असम के मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले सोनोवाल, बोडो और देवरी समेत 14 जनजातीय समुदायों में मछली बड़े शौक से खायी जाती है। राज्य में पत्तेदार सब्जी की तरह उगाये जाने वाले प्रसिद्ध साग मटिकादुरी के साथ पकाई गई मछली यहां के लोकप्रिय व्यंजनों में शामिल है।
इस डिश के लिए पुथी जैसी छोटी मछलियां पहली पसंद होती हैं, लेकिन बहुत से लोग रोहू को प्राथमिकता देते हैं। हालांकि लगभग सभी मैदानी जनजातियों में सामान्य तौर पर मटिकादुरी से मछली की करी बनती है, लेकिन असम के ऊपरी जिलों की जनजातियां इसे बनाने में पारंगत है। ब्रह्मपुत्र के पास अमूमन छोटे-छोटे गांवों में रहने वाली सोनोवाल कछारी, कारबिस, मिसिंग, मिरी, खामती और सिंगफो जैसी जनजातियों में यह डिश बहुत अधिक प्रचलित है। ये विशिष्ट जनजातियां मूल रूप से डिब्रूगढ़, तिनसुकिया, जोरहाट और लखीमपुर आदि जिलों में रहती हैं।
गाढ़ेपन के आधार पर पेट को हल्का रखने के लिहाज से कई लोग मटिकादुरी की ग्रेवी को बहुत स्वास्थ्यवर्धक मानते हैं। उनका कहना है कि यह बांझपन, बवासीर, पीलिया और रतौंधी जैसे रोगों को ठीक करने में काफी मदद करता है। यही नहीं, मटिकादुरी की करी कैंसर के इलाज में कारगर मानी जाती है और शरीर के ताप व तंत्रिका तंत्र को भी नियंत्रित करती है।
पोषण और प्रतिरक्षा गुणों से भरपूर मछली की एक अन्य डिश स्थानीय स्तर पर मशहूर रेड सोरेल या मेस्टा टेंगा के पत्तों और उबले हुए आलू के साथ तैयार की जाती है।
सोनोवाल कछारी और खामती जैसी ऊपरी असम की मैदानी जनजातियां विशेष रूप से इस डिश में रोहू और नाइफफिश या चीताला मछली को बहुत पसंद करती हैं, जबकि राज्य के निचले हिस्सों में बसी राभा, बोडो, दिमासा आदि जनजातियां इसे हिल्सा मछली के साथ पकाकर बड़े चाव से खाती हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि हिल्सा मछली का घर कही जाने वाली ब्रह्मपुत्र नदी असम के बारपेटा, गोलपाड़ा, नलबाड़ी और धुबरी जैसे निचले जिलों से होकर बहती है। इसलिए यह मछली यहां बहुतायत में मिलती है। मानसून के दौरान असम के निचले इलाकों में ब्रह्मपुत्र का पानी भर जाता है। इसी के साथ यहां बड़ी संख्या में हिल्सा मछली ठहर जाती है। वास्तव में, ब्रह्मपुत्र में हिल्सा मछली तीस्ता नदी से आती है। तीस्ता नदी बांग्लादेश में एक जगह ब्रह्मपुत्र में मिलती है। वहीं से इसमें हिल्सा आ जाती है।
जहां तक स्वास्थ्य लाभ का संबंध है, तो रेड सोरेल के पत्तों में पोटेशियम, मैग्नीशियम और कैल्शियम पाया जाता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है। कई लोगों का मानना है कि स्थानीय जड़ी-बूटियों से मिलकर बनी यह डिश शरीर में सूजन, पीलिया और पानी से होने वाले रोगों को ठीक करने में मदद करती है।
भेड़ैलोटा, मणिमुनि और नोरोसिन्शो जैसी स्थानीय स्तर पर उगाई जाने वाली तीन पत्तेदार सब्जियों के साथ मछली मैदानी जनजातियों का लोकप्रिय खाना है। इस डिश को बनाने में पुथी, कैटफिश या मागुर जैसी मछलियां आमतौर पर उपयोग की जाती हैं। ब्रह्मपुत्र नदी से दूर रहने वाले लोग इस स्वादिष्ट व्यंजन को तैयार करने में इस्तेमाल होने वाली छोटी मछलियों के लिए स्थानीय तालाबों और दलदलों पर निर्भर रहते हैं। लाल मिर्च, काला तिल और नींबू डालने से यह खाना बहुत ही जायकेदार हो जाता है।
ऐसा माना जाता है कि पत्तेदार सब्जियां पाचक गुणों से तो भरपूर होती ही हैं, ये याददाश्त बढ़ाने तथा घावों को जल्द भरने में भी मदद करती हैं। नियमित रूप से इसे खाने वाले लोग कहते हैं कि ये सब्जियां अवसाद को दूर करने के साथ-साथ गैस्ट्रिक अल्सर और त्वचा संबंधी बीमारियों से बचाती है। चूंकि भेड़ैलोटा, मणिमुनि और नोरोसिन्शो कम वनों वाले जंगलों में बड़े पैमाने पर उगती हैं, इसलिए यह मैदानी इलाकों में रहने वाली सभी जनजातियों के बीच समान रूप से लोकप्रिय हैं, भले ही वे लोग असम में कहीं भी रहते हों।