आइज़ॉल/ गुवाहाटी
एक दिलकश कला की खास पहचान यह होती है कि उसमें नयापन हो, फिर भी किसी परिचित चीज से मेल खाती हो। ऐसी कलाकृति बनाने के लिए कलाकार को पारंपरिक कला के बारे में गहराई से जानकारी होने के साथ-साथ उसकी शब्दावली और उसके असंख्य रूपों की समझ होनी चाहिए। मिज़ोरम में आइज़ॉल की आर्ट नॉवेल्टी गैलरी की मशहूर कलाकार और मालिक लालहमिंग मावी बिल्कुल इसी दिशा में प्रयासरत हैं।
कला जगत में अमोई के नाम से विख्यात मावी बताती हैं कि वह जिस आर्ट गैलरी का संचालन कर रही हैं, वह कलात्मक अभिव्यक्ति के नए रूपों को सामने लाने की कोशिश करती है और कला के विकास के लिए एक मंच के रूप में कार्य करती है। वह पूरे आत्मविश्वास के साथ कहती हैं कि राज्य में शायद ही ऐसी कोई अन्य जगह (आर्ट गैलरी) हो।
अमोई ने The Indian Tribal के साथ बातचीत में कहा कि वह युवा कलाकारों को आगे बढ़ाने के लिए राज्य ग्रामीण विकास संस्थान (एसआईआरडी) जैसी एजेंसियों के साथ काम कर रही हैं, ताकि पेशेवर कलाकारों के मार्गदर्शन में ये युवा रचनात्मक अभिव्यक्ति के नए रूपों को अपनी कला में ढाल सकें और आधुनिकीकरण के कारण विलुप्त होते मिज़ोरम के कलात्मक लोकाचार को आगे बढ़ा सकें।
पिछले साल एसआईआरडी के सहयोग से अमोई ने ऐसे होनहार कलाकारों का चयन करने के लिए सतत उद्यमिता विकास कार्यक्रम का आयोजन किया, जिन्हें पारंपरिक मिज़ो ड्राइंग-पेंटिंग, लकड़ी और पत्थर की नक्काशी और मिट्टी के बर्तनों पर पेंटिंग बनाने के लिए प्रशिक्षित किया गया था। वह बताती हैं कि इन कलाकारों ने अभी-अभी अपनी उद्यमिता यात्रा शुरू की है और हमें उम्मीद है कि आने वाले कुछ ही वर्षों में ये अपनी विशेष पहचान बना लेंगे।
एक अनुभवी कलाकार के रूप में अमोई आकर्षक पेंटिंग बनाती हैं। वह बताती हैं कि उनकी रुचि मिज़ोरम की परंपराओं, संस्कृति, लोककथाओं और सामाजिक मूल्यों के प्रसार में अधिक है। वह एक मां के रूप में अपनी पहचान कायम रखने और मिज़ो समाज में एक महिला होने का क्या मतलब है, इससे संबंधित विषयों पर केंद्रित चित्रकारी को महत्व देती हैं।
वह विस्तार से यह भी बताती हैं कि अपनी रचनाओं में बहुत सारे पारंपरिक रूपांकनों का उपयोग करती हैं और कई सामाजिक विशेष रूप से लिंग आधारित मुद्दों पर सवाल उठाती हैं। उनका काम मूल रूप से महिला उन्मुख है। हालांकि उनकी बहुत सी कलाकृतियां तटस्थ भी हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या मिज़ो कला की कोई व्यापक पहचान है, यह विख्यात आदिवासी कलाकार कहती हैं कि वास्तव में, यह कहना सुरक्षित होगा कि मिज़ो कला के कोई परिभाषित तत्व नहीं हैं, क्योंकि कोई सुसंगत शैली या रूप नहीं हैं, जिन्हें विशेष तौर पर मिज़ो कला कहा जा सके।
परंपरागत रूप से कला में अभिव्यक्ति के मिज़ो रूप भिन्न थे। आज हम जिस पेंटिंग या मूर्तिकला से परिचित हैं, वह दरअसल, मिज़ोरम में ईसाई धर्म की शुरुआत के समय लाई गई आधुनिकता का एक रूप है। अमोई रेखांकित करते हुए कहती हैं कि हालांकि, शुरुआती कलाकारों द्वारा स्वदेशी आंदोलनों के ऐसे उदाहरण भी हैं, जिन्होंने ऐसी कलाकृतियां बनाने की कोशिश की, जिन्हें किसी तरह मिज़ो आर्ट कहा जा सकता है।
कुछ कलाकारों का मानना है कि मिज़ो ड्राइंग और पेंटिंग, मिज़ो लकड़ी एवं पत्थर की नक्काशी जो आज देख रहे हैं, वह उन्हीं स्वदेशी आंदोलनों का परिणाम है। अमोई मिज़ोरम आर्ट डेवलपमेंट सोसाइटी की पदाधिकारी रह चुकी हैं और संयोग से वह एकमात्र महिला कलाकार हैं, जो मिज़ोरम में आर्ट गैलरी चलाती हैं।
अमोई को रानी लक्ष्मीबाई कला पुरस्कार जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले हैं। यह पुरस्कार उन्हें 2021 में मणिकर्णिका आर्ट गैलरी द्वारा प्रदान किया गया था। उनकी बनाई पेंटिंग अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय कला प्रदर्शनियों में प्रदर्शित की जाती रही हैं। वह कला कार्यशालाओं और सेमिनारों के क्षेत्र की प्रतिष्ठित हस्ती हैं। सबसे बड़ी बात यह कि कलाकार के रूप में वह आज जिस मुकाम पर हैं, वह उन्होंने अपने दम पर हासिल किया है।