रांची
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आज कहा कि देश का सबसे ज्यादा खनिज झारखंड में मिलता है। देशभर के इंडस्ट्रीज झारखंड के खनिजों से चलते हैं लेकिन फिर भी यह राज्य पिछड़ा और यहां के लोग गरीब हैं। जब हमारी सरकार बनी तो हमने इस पर गंभीरता से विचार किया तो पता चला कि यहां के आदिवासियों की पहचान को मिटाने का प्रयास किया जा रहा है । यह कहीं ना कहीं आदिवासी के साथ साथ काफी विचित्र स्थिति थी। ऐसे में हमारी सरकार ने आदिवासियों को विकास से जोड़कर और उन्हें आगे बढ़ाने का प्रयास किया है । इस दिशा में हमने ऐसे कई निर्णय लिए हैं, जो काफी सालों पहले लागू हो जाने चाहिए थे, लेकिन दुर्भाग्य से लागू नहीं हो सके।
सोरेन झारखण्ड आदिवासी महोत्सव के आयोजन के पीछे की सोच और आदिवासियों के विकास और पहचान के साथ राज्य कैसे आगे बढ़ेगा, इस प्रश्न का जवाब दे रहे थे।
उन्होंने कहा कि मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक आदिवासी मुख्यमंत्री हूं। आज देश की सवा सौ करोड़ की आबादी में तेरह करोड़ आदिवासी हैं। इन आदिवासियों की आईडेंटिटी बरकरार रखने के लिए मैं प्रतिबद्ध हूं। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी सरकार सभी आदिवासी समुदायों को कनेक्ट करने का प्रयास कर रही है। इन्हें विकास से जोड़ा जा रहा है। सरकार में ऐसे कई निर्णय लिए हैं, जिनसे आदिवासियों को एक अलग आईडेंटिटी मिल रही है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि ट्राइबल आईडेंटिटी की तलाश अभी भी जारी है । झारखंड राज्य की उत्पत्ति भी ट्राइबल आइडेंटिटी के साथ हुई है। लेकिन, आज भी यह अपनी वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं। एकीकृत बिहार और अलग झारखंड राज्य बनने के बाद कभी भी आदिवासी महोत्सव का आयोजन नहीं हुआ। लेकिन, हमारी सरकार पिछले दो वर्षों से आदिवासी महोत्सव का आयोजन कर रही है। इसका मकसद आदिवासी पहचान को आगे बढ़ाना है। देश की सवा सौ की आबादी में 13 करोड़ आदिवासियों की पहचान मिटाने की साजिश चल रही है , लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे। आदिवासियों की आदिकाल से अलग पहचान रही है और आगे भी बनी रहेगी।
अलग सरना कोड से आदिवासियों को क्या हासिल होगा? इस प्रश्न के जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा कि देश में जो आदिवासी समुदाय रहते हैं, उन्हें कुछ तो अलग पहचान मिलनी चाहिए। इतिहास में जो आदिवासियों की अलग जगह है, उसे क्यों समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है? इस पर हमें गंभीर मंथन करने की जरूरत है। अगर आदिवासियों को अलग पहचान दिलाना है तो उनके लिए कुछ तो अलग व्यवस्था होनी चाहिए। इसी कड़ी में हमारी सरकार ने सरना अलग धर्मकोड का प्रस्ताव विधानसभा से पारित कर केंद्र सरकार को भेजा है। जिस तरह आदिवासी अपने वजूद के लिए लंबा संघर्ष करते रहे हैं,आगे भी आदिवासी सरना अलग धर्म कोड के लिए भी लंबा संघर्ष करने के लिए तैयार हैं, और इसमें झारखण्ड के आदिवासी सबसे अहम भूमिका निभा रहे हैं।
मुख्यमंत्री सोरेन ने कहा कि झारखंड की धरती से भगवान बिरसा मुंडा और सिदो कान्हू जैसे वीर शहीद पैदा हुए हैं। जिन्होंने अंग्रेजों और महाजनों के शोषण तथा जुल्म के विरुद्ध संघर्ष करते हुए अपने को बलिदान कर दिया। मेरे दादा जी और पिताजी इस कड़ी में लंबा संघर्ष किए हैं। मैं यह कह सकता हूं कि शोषण और जुल्म के खिलाफ उनका संघर्ष मेरे लिए प्रेरणा का काम किया है और जनरेशन- टू- जनरेशन यह मुझे विरासत में मिली है।
आदिवासियों के लिए केंद्र और राज्य सरकार के अलग मंत्रालय और विभाग हैं। लेकिन आदिवासियों के नाम पर कॉन्ट्रोवर्सी पैदा हो रही है । कभी इसे वनवासी कहा जाता है तो कभी कुछ और। मेरा मानना है कि आदिवासी जल जंगल जमीन से जुड़े हैं, और यही उनकी पहचान भी है।
पर्यावरण संरक्षण और क्लाइमेट चेंज पर सोरेन ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर आज बड़ी-बड़ी संस्थाएं काम कर रही हैं। बड़े-बड़े होटलों में सेमिनार, संगोष्ठी और कार्यशाला जैसे कई कार्यक्रम होते हैं। लेकिन, क्लाइमेट चेंज पर लगाम नहीं लग रहा है। आखिर ऐसा क्यों? मेरा मानना है कि जो नीति निर्धारक होते हैं , वे क्लाइमेट चेंज को लेकर बहस तो करते हैं , लेकिन जब नीति निर्धारण की बारी आती है तो नियंत्रण करने की बजाय इसे बिगाड़ देते हैं।
दूसरी ओर आदिवासियों का जल जंगल और जमीन से गहरा नाता है । हमारी सरकार क्लाइमेट चेंज को नियंत्रित करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस दिशा में सरकार अपने आवासीय परिसर में एक पेड़ लगाने वालों को 5 यूनिट बिजली फ्री दे रही है । इसी तरह के और भी कई निर्णय लिए गए हैं। मैं कह सकता हूं कि जल जंगल और जमीन के साथ समन्वय बनाकर विकास को हम आगे बढ़ा रहे हैं।