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Home » द इंडियन ट्राइबल / हिंदी » झरने, बारिश, पत्तों की आवाज से संगीत रचना इस आदिवासी बैंड की खासियत है

झरने, बारिश, पत्तों की आवाज से संगीत रचना इस आदिवासी बैंड की खासियत है

मेघालय की धरती से निकलती संगीत की धुनों को बांधता यह पांच युवाओं का बैंड आजकल खूब लोकप्रिय हो रहा है। पुराने खासी लोकगीतों और प्राचीन खासी, जयंतिया पहाडिय़ों की कालातीत धुनों को भी नई पहचान दे रहा है यह ग्रुप । इस बैंड की धुनों को समेट कर लायी हैं प्रोयशी बरुआ

April 20, 2023
दा मिनोट बैंड के सदस्य

दा मिनोट बैंड के सदस्य

शिलांग

सांस्कृतिक रूप से समृद्ध पूर्वोत्तर के मेघालय राज्य में आदिवासी युवाओं का संगीत बैंड ‘दा मिनोट बैंड’ युवा धडक़नों के बीच खूब लोकप्रिय हो रहा है। हम्मरसिंह खरमार के निर्देशन में यह आदिवासी रॉक बैंड इस राज्य की प्राचीन मूल धुनों को नई पहचान दे रहा है और आज के युवाओं को अपनी सांस्कृतिक विरासत से परिचित करा रहा है।

हम्मरसिंह स्वदेशी विशेष रूप से खासी जनजाति से जुड़ी नई पुरानी चीजों को लेकर कितने भावुक और गंभीर हैं, इसका अंदाजा उनके साथ बातचीत से लगाया जा सकता है। खासी जनजाति की विरासत से उन्हें इतना लगाव है कि इस समुदाय के संगीत एवं संस्कृति के बारे में बताते हुए कुछ समय में ही वह ऐसे खो जाते हैं, मानो किसी ओर दुनिया में चले गए हों।

“हमारा संगीत खासी और जयंतिया पहाडिय़ों की कालातीत धुनों और ध्वनियों पर आधारित है। बिल्कुल उसी तरह जैसे हवाओं और झरनों की तेज आवाज संगीत की तरह बजती है,” हम्मरसिंह खरमार, दा मिनोट बैंड के मालिक, ने बताया।

मेघालय के उभरते संगीतकार खरमार दा मिनोट बैंड के मालिक ही नहीं, इस आदिवासी रॉक बैंड के प्रमुख गायक भी हैं। आप कहेंगे कि इसमें अनोखा क्या है, इसमें नया क्या है? लेकिन, इस बैंड की विशिष्टता यह है कि इसका संगीत खासी दर्शन से बहुत प्रेरित और प्रभावित है। खासी दर्शन में प्रकृति को बहुत अधिक महत्व दिया गया है।

दा मिनोट बैंड परफॉर्म करते हुए
दा मिनोट बैंड परफॉर्म करता हुआ

The Indian Tribal से बात करते हुए खरमार ने बताया कि हमारा संगीत खासी और जयंतिया पहाडिय़ों की कालातीत धुनों और ध्वनियों परआधारित है। बिल्कुल उसी तरह जैसे हवाओं और झरनों की तेज आवाज संगीत की तरह बजती है।

उभरते संगीतकार खरमार कहते हैं कि हमारे गीत भी इन प्राचीन एवं मूल पहाडिय़ों के आध्यात्मिक ज्ञान से लिए गए हैं। अब तो यह संगीत खासी के धार्मिक नृत्य जैसे शाद सुक म्यनसीम के साथ बजाया जाता। हमारा संगीत इन धार्मिक नृत्यों की स्टैप्स से बहुत अधिक प्रभावित है। वह गर्व के साथ बताते हैं कि हम अपने डांस स्टैप्स और चेहरे की भाव-भंगिमा में धार्मिक नृत्यों की लय और भाव का पूरा पालन करते हैं एवं अपने आधुनिक संगीत उपकरणों को उनके सार अनुरूप ढाल कर बजाते हैं। यह कभी भी इससे उलट नहीं हो सकता।

“नदियों, झरनों और जलप्रपातों, बारिश की बूंदों, बिजली की गडग़ड़ाहट आदि की आवाजों, पक्षियों के चहकने एवं कीड़ों के शोर ने हमारे पूर्वजों को उनके जैसी एक से बढ़ कर एक धुन बनाने को प्रेरित किया है। हम उसी परंपरा को आगे बढक़र समृद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं,“ खरमार ने बताया।

खरमार के बैंड के सदस्य ढोल, गिटार और बांसुरी जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्र तो बजाते ही हैं, साथ ही आधुनिक वाद्ययंत्र बजाने में भी माहिर हैं।

वह कहते हैं कि हालांकि मैं बैंड  का प्रमुख गायक हूं, लेकिन अन्य लोग भी कभी-कभी कुछ संगीत रचनाओं के लिए अपनी आवाज देते हैं।

वह मेघालय के लोक एवं स्वदेशी संगीत के बारे में विस्तार से बात करते हैं और अपने आदिवासी रॉक बैंड के संगीत से उसके सच्चे जुड़ाव को बहुत ही गहराई से समझाते हैं। बड़े विचारमग्र होकर खरमार बताते हैं कि खासी जनजाति का आध्यात्मिक और दार्शनिक लोकाचार प्रकृति के शाश्वत चक्रों एवं तौर- तरीकों में अंतर्निहित है। नदियों, झरनों और जलप्रपातों, बारिश की बूंदों, बिजली की गडग़ड़ाहट आदि की आवाजों, पक्षियों के चहकने एवं कीड़ों के शोर ने हमारे पूर्वजों को उनके जैसी एक से बढ़ कर एक धुन बनाने को प्रेरित किया है।

