भुवनेश्वर
सुदूर सोनानाली के घने जंगलों के बीच चौंबा पहाड़ी पर बसे गांव गोदिनारदा के बनेश्वर नाइक अब सातवें आसमान पर हैं। अकेले बनेश्वर ही नहीं, ओडिशा के क्योंझर जिले के इस गांव में रहने वाले जुआंग आदिवासी समुदाय के अन्य 77 परिवार भी उनकी तरह ही बहुत खुश हैं। हों भी क्यों नहीं, कठिन चुनौतियों का सामना करते हुए अपने अस्तित्व के लिए जूझने वाले आदिवासियों ने आखिरकार अंधेरे को मात दे दी। आज उनका गांव सौर ऊर्जा से जगमगा रहा है।
ओडिशा ऐसा राज्य है जहां 62 जनजातीय समुदाय रहते हैं और ऑस्ट्रोएशियाटिक जातीय समूह से ताल्लुक रखने वाली जुआंग जनजाति इस राज्य के 13 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों में से एक मानी जाती है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार ओडिशा में जुआंग समुदाय की जनसंख्या 47,095 है। इनमें से 26,707 लोग अकेले क्योंझर जिले में रहते हैं।

इस आदिवासी बहुल गांव के सामुदायिक भवन में स्थापित दो सौर ऊर्जा संयंत्रों ने उनके सदियों पुराने अंधेरे को दूर भगा दिया है। ओडिशा जनजातीय सशक्तीकरण और आजीविका कार्यक्रम प्लस के तहत एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसी (आईटीडीए), क्योंझर की ओर से तीन महीने की मशक्कत से यहां 16 सौर पैनल, 16 बैटरी और दो इनवर्टर लगाए गए हैं। अब गांव वालों को निर्बाध बिजली की आपूर्ति हो रही है।
इस स्वदेशी समुदाय की आबादी का एक बड़ा हिस्सा बंसपाल, तेलकोई और हरिचंदनपुट ब्लॉक में बसा हुआ है। गोदिनारदा गांव में 400 आदिवासी रहते हैं। इन्हीं में से एक बनेश्वर कहते हैं, ‘आजादी के दशकों बाद भी हम दीये और लालटेन की मंद रोशनी में जीवन जीने को मजबूर रहे हैं। शाम ढलते ही रात का गहरा अंधेरा छा जाता था। इसलिए हम सूर्य छिपने से पहले ही अपने सारे काम निपटाकर बच्चों के साथ घरों में सो जाते थे। अगली सुबह होने तक कोई घर से नहीं निकलता था। लेकिन अब सौर ऊर्जा ग्रिड की वजह से हमारी जिंदगी बदल गई है और हम सब की जीवनशैली पहले के मुकाबले बहुत बेहतर हो गई है।’
अपने पुराने संघर्षों को याद करते हुए एक अन्य ग्रामीण फगुना नाइक ने कहा, ‘हमारा गांव टेकोई ब्लॉक के तालपाड़ा पंचायत के अंतर्गत आता है। लेकिन निकटतम पांगा से हमारे गांव तक जाने वाले 8 किलोमीटर लंबे संकरे रास्ते पर इतने कंकड़, पत्थर और बजरी हैं कि दोपहिया वाहन चलाना भी मुश्किल हो जाता है। आईटीडीए के अधिकारियों और कर्मचारियों को हमारे सामुदायिक हॉल में आवश्यक बुनियादी ढांचा स्थापित करने के लिए सौर उपकरण लाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी।’
उन्होंने कहा, ‘सौर ऊर्जा आने से पहले हम अपने गांव को रोशन करने के लिए रात भर अलग-अलग जगहों पर अलाव जलाया करते थे। यदि बारिश होने लगती थी, तो घरों के बरामदों में छोटे-छोटे अलाव जलाए जाते थे।’
राज्य एसटी और एससी विकास अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्ग विभाग के अंतर्गत आने वाले आईटीडीए ने ओटीईएलपी प्लस के तहत सौर ऊर्जा संयंत्र का बुनियादी ढांचा लगाने पर लगभग 8 लाख रुपये खर्च किए हैं। एजेंसी ने पूरे गांव और यहां तक कि संकरी गलियों को भी रोशनी से जगमग करने के लिए बिजली के चार खंभे लगाए हैं। ये सभी सौर ऊर्जा से जलते हैं। अब रात भर पूरे गांव में रोशनी रहती है।
ओटीईपी प्लस के ब्लॉक स्तरीय टीम लीडर और गैर-सरकारी एजेंसी महिला संगठन सामाजिक सांस्कृतिक संघ (डब्ल्यूओएससीए), क्योंझर के समन्वयक बसंत कुमार लेंका कहते हैं, ‘इससे पहले भी गांव में सौर ऊर्जा के 12 खंभे लगाए गए थे, लेकिन वारंटी खत्म होने के कारण उनमें से अधिकांश ने एक के बाद एक तीन साल के भीतर ही दम तोड़ दिया। उनके काम बंद कर देने से गांव पुन: अंधेरे में डूब गया। आईटीडीए ने अपनी ओर से गोदिनारदा में इस ओटीईएलपी प्लस परियोजना को लागू करने के लिए महिला संगठन सामाजिक सांस्कृतिक संघ का सहयोग लिया।

ओटीईएलपी प्लस के प्रभारी कार्यक्रम अधिकारी (योजना, निगरानी और मूल्यांकन) देवेंद्र कुमार राउत ने The Indian Tribal को बताया, ‘हमने सामुदायिक भवन में लगे सौर ऊर्जा संयंत्र के रखरखाव और देखभाल के लिए गांव के 12 लोगों की समिति बनाई थी। उन्हें रखरखाव की बारीकियां समझाने के लिए एक दिन का प्रशिक्षण भी दिया गया था।’
सौर ऊर्जा से जगमगाते घर और गलियों को देख कर ग्रामीण राहत की सांस लेते हुए कहते हैं कि अब वे उम्मीद कर सकते हैं कि उनके बच्चे न केवल दिन छिपने के बाद घर में बैठकर पढ़ सकेंगे, बल्कि वे ऑनलाइन माध्यम से कक्षा 5 से आगे की पढ़ाई भी कर सकेंगे। गांव के स्कूल में कक्षा 5 तक की शिक्षा की व्यवस्था है, लेकिन आसपास कोई हाई स्कूल नहीं है। इस कारण छात्रों को मजबूरन अपनी पढ़ाई बीच में ही छोडऩी पड़ती है।
गांव के प्राइमरी स्कूल में दो शिक्षक पढ़ाते हैं। इनमें से एक जुगेश्वर जुआंग बताते हैं, ‘हमारे स्कूल में लगभग 40 बच्चे पढ़ने आते हैं, लेकिन सूर्य छिपने के बाद गांव में घना अंधेरा पसर जाता है, इसलिए बच्चे स्कूल से जाकर घर पर पढ़ाई नहीं कर पाते। गांव के पिछड़ेपन कायह एक बड़ा कारण है। हालांकि, सौर ऊर्जा लग जाने से यह समस्या जल्द ही खत्म हो जाएगी। अब इन बच्चों को पढ़ाई के लिए लगातार प्रेरित किए जाने की जरूरत है, क्योंकि उनमें से अधिकांश के माता-पिता अनपढ़ हैं और दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम कर आजीविका कमाते हैं।