
पर्यावरण पर्यटन यानी ईको टूरिज्म को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयासों के बारे में कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक धम्मशिल गणवीर ने The Indian Tribal को बताया कि जितनी बड़ी संख्या में लोग बस्तर देखने आने के लिए रूचि दिखा रहे हैं, इसके मद्देनजर यहां और अधिक होमस्टे बनाने की आवश्यकता है। कांगेर घाटी पार्क प्रबंधन केंद्र सरकार को 50 नए होमस्टे बनाने का प्रस्ताव भेजने की प्रक्रिया में है। इसके साथ ही इस जगह को यूनेस्को विरासत स्थल का दर्जा देने का प्रस्ताव भी भेजा जा रहा है।
उन्होंने कहा कि कांगेर घाटी को यूनेस्को विरासत स्थल का दर्जा देने के प्रयासों के तहत एक परामर्शदात्री कार्यशाला का आयोजन किया गया था। इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए भारतीय पर्यटन और यात्रा प्रबंधन संस्थान के साथ मिलकर कदम उठाए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि आदिवासियों को प्रशिक्षित करने की जरूरत है, ताकि वे भविष्य में अपने दम पर होमस्टे यानी विश्राम स्थलों का संचालन कर सकें। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोग एक साथ मिलकर सामुदायिक होमस्टे बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
रोजगार के अवसर सुनिश्चित करने के लिए पर्यटन को बढ़ावा देना बहुत जरूरी है, लेकिन ये प्रयास कहीं-कहीं हानिकारक भी हो सकते हैं। विशेष रूप से ऐसे क्षेत्रों में, जहां बड़ी संख्या में आदिवासी रहते हैं।
लेकिन कांगेर घाटी से लगभग आठ किमी दूर दूधमारस गांव में धुरवा डेरा होमस्टे के मालिक मानसिंह बघेल कहते हैं कि यदि स्थिरता के पहलू को ध्यान में रखा जाए, तो पर्यटकों का आना कोई समस्या नहीं है। उनका यह विश्राम स्थल पिछले साल दिसंबर में ही खुला था। इसी तरह तीरथगढ़ जलप्रपात में भी कांगेर घाटी प्रबंधन ने पर्यटकों की मदद के लिए पर्यावरण विकास समिति बनाई है।
इस समिति के एक सदस्य उमेश बघेल ने कहा कि वर्तमान में समिति के 23 सदस्य हैं। इनमें 13 महिलाएं हैं। हालांकि, कुछ युवा उच्च शिक्षा के लिए चले गए हैं, जबकि कुछ महिलाओं की शादी हो गई है।
उमेश के अनुसार, इस क्षेत्र में तीरथगढ़ झरना मुख्य आकर्षण का केंद्र है। हालांकि आसपास भी कई छोटे झरने हैं, जहां पर्यटकों को घुमाने ले जाया जाता है। हां, यदि इनमें पानी का स्तर अधिक होता है, तो पर्यटकों को वहां जाने से रोक दिया जाता है। यहां आना काफी साहसिक और रोमांचक होता है, लेकिन पर्यटकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अनावश्यक जोखिम से बचते हैं। हालांकि, यहां पर्यटकों को वास्तविक जंगल का अनुभव होता है और वे बड़े शौक से आदिवासी भोजन का स्वाद चखते हैं। यदि बारिश न हो तो हम पर्यटकों के लिए अलाव के साथ-साथ गाने और नृत्य की भी व्यवस्था करते हैं।
उमेश कहते हैं कि चूंकि पर्यटक आदिवासी संस्कृति को खूब पसंद करते हैं और इसे सराहते हैं, इसलिए समिति से जुड़े हम जैसे युवाओं की यह जिम्मेदारी बनती है कि अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाएं और इसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाएं।
पर्यावरण विकास समिति पर्यटकों द्वारा छोड़े गए प्लास्टिक सामान और बोतलों के जिम्मेदारीपूर्ण निपटान के बारे में भी जागरूकता फैलाती है। समिति यह सुनिश्चित करने की कोशिश करती है कि पर्यटन क्षेत्र पूरी तरह साफ-सुथरे रहें। जो पर्यटक बहुत अधिक रोमांचपूर्ण गतिविधियों में हिस्सा लेने में रूचि नहीं रखते, उनके लिए धुरवा डेरा होमस्टे हमेशा तैयार रहता है, जहां अब तक पर्यटकों के लगभग 20 समूह अपना समय गुजारने आ चुके हैं।
मानसिंह बघेल कहते हैं कि यहां अकेले पर्यटक कम आते हैं। नाममात्र भोजन शुल्क के साथ यहां एक रात ठहरने का 1500 रुपये लगता है। हम यहीं खाना बनाते और मेहमानों को परोसते हैं। पर्यटकों के लिए बस्तर की मैना एक अतिरिक्त आकर्षण होता है, जो यहां आसानी से देखी जा सकती है। पिछले साल स्थानीय युवाओं को मैना मित्र के रूप में शामिल करने वाले गणवीर कहते हैं कि बस्तर में मैना की आबादी पुन: बढ़ रही है और यह पक्षी अब 15 गांवों में बहुतायत में दिखाई दे रहे हैं।