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Home » द इंडियन ट्राइबल / हिंदी » विविध » मणिपुर में जातीय संघर्ष को नजरअंदाज करना हुआ खतरनाक

मणिपुर में जातीय संघर्ष को नजरअंदाज करना हुआ खतरनाक

भारत के सबसे उग्रवाद प्रभावित प्रदेश मणिपुर में जातीय दुराव या संघर्ष को कम करके आंकने का ही परिणाम है कि वहां महीनों से हिंसा काबू में नहीं आ रही है। लगभग 15 संगठन जनजाति और समुदाय के आधार पर आपस में खूनखराबा करते रहे हैं। मृत्तिका जैन की रिपोर्ट

October 6, 2023
Violence Hits Manipur Again

मणिपुर में हिंसा का एक भयावह दृश्य (फाइल)

नई दिल्ली

मणिपुर में कई महीने से जारी हिंसा ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यहां बेकाबू हुई हिंसा के कई कारणों पर बात हो रही है, लेकिन जो असली वजह है और जिस पर बहुत कम चर्चा हो रही है, वह है जातीय संघर्ष।

मई की शुरुआत से ही मणिपुर में हिंसा की घटनाएं सामने आने लगी थीं। उसके बाद से यहां रुक-रुक कर खूनखराबे का दौर जारी है, लेकिन इस हिंसा की जड़ काफी पीछे ऐतिहासिक रूप से शक्तिशाली एवं बहुसंख्यक मैतेई और सामाजिक रूप से पिछड़े एवं अल्पसंख्यक कुकी जनजाति के बीच लंबे समय से पनप रही दुर्भावना रही है। समय-समय पर दोनों समुदायों के बीच धार्मिक कलह भी एक-दूसरे से दूर होने का कारण है।

भारत में जहां जाति आधारित संघर्ष, सांप्रदायिक और सामाजिक-धार्मिक विभाजन सबसे अधिक ध्यान खींचते हैं, वहीं ‘अंतर-जनजातीय’ और ‘आदिवासी बनाम अन्य’ तनाव को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। लेकिन, जैसा कि मणिपुर में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है- अगर पूर्वोत्तर की आवाज नहीं सुनी गई तो इसके बहुत ही विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।

कथित मैतेई भीड़ द्वारा दो कुकी आदिवासी महिलाओं के यौन उत्पीडऩ के वीडियो ने सभी को झिंझोड़ कर रख दिया था। इन वीडियो को देखकर हर कोई सन्न रह गया। राज्य सरकार का एक दिन बाद जागना तो और भी अधिक चौंकाने वाला था। वैसे यह कोई अकेला ऐसा उदाहरण नहीं है। ऐसे उत्पीडऩ और सरकारों की उदासीनता के कारण ही मणिपुर के पहाड़ी जिलों में कुकी-ज़ो समुदाय अलग प्रशासन की मांग कर रहा है। यह मांग अब जोर पकड़ती जा रही है। हाल के दिनों में यह पूर्वोत्तर राज्य एक मैतेई युवक और युवती के कथित अपहरण और हत्या के कारण फिर से हिंसा के चपेट में आया है।

Manipur Violence
मैतेई युवक और युवती के कथित अपहरण और हत्या के विरोध में प्रदर्शन करते स्टूडेंट्स

गुवाहाटी स्थित असम इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च फॉर ट्राइबल्स एंड शेड्यूल्ड कास्ट्स के आशिम बोरा द्वारा संकलित ‘अंतर-आदिवासी संघर्ष और महिला एवं बच्चों पर इसका प्रभाव (2017)’  रिपोर्ट के अनुसार लगातार मौतें देखने के कारण होने वाला शारीरिक और मानसिक तनाव, अलगाव, बलात्कार, यातना, विनाश, आजीविका पर चोट और भौतिक अभावों ने महिलाओं को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया है। यही नहीं, उन्हें पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाएं तक उपलब्ध नहीं हैं। रिपोर्ट यह भी कहती है कि ऐसे संघर्ष के दौरान जीवित बचे लोगों और बच्चों की देखभाल का बोझ पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर बहुत अधिक होता है।

यह भी सच है कि दंगे या हिंसा के दौरान महिलाएं सबसे आसान लक्ष्य होती हैं। लड़ाई के समय विरोधी समूह अक्सर सबसे पहले उन्हें ही निशाना बनाते हैं। मणिपुर में प्रशासनिक और पुलिस तंत्र की नाकामी की वजह से निजी मिलिशिया या उग्रवादी संगठनों की ताकत बढ़ी है। इससे अराजकता और अनियंत्रित हिंसा की घटनाएं उभर रही है।

आगजनी, लूटपाट, यौन उत्पीडऩ, लिंचिंग और जलाने की घटनाओं से आदिवासी भय और अलगाव के वातावरण में जीने को मजबूर हो रहे हैं। कई निर्दोष मैतेई भी राज्य छोड़ कर भाग गए हैं। हाल ही में हिंसा में लिप्त समुदायों की धमकियों और हथियारों एवं गोला-बारूद की लूट की घटनाओं के बीच पड़ोसी मिजोरम और असम भी संघर्ष की चपेट में आते दिख रहे हैं।

बोराह का कहना है कि हाल में हिंसक घटनाओं में हथियारों के इस्तेमाल से क्षेत्र में संघर्ष की प्रकृति बदली है। दूसरे पर हावी होने के लिए लोग तेजी से युद्ध के वैकल्पिक तरीके आजमा रहे हैं।

