वह दृष्टिहीन हैं, लेकिन उनकी जिंदगी सुर और ताल से रोशन हैं। आइए, एक ऐसी शख्सियत से रूबरू कराते हैं, जो उम्र में बुजुर्ग हैं, लेकिन उनकी आवाज में युवा जोश और सुरीलापन आज भी बरकरार है।
संगीत से पहला परिचय होने के लगभग आधी सदी बाद कोड़ा आज अपने फन के उस्ताद हैं।
मल्यबंता देसिया नाट्यगुरु संस्कृतिका संगठन के अध्यक्ष अनादि कोड़ा एक गायक, गीतकार और संगीतकार यानी ऑल इन वन हैं। वह दुडुंगा और दम्पू से लेकर ढोल तथा मृदंगम तक तमाम आदिवासी वाद्ययंत्रों को पूर्ण कुशलता के साथ बजा सकते हैं। वह हारमोनियम, खजानी और जिनी से संगीत रचते हैं।
मलकानगिरी जिले के बीरालक्ष्मणपुर गांव के रहने वाले कोड़ा ने कभी भी दृष्टिहीनता को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया और अपनी मेहनत और लगन से आगे बढ़ते रहे। अब तक वह 100 से अधिक उड़िया गाने लिख चुके हैं। इनमें से लगभग 15 देसिया बोली में हैं। हां, जब भी कोड़ा को अपनी रचनात्मकता को पेपर पर उतारना होता है तो उनके दोस्त, परिवार और सह-कलाकार हमेशा उनकी मदद करने को तैयार रहते हैं।
कोड़ा ज्यादातर या तो देशभक्ति गीत लिखते हैं या फिर भजन। देसिया में लिखे गए उनके गीतों में जरूर सुधारवादी नजरिया झलकता है। कोड़ा खुद को सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं और समाज में बदलाव लाने के लिए शिक्षा के प्रसार की वकालत करते हैं।
कोड़ा एक गायक, गीतकार और संगीतकार हैं। साठ साल के यह बुजुर्ग तमाम आदिवासी वाद्ययंत्रों को बजाने में सिद्धहस्त हैं।
कोड़ा ने एक पूरी पांडुलिपि कुटिया आदिवासी भी लिखी है, जो जल्द ही पुस्तक के रूप में प्रकाशित की जाएगी। मलकानगिरी स्थित जिला कला संस्कृतिका संघ के उपाध्यक्ष गेनु मुदुली कहते हैं कि अनादि जैसे बहुआयामी प्रतिभा के मालिक लोग बहुत ही कम मिल पाते हैं।
कोड़ा जब छह साल के थे, तभी उनकी आंखों की रोशनी कम होने लगी थी। वह बताते हैं कि पहले उनकी आंखों में दर्द हुआ और फिर उनमें मवाद बनने लगा। उनके गांव में उस समय कोई एलोपैथ डॉक्टर नहीं था और वह केवल स्थानीय वैद्यों पर निर्भर थे, लेकिन वैद्यों का इलाज काम नहीं आया और आंखें ठीक नहीं हुईं।
कोड़ा बेहद कम उम्र में इतनी बड़ी मुसीबत का सामना करने में असमर्थ रहे। उनकी आंखें चली गईं और जिंदगी के झंझावात में घिर गए। वह हर जरूरत के लिए पूरी तरह अपने माता-पिता हीरामनी और नीलकंठ पर निर्भर हो गए।
कोड़ा ने कभी भी दृष्टिहीनता को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया और अपनी मेहनत और लगन से आगे बढ़ते रहे। अब तक वह 100 से अधिक उडिय़ा गाने लिख चुके हैं।
लगभग 10 वर्ष की उम्र में कोड़ा की जिंदगी में उस समय बड़ा बदलाव आया जब उन्हें अपने गाँव में गाँव में महिमा धर्म योगियों के समूह की ओर से भजन गाने का मौका मिला। खंजनी और गिन्नी ने संगीत की ओर उनका रुझान पैदा किया और वह धीरे-धीरे स्थानीय संगीतकारों के साथ विभिन्न वाद्ययंत्र बजाने का अभ्यास करने लगे।
अपनी मेहनत और लगन से कोड़ा ने 15 वर्ष की उम्र में ही सभी वाद्ययंत्रों को बजाने में निपुणता हासिल कर ली। संगीत से पहला परिचय होने के लगभग आधी सदी बाद कोड़ा आज अपने फन के उस्ताद हैं। वह नियमित रूप से राज्य स्तर के कार्यक्रमों और विशेष अवसरों पर अपनी प्रतिभा का शानदार प्रदर्शन करते हैं।
कोड़ा गर्व के साथ बताते हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, ओडिशा संगीत नाटक अकादमी और नाल्को (दमनजोड़ी) द्वारा सम्मानित किया गया है। दृष्टिबाधित शारीरिक दुर्बलता के बावजूद अनादि कोड़ा जीवन से भरपूर नजर आते हैं और यह भी सिद्ध किया है कि उन्होंने अपनी आंखें जरूर खोई हैं लेकिन दृष्टि नहीं। आज वह सफलता के इस मोड़ पर आ पहुंचे हैं, जब पूरे भरोसे के साथ कहते हैं कि अब उन्हें आंखों की जरूरत नहीं।