परिस्थितियां कभी भी हसरत बानो के पक्ष में नहीं रहीं। आय का कोई नियमित स्रोत नहीं होने के कारण बानो और उनके पति पलामू के खानवा गांव में अपनी सात एकड़ जमीन में खेती कर किसी तरह गुजर-बसर करते थे।
सात बच्चे और सीमित संसाधन, हसरत बानो स्वभाविक रूप से यह सोच-सोच कर ही परेशान रहती थीं कि सात मुंहों को खाने के लिए कहां से आएगा, लेकिन एक अच्छी बात, वह चाहती थीं कि उनके बच्चे हर हाल में अच्छी शिक्षा हासिल करें।
हालांकि एक रूढ़ीवादी मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखने वाली 44 साल की बानो सिर्फ आठवीं कक्षा तक ही पढ़ाई कर सकीं, लेकिन उन्हें अपने बच्चों, उद्यमी मानसिकता, खुले विचारों और अतिरिक्त मेहनत कर आगे बढऩे की अदम्य इच्छाशक्ति से बहुत अधिक उम्मीदें थीं।
हसरत बानो को अपने बच्चों, उद्यमी मानसिकता, खुले विचारों और अतिरिक्त मेहनत कर आगे बढऩे की अदम्य इच्छाशक्ति से बहुत अधिक उम्मीदें थीं।
उन्होंने महिला स्वयं सहायता समूह सखी मंडल से 70,000 रुपये ऋण लेकर सबसे पहले एक आटा चक्की लगाई। हालांकि, इससे होने वाली लगभग 15,000 रुपये की मासिक आमदनी उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी नहीं थी। इसलिए हसरत ने अपने खेतों पर अधिक ध्यान देना शुरू किया और प्राकृतिक खाद का उपयोग कर अधिक से अधिक पैदावार लेने का प्रयास किया।
उन्होंने आज के दौर में लोकप्रिय हो रही जैविक खेती की अवधारणा को समझा और उस तरफ बढ़ती गईं। धीरे-धीरे उनकी मेहनत का फल उनके खेतों में उगता दिखाई देने लगा।
हसरत कहती हैं, हम महंगे रासायनिक उर्वरक खरीद कर इस्तेमाल नहीं कर सकते। इसलिए गाय का गोबर और मूत्र अथवा सड़ी हुई पत्तियों समेत अन्य जैविक अपशिष्टों से बनी जैव खाद का इस्तेमाल करते हैं, जो हमें बेहतर पैदावार भी दे सकते हैं।
हसरत ने खेतों के बाहर भी अपने कार्यों और समझ का विस्तार किया है। उन्होंने अन्य ग्रामीणों को जैविक खेती के फायदे और खाद बनाने की तकनीक के बारे में बताना शरू किया तथा जल्दी ही वह कृषक मित्र यानी किसानों की दोस्त बन गईं। अब वह महिलाओं को आसपास के गांवों का दौरा करने ले जाती हैं और खेती में कम लागत व नई प्रौद्योगिकियों के उपयोग के लिए प्रेरित करती हैं।
उनकी जूतों की एक दुकान भी है, जो उनके परिवार के लिए अतिरिक्त आमदनी का जरिया है। वह गर्व से कहती हैं कि मेरे दो बेटे दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर कर रहे हैं। सबसे छोटा बेटा ग्रेजुएशन में पढ़ रहा है।
लेकिन, जो चीज वास्तव में हसरत को आसपास के परिवेश से अलग करती है, वह है उनका यह दृढ़ विश्वास कि लड़कियों समेत सभी बच्चों को शिक्षा का उपहार दिया जाना चाहिए। वह मुस्कुराती हुई बताती हैं कि मेरी एक बेटी पोस्ट ग्रेजुएट है और एक बेटी शिक्षिका बनना चाहती है, वह बीएड में दाखिला लेने का प्रयास कर रही है। बानो विशेषकर मुस्लिम समुदाय की महिलाओं से गुजारिश करते हुए कहती हैं कि बच्चों को शिक्षा जरूर दिलाएं। वाकई, हसरत ने यह सुनिश्चित किया है कि वह अपने और समाज के लिए अपने नाम का अर्थ पूरा करें।