मलकानगिरी
ओडिशा के मलकानगिरी जिले के बोलाडा गांव में जमीन इतनी पथरीली और बंजर थी कि उस पर घास का एक तिनका भी नहीं उगता था। लेकिन धरती बड़ी दयालु होती है। यह किसी को निराश नहीं करती, खास कर उससे प्रेम करने वालों को तो बिल्कुल भी नहीं। यही हुआ, जब जिला बागवानी विभाग ने भुंजिया जनजाति के आठ किसानों को अपने साथ जोड़ा और उन्हें यहां अनार की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया। पहले-पहल यह विचार थोड़ा अजीब लगा लेकिन फिर किसान तैयार हो गए और उन्होंने 2023 में इस बंजर भूमि पर अनार की खेती करने की शुरुआत की। अब अनार से लदे पौधे बंजर भूमि का श्रंगार बन खूबसूरती बिखेर रहे हैं।
केशव कोरुआ और मदालश चिंदा जैसे किसानों की कड़ी मेहनत और जिला बागवानी विभाग से मिली मदद रंग लाने लगी है। प्रत्येक किसान की एक एकड़ जमीन से साल में दो बार लगभग 30,000 से 40,000 रुपये की आमदनी हो रही है। खेती का पहला चरण जुलाई और अगस्त में शुरू होता है, जबकि दूसरा अक्टूबर और नवंबर में।
केशव ने The Indian Tribal को बताया, ‘फसल अच्छी हो रही है। हम स्थानीय साप्ताहिक हाट में 150 से 160 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से अनार बेचते हैं, जो बेहतर गुणवत्ता के होने के कारण हाथोंहाथ बिक जाते हैं। अलग-अलग व्यापारी उनकी फसल के खरीदार होते हैं। कई बार पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश के व्यापारी भी हमारे फल थोक में खरीद कर ले जाते हैं। जिस जमीन में पहले कुछ भी पैदा नहीं होता था, आज उससे हमें अच्छी-खासी कमाई हो रही है। यह देखकर बहुत खुशी होती है।’

केशव और मदालश को अपनी बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी। इसमें गाय का गोबर डाला गया, जिसके लिए उन्हें प्रत्येक ट्रैक्टर-ट्राली 2,000 से 3,000 रुपये खर्च करने पड़े। यह काम मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) के तहत शुरू किया गया था। दोनों किसानों ने अनार के पौधे लगाने से पहले खेतों में सूखे गोबर, पोटाश और यूरिया से भरी चार से पांच ट्राली खाद का इस्तेमाल किया। पौधे विभाग ने ही उपलब्ध कराए। इस कार्य में गैर-सरकारी एजेंसी ‘लोक दृष्टि’ ने किसानों की खासी मदद की।
‘लोक दृष्टि’ के पूर्व क्लस्टर रिसोर्स पर्सन सुजीत कुमार बैथारू ने कहा, ‘हमने आठ किसानों से उनके आधार कार्ड वगैरा जरूरी दस्तावेज लिए और फिर विभाग के साथ तालमेल बैठाया। इससे किसानों को उनके जॉब कार्ड के माध्यम से विभाग से भुगतान मिल गया।’ केशव ने बताया, ‘हमने खेती शुरू करने के पहले साल यानी 2023 में करीब 18,000 रुपये और दूसरे साल 36,000 रुपये खर्च किए। हालांकि, विभाग की ओर से हमें पहले साल पहली किस्त के तौर पर 30,000 रुपये और दूसरे साल 25,000 रुपये मिले। अनार की खेती के लिए विभाग की ओर से हमें करीब 1.5 लाख रुपये देने का वादा किया गया है।’

अपने 1.5 एकड़ खेतों में उच्च उपज वाली धान की किस्म जमुना की खेती करने वाले केशव बताते हैं कि अनार की खेती करने से बहुत संतुष्ट हैं। इसी तरह मदालश को भी दो बार में अब तक 60,000 रुपये मिल चुके हैं। उन्होंने बताया, ‘जिला बागवानी विभाग खेत में लगे पौधों की संख्या और कवर किए गए क्षेत्रफल के आधार पर लाभार्थी किसानों को भुगतान करता है।’
केशव ने अपने खेत में अनार की पांच किस्मों मृदुला, गणेश, भगवा, सिंदूरा के 100 पौधे लगाए थे। हालांकि मदालश और दरबार सागरिया जैसे किसानों ने दो-दो किस्में- भगवा और सिंदूरा चुनी। मदालश ने अपने एक एकड़ खेत में 120 पौधे लगाए थे, जबकि दरबार ने अपनी आधी एकड़ भूमि में 40 पौधे लगाए।

भुवनेश्वर के फल विज्ञान विशेषज्ञ डॉ. नरेंद्र पाधी के अनुसार अनार विटामिन सी, विटामिन के, विटामिन ई, फोलेट के साथ-साथ पोटेशियम, मैग्नीशियम एवं मैंगनीज से भरपूर होते हैं। फाइबर भी इनमें खूब पाया जाता है। इस फल में प्यूनिकैलेगिन भी होता है, जो एक प्रकार का एंटीऑक्सीडेंट है। डॉ. पाधी ने कहा कि अब बोलाडा के किसान ऐसे पौष्टिक फलों की खेती करके गर्व महसूस कर रहे हैं। खास बात यह है कि इन किसानों में ज्यादातर आदिवासी हैं।
पाधी ने कहा, ‘अनार की खेती के लिए तेज गर्मी और फिर हल्की सर्दी की जरूरत होती है। अनार के पेड़ को औसतन हर हफ्ते 1-1.5 इंच पानी चाहिए। बोलाडा में कई किसानों ने फसल की सिंचाई के लिए कुएं खोदे हैं और कई ने बोलवेल लगवाए हैं। किसानों की मेहनत खेतों में लहलहाती दिख रही है और उनके घरों में खुशहाली आ रही है।