कहे बूढ़ा राजा मदली बजा बाजे विविध प्रकार तमा नाम धारी गयाना करुछे कंठे बसा बूढ़ा राजा ।
ये पंक्तियां मोटे तौर पर देवता बूढ़ा राजा से गायक के गले में हमेशा के लिए निवास करने के एक अनुरोध के रूप में गायी जाती हैं, ताकि उसकी आवाज मदली की थाप के साथ भगवान की स्तुति गाती रहे।
ये पंक्तियां मोटे तौर पर देवता बूढ़ा राजा से गायक के गले में हमेशा के लिए निवास करने के एक अनुरोध के रूप में गायी जाती हैं, ताकि उसकी आवाज मदली की थाप के साथ भगवान की स्तुति गाती रहे।
इस नृत्य के दौरान बूढ़ा राजा की भूमिका निभाने वाला मुख्य नर्तक घोड़े की वेशभूषा धारण करता है, जबकि अन्य सफेद धोती और सिर पर पत्तों का मुकुट पहनते हैं।
बूढ़ा राजा कालाहांडी जिले के अम्पानी पंचायत के गोंड समुदाय में पीठासीन देवता के रूप में पूजे जाते हैं। कहावत है कि सतयुग में क्रूर राक्षक मधु दैत्य का वध करके भगवान ब्रह्मा ने उसकी त्वचा से मढकर मिट्टी का एक वाद्य यंत्र मदली बनाया था। ब्रह्मा ने यह वाद्ययंत्र बाद में भगवान शिव को उपहार में दे दिया, जिन्होंने इसे बूढ़ा राजा को सौंप दिया। उसी समय से बूढ़ा राजा के साथ यह मदली जुड़ गई।
मडली नृत्य नवरात्रि-दशहरा के आसपास फसल कटाई के समय शाम को किया जाता है। यह नृत्य खेती-किसानी के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालता है।
नृत्य के दौरान मुख्य किरदार बूढ़ा राजा की भूमिका निभाने के लिए एक घोड़े की बांस और भूसे से बनी पोशाक पहनता है, जबकि अन्य सफेद धोती और सिर पर पत्तियों का मुकुट धारण करते हैं। छह पुरुष नर्तक अपनी कमर से नीचे गोजातीय या बकरी की खाल से मढी मदली बांधते हैं। तीन नृतक नायक के सामने और अन्य तीन उसके पीछे नृत्य करते हैं।
संगीत वाद्ययंत्र तमकी बजाते हुए एक और नर्तक बूढ़ा राजा के दाहिने तरफ नाचता है। अन्य नृतक कढुआ (लकड़ी का एक लंबा उपकरण), थापा (एक प्रकार का बुना हुआ बांस का पिंजरा) और मछली पकडऩे के जाल के साथ समूह नृत्य करते हैं।
कालाहांडी जिल के भवानीपटना में सांस्कृतिक संगठन प्रतिभा के अध्यक्ष गुरु दयानंद पांडा इसके महत्व के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि पहले, नर्तक अपने शरीर के चारों ओर पुआल की रस्सियों को घुमाते थे। कढुआ का उपयोग मिट्टी खोदने के लिए किया जाता है। थापा चिकन को ढकने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली टोकरियों की तरह होती है। पुआल की रस्सी शायद धान की खेती का प्रतीक है, जबकि कढुआ, थापा और मछली पकडऩे का जाल क्रमश: जुताई, मुर्गी पालन और मछली पालन जैसे गोंड जनजाति के लिए कृषि के तीन प्रमुख क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
मदली अब उतनी लोकप्रिय नहीं रही। यह नृत्य कला लुप्त होती जा रही है। कभी पांच ग्रुप थे, लेकिन अब सिर्फ दो संस्थाएं ही इस कला को जीवित रखने के प्रयास में जुटी हैं।
पांडा को इस बात का अफसोस है कि मदली अब उतनी लोकप्रिय नहीं रही। यह नृत्य कला लुप्त होती जा रही है। वह बताते हैं कि लगभग एक दशक पहले पांच मंडलियां इस नृत्य को करती थीं, लेकिन अब भवानीपटना में प्रतिभा और बंजीलालपाड़ा गांव में बूढ़ा राजा मदली नृत्य समूह ही इस कला के साथ जुड़े हैं ताकि यह बची रहे।