Manipur Violence
सुरक्षा बलों द्वारा ज़ब्त किये गए अवैध हथियार

प्रशासनिक प्रणाली में सुधार का खाका तैयार करने के लिए 2005 में गठित प्रशासनिक सुधार आयोग मणिपुर को सबसे अधिक उग्रवाद प्रभावित राज्य मानता है। उसके अनुसार यहां लगभग 15 हिंसक संगठन जनजाति और समुदाय के आधार पर आपस में लड़ रहे हैं। आयोग का यह भी मानना है कि ऐसे हिंसक गुट राज्य में जबरन वसूली की गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं।

उत्तर-पूर्व के राज्य में हिंसा की वजह यहां गरीबी,  बेरोजगारी एवं पिछड़ापन है। इसी के कारण दबे-कुचले तबकों का उत्पीडऩ होता है। बड़ी बात यह कि लाचारी इस क्षेत्र के युवाओं को ड्रग्स और हथियारों की तस्करी, हिंसा एवं विभाजनकारी गतिविधियों के चक्र में फंसा रही है। अनियंत्रित अपराधों का कारण भी यही बेकारी, लाचारी  एवं गरीबी है।

केंद्र सरकार ने 2023-24 के अपने बजट में उत्तर-पूर्व के लिए वर्ष-दर-वर्ष दोगुनी से भी अधिक धनराशि बढ़ाते हुए 5,892 करोड़ रुपये निर्धारित किए हैं। इस राशि के तहत जनजातियों के विकास, सुरक्षा और पोषण के लिए कई योजनाओं का खाका खींचा गया है। जमीनी स्तर पर इसका कितना असर होगा, यह अभी देखना बाकी है। हालांकि पहली जरूरत तो अब राज्य में हिंसा की आग को बुझाना है। उसके बाद ही विकास के बारे में सोचा जा सकता है।

प्रशासनिक सुधार आयोग ने ‘संघर्ष समाधान के लिए क्षमता निर्माण’ नामक अपनी रिपोर्ट में बताया है कि राष्ट्रीय और उप-क्षेत्रीय अशांति के अलावा जातीय संघर्ष उत्तर-पूर्व को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं।

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, आदिवासी भारत की पूरी आबादी का केवल 8.6 फीसद हैं और उनकी संख्या 1,045.46 लाख है।

हालांकि, पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश में (68.8 फीसद), असम (12.4 फीसद), मणिपुर (40.9 फीसद), मेघालय (86.1 फीसद), मिजोरम (94.4 फीसद), नागालैंड (86.5 फीसद), सिक्किम (33.8 फीसद) और त्रिपुरा (31.8 फीसद) लगभग सभी में पर्याप्त जनजातीय आबादी रहती है।

देश की कुल आबादी की तुलना में आदिवासियों की कम संख्या इनमें असुरक्षा की भावना को उजागर करती है। इसके अलावा भारत की जनजातियां पहले से ही कई प्रतिकूलताओं से जूझ रही हैं, जिनमें से कुछ उनके अस्तित्व को खतरे में डालती हैं, इसमें जातीय तनाव भी शामिल हैं। मणिपुर जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए कुछ गंभीर हस्तक्षेप किए जाने की जरूरत है।

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In Numbers

49.4 %
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झारखण्ड स्थापना दिवस: बिरसा मुंडा, शिबू सोरेन पर लगेगी विशेष प्रदर्शनी

झारखण्ड अपनी स्थापना के 25 वर्ष, 15 नवंबर को पूरे कर रहा है। इस ऐतिहासिक अवसर पर राज्य सरकार द्वारा 'रजत जयंती' वर्ष को भव्य और यादगार बनाने का निर्णय लिया है। इसके अन्तर्गत राजधानी रांची के मोराबादी मैदान में 15 और 16 नवम्बर को दो दिवसीय विशेष महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस महोत्सव में झारखंड के सभी विभागों के स्टॉल लगाए जाएंगे, जहां आगंतुकों को सरकार की विभिन्न योजनाओं और उपलब्धियों की विस्तृत जानकारी प्राप्त होगी। महोत्सव का सबसे बड़ा आकर्षण भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती और  'दिशोम गुरु' शिबू सोरेन जी की जीवनी पर आधारित विशेष प्रदर्शनी होगी, जो झारखंड के इतिहास और संघर्ष को जीवंत करेगी। इसके साथ ही, एक इमर्सिव ज़ोन भी बनाया जाएगा, जहां विभिन्न विषयों पर फिल्में और जानकारी प्रदर्शित की जाएगी। इसके साथ ही सरकार की विभिन्न योजनाओं की विस्तृत जानकारी भी आम जनों के लिए रखी गई है जिसका लाभ  महोत्सव परिसर में  घूमते हुए लिया जा सकेंगे। यह महोत्सव आम जनों को झारखंड के अतीत का दर्शन कराएगा और साथ ही भविष्य की आशाओं और कल्पनाओं से जोड़ेगा।
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The Indian Tribal is India’s first bilingual (English & Hindi) digital journalistic venture dedicated exclusively to the Scheduled Tribes. The ambitious, game-changer initiative is brought to you by Madtri Ventures Pvt Ltd (www.madtri.com). From the North East to Gujarat, from Kerala to Jammu and Kashmir — our seasoned journalists bring to the fore life stories from the backyards of the tribal, indigenous communities comprising 10.45 crore members and constituting 8.6 percent of India’s population as per Census 2011. Unsung Adivasi achievers, their lip-smacking cuisines, ancient medicinal systems, centuries-old unique games and sports, ageless arts and crafts, timeless music and traditional musical instruments, we cover the Scheduled Tribes community like never-before, of course, without losing sight of the ailments, shortcomings and negatives like domestic abuse, alcoholism and malnourishment among others plaguing them. Know the unknown, lesser-known tribal life as we bring reader-engaging stories of Adivasis of India.

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