पूर्वोत्तर राज्य नागालैंड का ग्रीज़्ड पोल क्लाइम्बिंग गेम यानी बांस के खंभे पर खूब ग्रीस लगाकर उस पर चढऩे का 300 साल से अधिक पुराना खेल अभी भी बहुत लोकप्रिय है। सीधे बांस पर चढऩा जितना आसान लगता है, वास्तव में उतना है नहीं। और यदि उस पर चिकनाई लगा दी जाए तो फिर यह बहुत ही मुश्किल हो जाता है। सच में, यह खेल शाखाओं वाले पेड़ पर चढऩे से भी कहीं अधिक कठिन है। नागालैंड सरकार राज्य में वार्षिक प्रतियोगिताएं आयोजित कर इस खेल को प्रोत्साहित कर रही है।
इस खेल में लंबे, मोटे एवं कठोर बांस जमीन में मजबूती से गाड़े जाते हैं। उसके बाद उन पर खूब सारा ग्रीस लगाया जाता है ताकि वे चिकने हो जाएं और खिलाड़ी के लिए चढऩा कठिन हो जाए। तीन से चार सदस्यों वाली पांच से छह टीमें इस खेल में हिस्सा लेती हैं। खिलाड़ी को बिना बाहरी सहारा लिए इस बांस पर चढऩा होता है। जिस टीम का सदस्य सबसे पहले बांस के शीर्ष को छू लेता है, वही टीम विजेता घोषित होती है।
लगभग तीन सदी पहले नागा सरदारों के शासनकाल में शुरू हुआ यह खेल अभी भी गांवों-कस्बों में खूब लोकप्रिय है। अब तो यह नागालैंड के युवा संसाधन और खेल विभाग के तत्वावधान में आयोजित होने वाली राज्य स्तरीय स्वदेशी खेल प्रतियोगिता का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। स्वदेशी रोचक प्रतियोगिताओं में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग रस्साकशी के अलावा बांस दौड़ और मुर्गा लड़ाई जैसे खेल भी शामिल हैं।
इस खेल में बांस के शीर्ष पर एक पुरस्कार बाँध दिया जाता है। यह पुरस्कार लिफाफे में नकद रकम या मांस का एक बड़ा टुकड़ा हो सकता है। प्रत्येक जनजाति का पुरस्कार देने का अपना अनूठा तरीका होता है।
नागा सरदारों के शासनकाल के दौरान शुरू हुआ यह खेल अभी भी गांवों और कस्बों में खेला जाता है। वास्तव में, राज्य में बांस उद्योग के फलने-फूलने के साथ-साथ इस खेल की लोकप्रियता भी बढ़ती गई। बांस की चढ़ाई इस बात का प्रतीक होती है कि कैसे कोई व्यक्ति अपनी शारीरिक क्षमता और दक्षता के जरिए सभी कठिनाइयों को मात देकर प्रकृति की कृपा हासिल कर सकता है।
इस प्रतियोगिता में खिलाडिय़ों को 30 मिनट की अवधि में 15 फीट ऊंचे बांस के खंभे पर चढऩा होता है। आम तौर पर खंभे को सूअर की चर्बी या ग्रीस लगाकर इतना चिकना कर दिया जाता है कि खिलाड़ी को उस चढऩा मुश्किल हो जाए।
बांस के खंभे पर चढऩे की प्रतियोगिता नागालैंड के प्रसिद्ध हॉर्नबिल महोत्सव का भी हिस्सा है। इस प्रतियोगिता में खिलाडिय़ों को 30 मिनट की अवधि में 15 फीट ऊंचे बांस के खंभे पर चढऩा होता है। आम तौर पर खंभे को सूअर की चर्बी या ग्रीस लगाकर इतना चिकना कर दिया जाता है कि खिलाड़ी को उस चढऩा मुश्किल हो जाए।
हालांकि इस खेल में खिलाडिय़ों को इतनी छूट दी जाती है कि वे खंभे पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए रेत छिडक़ कर चिकनाई को कम कर सकते हैं। खेल की रोचकता इसी में होती है कि खिलाड़ी खंभे पर चढऩे की कोशिश करते हैं और चिकनाई के कारण बार-बार फिसलकर नीचे आ जाते हैं। कभी-कभी तो बिल्कुल चोटी पर पहुंच कर वे एक पल में नीचे आ गिरते हैं। इस प्रक्रिया में भीड़ का खूब मनोरंजन होता है।
मैदान के चारों ओर दर्शकों के शोर-शराबे के बीच अपनी सारी चतुराई का इस्तेमाल कर जो खिलाड़ी खंभे की चोटी पर लगी पुरस्कार राशि को पहले छू लेता है, उसी की टीम विजेता घोषित कर दी जाती है।