सरना क्या है?
देशज या मूल निवासी या आदिवासी लोगों, मुख्य रूप से अनुसूचित जनजातियों की धार्मिक आस्था को सरना कहा जाता है। आदिवासी लोग मुख्य रूप से प्रकृति यानी पहाड़, जंगल, मवेशी, वनस्पति और जीव-जंतुओं की पूजा करते हैं। कौन सा त्योहार कब मनाया जाएगा, इसे लेकर बाकायदा उनका अपना कैलेंडर है, जो अन्य धर्मों के कैलेंडर के साथ मेल नहीं खाता है। वे हिंदुओं की तरह मूर्तिपूजक भी नहीं हैं।
कौन करता है सरना का पालन?
आदिवासी समुदाय में वे लोग जो हिंदू, इस्लाम या ईसाई आदि धर्मों का पालन नहीं करते, वे सरना मान्यता का अनुसरण करते हैं। ईसाई मिशनरियों समेत अन्य धर्मों के मानने वालों के कड़े विरोध के बावजूद सरना का पालन करने वाले लोग आज भी मजबूती से अपने विश्वास, रीति-रिवाज और परंपराओं से गहरे जुड़े हुए हैं।
सरना अन्य धर्मों से अलग कैसे?
लगभग हर धर्म में प्रकृति की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म के सबसे पुराने आध्यात्मिक ग्रंथों में से एक ऋग्वेद में भी प्रकृति यानी पृथ्वी, चंद्रमा, सूर्य, अंतरिक्ष, नदी, पहाड़, महासागर, बारिश, आग और जड़ी-बूटियों के महत्व का बखान किया गया है। विशेष यह कि आदिवासियों या स्वदेशी लोगों ने पहाड़ों, घने जंगलों और एकांत स्थानों पर ध्यान लगाने वाले संत-महात्माओं की हमेशा ही मदद की है, लेकिन शायद ही कभी उनके धार्मिक विश्वास को अपनाया हो।
इसके पीछे प्रमुख वजह हो सकता है जाति व्यवस्था रही हो। क्योंकि, हिंदू विधि-निर्माता मनु द्वारा निर्दिष्ट ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र श्रेणियों में आदिवासी कहीं भी फिट नहीं बैठते।
यही नहीं, जन्म, विवाह, त्यौहार और मृत्यु जैसे अवसरों पर संपन्न होने वाले सरना के सामाजिक संस्कार भी हिंदू मान्यताओं से पूरी तरह अलग होते हैं। कई जनजातियां मृत्यु के बाद शवों को अपने घर के आंगन या पिछवाड़े या कब्रिस्तान में दफन करती हैं। वे पिंडदान के लिए गया या किसी अन्य धार्मिक स्थान पर नहीं जाते हैं।
क्यों उठ रही है अलग सरना धर्म संहिता की मांग?
सरना धर्म संहिता की मांग मुख्य रूप से इसलिए उठ रही है, क्योंकि आदिवासी समुदाय यह स्पष्ट कहते हैं कि वे हिंदू नहीं हैं। साथ ही, कई आदिवासी संगठन यह दावा करते हैं कि देश भर के 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में रहने वाले 49.57 लाख से अधिक लोगों ने 2011 की जनगणना के दौरान धर्म के कॉलम में किसी विशेष धर्म का उल्लेख करने के बजाय ‘अन्य’ का विकल्प चुनते हुए अपनी धार्मिक मान्यता सरना को बताया है।
वे यह भी कहते हैं कि जितने लोगों ने अन्य विकल्प चुनते हुए अपना धर्म सरना बताया है, उनकी संख्या जैनियों (44.51 लाख) की तुलना में बहुत अधिक है, लेकिन जैन मान्यता को अलग धार्मिक कोड मिल चुका है और उन्हें नहीं। आदिवासी समुदाय इसे अपने साथ भेदभाव बताते हैं। उनका तर्क है कि आदिवासियों के धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों की तुलना किसी अन्य धर्म या आस्था के अनुयायियों से नहीं की जा सकती। उनकी मांग है कि कोरोना महामारी के कारण विलंबित हुई जनगणना 2021 में सरना धर्म संहिता के लिए एक अलग कॉलम जोड़ा जाए।
कहां रहते हैं सरना मान्यता के अनुयायी?
