घुमंतू जीवन शैली का सबसे अधिक खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ता है। उनकी शिक्षा की स्थायी रूप से व्यवस्था करना बहुत कठिन होता है। हालांकि, कलीम अख्तर राजौरी जिले के थानामंडी के ऊपरी इलाकों में खानाबदोश आदिवासियों के बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए अपने स्तर पर पूरी कोशिश कर रही हैं।
खुद गुर्जर आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली अख्तर करीब दो दर्जन आदिवासी बच्चों को पढ़ाती हैं। वह कहती हैं कि ये बच्चे उन परिवारों से हैं जो मैदानी इलाकों की गर्मी से बचने के लिए पहाड़ों की ओर पलायन करते हैं और कड़ाके की सर्दी आने से पहले ही फिर यहां से वापस चले जाते हैं।
शिक्षक कलीम अख्तर पलायन के पारंपरिक मार्गों पर खानाबदोश आदिवासी बच्चों के लिए सामुदायिक कक्षाएं लेती हैं।
अख्तर धीमे-धीमे बोलते हुए कहती हैं, पढ़ाई के लिए कक्षा में इन छात्रों की दैनिक भागीदारी सुनिश्चित करना जितना लगता है, उससे कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण है। आदिवासी प्राकृतिक रूप से घूमते होते हैं। वे शिक्षा से ज्यादा अपने अपने समुदाय की आजीविका को महत्व देते हैं। अख्तर कहती हैं कि जब उनके माता-पिता को पहाड़ी इलाकों में पशुओं को व्यवस्थित करने के लिए बच्चों की मदद की जरूरत होती है, तो वे हमें बताए बिना ही उन्हें साथ ले जाते हैं। एक तरह, सबसे ज्यादा संघर्ष इन बच्चों को ही करना पड़ता है, क्योंकि चरागाहों से लौटने के बाद पढ़ाई की भरपाई करना उन्हें बहुत मुश्किल होता है।
पलायन के पारंपरिक मार्गों पर स्कूल शिक्षा विभाग बच्चों के लिए अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराता है, ताकि विभिन्न बस्तियों में अधिक से अधिक बच्चे लाभान्वित हो सकें।
पढ़ाई के लिए कक्षा में घुमंतू परिवारों से आए छात्रों की दैनिक भागीदारी सुनिश्चित करना जितना लगता है, उससे कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण है।
अख्तर आगे बताती हैं कि नौ बहनों और एक भाई वाले बड़े परिवार से होने के कारण वह अच्छी तरह समझती हैं कि किसी का बचपन खोया जाना कितना आसान होता है। अख्तर के पिता ग्राम सेवक थे। हालांकि, पढ़ाई में होनहार होने के बावजूद उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
लीरान गांव में प्रारंभिक शिक्षा हासिल करने के बाद वह राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय पन्हीद में चली गईं। बारहवीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान ही अख्तर की शादी हो गई थी, लेकिन उन्होंने शादी के बाद इग्नू से स्नातक और स्नातकोत्तर किया। उनके पति भी स्कूल शिक्षा विभाग के प्रशासनिक अनुभाग में कार्यरत हैं।
अख्तर आदिवासियों के बीच व्यवहारिक जीवन शैली अपनाने के बारे में जागरूकता फैलाने पर अधिक जोर देती हैं तथा उन्हें साफ-सफाई संबंधी अच्छी आदतें सिखाती हैं, ताकि वे बीमार न पड़ें और स्वस्थ्य जीवन जी सकें।