इनमें बहुत सी धुनें खुशी का भाव लाने वाली होती हैं तो कई उदासी को प्रतिध्वनित करती हैं। हम उसी परंपरा को आगे बढक़र समृद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं।

खासी संगीत की उत्पत्ति के बारे में कुछ ठोस साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि यह माना जाता है कि यह संगीत भी उतना ही पुराना है, जितनी खासी जनजाति। विशेष यह कि यह संगीत और इससे जुड़ी कहानियां एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक मौखिक रूप से आगे बढ़ती चली आ रही है।

खरमार (दाएँ)

दा मिनोट बैंड के मालिक कहते हैं कि हम खासियों के पास विभिन्न  प्रकार के वाद्य यंत्र हैं, जिनमें का बॉम, का किंग शिनरंग, का किंग किन्थेई, का पदियाह, का डिमफॉन्ग, का सिंगफॉन्ग, का डुइटारा, का  मेरींगॉड, का मेरींथिंग, का सैतार, का बेस्ली, का तांगलोद, का मिंग और का तंगमुरी आदि शामिल हैं।

इस आदिवासी रॉक बैंड की भूमिका सदियों पुरानी खासी लोककथाओं से संबंधित सुंदर-सुंदर, रोचक कहानियों और धुनों को समकालीन गीतों के रूप में प्रस्तुत करना है। साथ ही हम यह भी ध्यान रखते हैं कि उसका मूल सार भी बना रहे।

उनका मानना है कि खासी समाज में स्वर संगीत, फवार या मंत्रों के रूप में, लोक गीत और गाथागीत संगीत अभिन्न अंग है। खासी गायन संगीत की एक दिलचस्प विशेषता यह है कि यह न केवल गीतात्मक बल्कि बिना गीतात्मक सामग्री के भी बजाया जा सकता है यानी केवल धुन गुनगुना कर भी इसे गाया जा सकता है।

अपने बैंड के मिशन के बारे में खरमार कहते हैं कि मेरे बैंड की भूमिका सदियों पुरानी खासी लोककथाओं से संबंधित सुंदर-सुंदर, रोचक कहानियों और धुनों को समकालीन गीतों के रूप में प्रस्तुत करना है। साथ ही हम यह भी ध्यान रखते हैं कि उसका मूल सार भी बनाए रखा जा सके।

उससे कोई छेड़छाड़ न हो। हम प्रकृति से प्रेरित स्वदेशी संगीत को पूरी जिम्मेदारी के साथ विकसित करना और आगे बढ़ाना चाहते हैं, ताकि आने वाली पीढिय़ां और अधिक ऊंचाइयों तक ले जा सकें।

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झारखण्ड अपनी स्थापना के 25 वर्ष, 15 नवंबर को पूरे कर रहा है। इस ऐतिहासिक अवसर पर राज्य सरकार द्वारा 'रजत जयंती' वर्ष को भव्य और यादगार बनाने का निर्णय लिया है। इसके अन्तर्गत राजधानी रांची के मोराबादी मैदान में 15 और 16 नवम्बर को दो दिवसीय विशेष महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस महोत्सव में झारखंड के सभी विभागों के स्टॉल लगाए जाएंगे, जहां आगंतुकों को सरकार की विभिन्न योजनाओं और उपलब्धियों की विस्तृत जानकारी प्राप्त होगी। महोत्सव का सबसे बड़ा आकर्षण भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती और  'दिशोम गुरु' शिबू सोरेन जी की जीवनी पर आधारित विशेष प्रदर्शनी होगी, जो झारखंड के इतिहास और संघर्ष को जीवंत करेगी। इसके साथ ही, एक इमर्सिव ज़ोन भी बनाया जाएगा, जहां विभिन्न विषयों पर फिल्में और जानकारी प्रदर्शित की जाएगी। इसके साथ ही सरकार की विभिन्न योजनाओं की विस्तृत जानकारी भी आम जनों के लिए रखी गई है जिसका लाभ  महोत्सव परिसर में  घूमते हुए लिया जा सकेंगे। यह महोत्सव आम जनों को झारखंड के अतीत का दर्शन कराएगा और साथ ही भविष्य की आशाओं और कल्पनाओं से जोड़ेगा।
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The Indian Tribal is India’s first bilingual (English & Hindi) digital journalistic venture dedicated exclusively to the Scheduled Tribes. The ambitious, game-changer initiative is brought to you by Madtri Ventures Pvt Ltd (www.madtri.com). From the North East to Gujarat, from Kerala to Jammu and Kashmir — our seasoned journalists bring to the fore life stories from the backyards of the tribal, indigenous communities comprising 10.45 crore members and constituting 8.6 percent of India’s population as per Census 2011. Unsung Adivasi achievers, their lip-smacking cuisines, ancient medicinal systems, centuries-old unique games and sports, ageless arts and crafts, timeless music and traditional musical instruments, we cover the Scheduled Tribes community like never-before, of course, without losing sight of the ailments, shortcomings and negatives like domestic abuse, alcoholism and malnourishment among others plaguing them. Know the unknown, lesser-known tribal life as we bring reader-engaging stories of Adivasis of India.

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