सरना में आस्था रखने वाले लोग यूं तो थोड़ी-बहुत संख्या में लगभग सभी राज्यों में मिल जाएंगे, लेकिन मुख्य रूप से पांच राज्यों- झारखंड, बंगाल, ओडिशा, असम और बिहार में वे बड़े पैमाने पर रहते हैं।
पारसनाथ विवाद से सरना आंदोलन कैसे तेज हुआ?
काफी समय से सरना को अलग धर्म के रूप में पहचान दिए जाने की मांग उठ रही है, लेकिन हाल ही में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित पारसनाथ पहाडिय़ों को जैनियों के लिए आरक्षित किए जाने के कदम ने इस आंदोलन की आग में घी डालने का काम किया। औपनिवेशिक युग की प्रिवी काउंसिल और हजारीबाग के जिला गजेटियर द्वारा पारित एक आदेश सहित अन्य दस्तावेजी सबूतों का हवाला देते हुए आदिवासियों का तर्क है कि पारसनाथ हिल्स उनका मारंगबुरु (पर्वत भगवान) है, जहां वे युगों से अपने धार्मिक और आध्यात्मिक अनुष्ठान करते आ रहे हैं। जैनी तो बहुत बाद में यहां आए। उनका यह भी तर्क है कि यदि सरना कोड होता तो मोदी सरकार कभी भी इस तरह की मनमानी कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं कर सकती थी। आदिवासी यह भी महसूस करते हैं कि एक अलग सरना कोड उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को सरंक्षित और समृद्ध करने में मदद करेगा।
धर्म कोड आवंटित करने में सबसे बड़ी बाधा?
भारतीय जनता पार्टी और दक्षिणपंथी विचारधारा का मानना यह है कि सरना को मानने वाले लोग मूल रूप से हिंदू ही हैं। इसलिए उनके लिए अलग धर्म की आवश्यकता नहीं है। इसके अलावा, उन्हें यह भी लगता है कि सरना को एक अलग धार्मिक संहिता प्रदान करना हिंदू राष्ट्र के निर्माण की भावना के विपरीत है। उन्हें प्रतीत होता है कि इससे हिंदू वोट बैंक में विभाजन हो सकता है।
उम्मीद की किरण
झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने अपनी-अपनी विधानसभाओं में एक विशेष सत्र के माध्यम से यह प्रस्ताव पारित कर दिया है कि एक अलग सरना कोड जल्द से जल्द लागू किया जाए। दोनों ही राज्यों ने इस संबंध में पारित प्रस्ताव मंजूरी के लिए केंद्र के पास भेज दिया है। यदि कुछ और राज्य ऐसे ही प्रस्ताव पास कर दें, तो इससे केंद्र सरकार पर अतिरिक्त दबाव बढ़ेगा। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने भी 2011 की जनगणना में इस कोड को जोडऩे की सिफारिश की थी।
धार्मिक कोड आवंटित करने की क्या है प्रक्रिया?
संविधान का अनुच्छेद 25 प्रत्येक भारतीय नागरिक को धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। इसके अनुसार छह धार्मिक कोड- हिंदू, इस्लाम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन देश में कार्यात्मक हैं। विशेष यह कि अलग धार्मिक कोड देना राज्य का विषय नहीं है। इसे केवल संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कानून के माध्यम से ही अधिनियमित किया जा सकता है। इसलिए, चाहे वह मौजूदा भाजपा नीत केंद्र सरकार हो या भविष्य में किसी अन्य दल की सरकार, सरना को अलग धार्मिक कोड देने के संबंध में गेंद हमेशा केंद्र के पाले में ही होगी।