नबरंगपुर/भुवनेश्वर
वह साहसी है, मेहनती है, समर्पित है… कितने ही विशेषण इस दृढ़प्रतिज्ञ महिला की प्रशंसा के लिए कम पड़ जाते हैं। डंडासारा गांव की 29 वर्षीय बिनिका स्मिता बेनिया, जिन्हें प्यार से लोग रश्मि बुलाते हैं, वैसे कमजोर और नाजुक दिखती हैं, लेकिन उनमें एक योद्धा सी आग और दृढ़ता कूट-कूट कर भरी है।
वर्ष 2016 में अपने पिता की मृत्यु के बाद जीवन की कठिनाइयों और कड़वी चुनौतियों का सामना करते हुए उन्होंने अपनी विधवा मां मनोरमा के साये में निडर होकर जीना सीख लिया है। उनकी मां आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं।
कॉलेज की पढ़ाई बीच में छोडऩे वाली रश्मि ने पहले स्कूल में पढ़ाया और फिर 2018 तक एक पैरामेडिक के रूप में काम किया। इसी दौरान उनके बीमार छोटे भाई की मौत हो गई। पहले पिता और फिर भाई को खोने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
बचपन से ही रश्मि के दिल में समाज सेवा की भावना भरी थी और इस दिशा में कुछ कर गुजरने का अवसर उन्हें 2019 में मिला। अब वह यूनिसेफ के संपूर्ण बार्टा प्रोजेक्ट के तहत क्लस्टर समन्वयक के रूप में कार्य कर रही हैं। उन्होंने इलाके में बाल विवाह के खिलाफ जंग छेड़ दी है। रश्मि कहती हैं कि पास के कोरापुट में यूनिसेफ के तहत केवल दो दिन के प्रशिक्षण ने मुझे इस सामाजिक बुराई के खिलाफ खड़ा होने के लिए तैयार कर दिया।
रायघर ब्लॉक के अंतर्गत तुरपेना में उनका पहला प्रयास थोड़ा नाकाम रहा, क्योंकि बाल विवाह के खिलाफ उनकी मुहिम आम लोगों में नाराजगी का सबब बन सकती थी। हालांकि, उन्होंने हिम्मत जुटाई और आंगनवाड़ी केंद्र में इलाके के कुछ नेताओं (ज्यादातर गोंड जनजाति के) के साथ चर्चा के लिए बैठ गईं। बातचीत हालांकि सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई, फिर भी यह दिखावा ही साबित हुई।
बाहरी तौर पर तो स्थानीय लोग उसके साथ खड़े दिखते थे, लेकिन हकीकत में वे बाल विवाह की प्रथा को त्यागने के लिए तैयार नहीं थे।
एक के बाद एक लगे झटकों से सबक सीखते हुए रश्मि ने बिना डरे उत्साह के साथ अपने मिशन को जारी रखा। आखिरकार, मुहिम रंग लाई और समर्पित सामाजिक कार्यकर्ताओं के अपने समूह के साथ मिलकर उन्होंने तुरपेना में कई बाल विवाह रुकवाए।
रश्मि ने The Indian Tribal को बताया कि अब तक उन्होंने 217 से अधिक गांवों में बाल विवाह के खिलाफ अपने मिशन को पहुंचाया है। तमाम बाधाओं के बावजूद यहां 18 से अधिक बाल विवाह को विफल किया। इस दौरान लोगों ने उन्हें डराया, धमकाया और लड़े भी, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
अपने अनुभव साझा करते हुए वह बताती हैं कि एक बार मुझे रायघर ब्लॉक के अंतर्गत भसुंडी कॉलोनी में बाल विवाह के बारे में पता चला। मैं वहां पहुंची तो लगभग 40 लोगों ने मुझे वहां से भगाने के लिए हर तरह की कोशिश की। लेकिन, मैं अड़ गई। आखिरकार, वह शादी नहीं हो पाई। इलाके के एक आदिवासी ने उनके बारे में कहा कि यह लडक़ी हम सभी को बाल विवाह जैसी बुराई से दूर कर सकती है।
एक अन्य घटना में रायघर ब्लॉक के अंतर्गत ही रहसपुर के दो नाबालिग अपने माता-पिता के सहयोग से शादी करने के लिए छत्तीसगढ़ के नजदीकी इलाके में भाग गए। रश्मि पुलिस के साथ उनके घर पहुंच गई।
रश्मि बताती हैं कि बाल विवाह रोकथाम अधिनियम के तहत वह अपराधियों को गिरफ्तार करवाने के लिए प्रतिबद्ध थी। दबाव पड़ा तो दोनों नाबालिगों के माता-पिता ने उनसे संपर्क साधा और अंतत: वे दोनों वापस आ गए।
रश्मि का मिशन जारी है। सरकार और यूनिसेफ के अधिकारी उनके साहस और बाल विवाह के खिलाफ उनकी दृढ़ता की प्रशंसा कर रहे हैं। रश्मि अब ब्लॉक बाल संरक्षण समिति, रायघर की सदस्य हैं। नबरंगपुर की बाल विवाह निषेध अधिकारी गीतांजलि मिश्रा कहती हैं कि उन्होंने यह कामयाबी केवल अपने काम के दम पर अर्जित की है। यूनिसेफ के अधिकारी संतोष बेहरा ने कहा कि रश्मि का अथक प्रयास अब परिणाम दे रहा है।
मालूम हो कि ओडिशा सरकार ने राज्य को बाल विवाह से मुक्त बनाने के लिए 2030 तक का लक्ष्य रखा है।
बाल विवाह: कुछ जरूरी तथ्य
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2019-20 में नबरंगपुर में 39.4 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में हुई, जबकि ओडिशा का औसत उस समय 20.5 प्रतिशत और राष्ट्रीय औसत 23.3 प्रतिशत था।
- ओडिशा सरकार ओडिशा पीसीटीजी सशक्तिकरण और आजीविका सुधार कार्यक्रम (ओपीईएलआईपी) के तहत 62 आदिवासी समूहों में से 13 में विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों ((पीवीटीजी)) के बीच देर से विवाह को प्रोत्साहित करने और बाल विवाह को हतोत्साहित करने के लिए नकद प्रोत्साहन राशि प्रदान करती है।
- प्रोत्साहन राशि रु. 2018-19 में 2000 रुपये से बढ़ाकर 2020-21 में 10,000 और 2021-22 में 20,000 कर दी गई। वर्ष 2020-21 में 143 लड़कियों को प्रोत्साहन राशि मिली, जबकि वर्ष 2021-22 में यह संख्या बढक़र 180 हो गई।
- एनएफएचएस-4 (2015-16) के अनुसार ओडिशा में बाल विवाह का प्रचलन 21.3 प्रतिशत था। एनएफएचएस-5 (2019-20) में यह घटकर 20.5 प्रतिशत हो गया।-देशभर में बाल विवाह निषेध अधिनियम के प्रावधानों के तहत 2018 से 2020 के बीच 1,798 मामले दर्ज किए गए। इनमें ओडिशा से 68 मामले रहे।