मेघालय के इस खेल में पुरस्कार में मिलते हैं चावल, आलू और मुर्गियां
लगभग 400 साल पहले इस स्वदेशी खेल की उत्पत्ति मानी जाती है और आज भी यह जैन्तिया, खासी और गारो पहाड़ी जनजातियों के बीच बेहद लोकप्रिय है। क्या है यह खेल, बता रही हैं प्रोयशी बरुआ
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