बस्तर
वर्षों पहले बी. बिंदु के पिता जगदलपुर में आकर बस गए थे। इसके बाद फिर कभी उन्होंने बस्तर की जीवनरेखा कही जाने वाली इद्रावती नदी को पार करने के बारे में नहीं सोचा। बस्तर दुनिया भर में जीवंत आदिवासी संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र का अपना अलग आकर्षण है।
बीते दिनों को याद करते हुए बिंदु कहती हैं कि जब वह छत्तीसगढ़ के इंडस्ट्रीयल हब भिलाई में रहती थीं तो बहुत से लोग जगदलपुर को जंगलपुर कहकर पुकारते थे। बाहरी लोग खासकर जो यहां की जीवनशैली से नावाकिफ थे, उन्हें ऐसा था कि बस्तर का जिला मुख्यालय जगदलपुर एक जंगली और अव्यवस्थित, अविकसित इलाका है।
बिंदु बताती हैं, ‘मेरे पिता ने यहां 1980 के दशक में काम करना शुरू किया था। उस दौर में इस इलाके में बहुत कम सडक़ें थीं। हर तरफ जंगल ही जंगल नजर आते थे।’ लेकिन बिंदु ने इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलीकॉम स्ट्रीम में अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने गृहनगर लौटने का फैसला किया। इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि उन्हें अपनी जड़ों यानी गृह क्षेत्र से बहुत अधिक लगाव था। हालांकि धीरे-धीरे आदिवासियों में उनकी रुचि जगने लगी, क्योंकि उनके पिता आधिकारिक दौरों पर बस्तर के दूरदराज के गांवों में आया-जाया करते थे और वहां के लोगों के बारे में रोचक बातें बताया करते थे।
बिंदु ने The Indian Tribal से बातचीत में बताया, ‘दूसरी बात, जब मैंने 2013 के आसपास अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की, तो उस समय इलेक्ट्रॉनिक्स की मांग बाजार में कम थी। इसलिए, मैंने कुछ अलग करने की ठानी। मेरे माता-पिता ने भी मुझे प्रोत्साहित किया।’
वह कहती हैं, ‘मैंने जीवन में स्वयं को स्थापित करने के लिए कई विकल्प तलाशे। उस समय तक मैं बस्तर के बारे में बहुत अधिक नहीं जानती थी यानी उसकी वास्तविक पहचान से अनजान थी। मेरे पिता राज्य बिजली बोर्ड में कार्यरत थे और इस क्षेत्र के बारे में जो कुछ भी जाना, वह सब अपने पिता के जरिये ही सुना और समझा।’ बस्तर में बिंदु की जीवन यात्रा 2016 में जगदलपुर स्थित ‘अनएक्सप्लोर्ड बस्तर’ नामक एक ट्रैवल स्टार्ट-अप से शुरू हुई।
आज उत्साही उद्यमी बिंदु अपने जीवन में बहुत आगे जा चुकी हैं। ‘कल्चर देवी’ के नाम से अपना खुद का स्टार्ट-अप खड़ा करने वाली बिंदु को अब पर्यटकों के साथ यहां के रहन-सहन और सांस्कृतिक विरासत की गुत्थियां सुलझाते देखा जा सकता है। वह बताती हैं, ‘बस्तर के अलावा मैंने नागालैंड की आदिवासी संस्कृति को भी विस्तार से जाना और समझा है। मुझे व्यक्तिगत तौर पर लोक कथाओं एवं मिथकों में बड़ी दिलचस्पी है।’
बिंदु ने अपने स्टार्ट-अप का नाम देवी क्यों रखा, इस बारे में वह समझाती हैं, ‘देवी भारतीय समाज में महिला रूप का प्रतिनिधित्व करती है। भले ही भारतीय समाज में महिलाओं पर अनेक प्रतिबंध थोपे जाते हैं, लेकिन सच यही है कि महिलाएं ही अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम करती हैं।’
इसके अलावा, बस्तर की इष्टदेवी भी देवी दंतेश्वरी ही हैं। बस्तर की आदिवासी संस्कृति में पूजे जाने वाले अन्य देवताओं में जलनी माता का नाम सबसे खास है। उन्हें समर्पित कई पवित्र उपवन भी हैं। ओडिशा से बेहद प्रेरित बिंदु कहती हैं कि बस्तर की रथ यात्रा में निश्चित रूप से आदिवासी संस्कृति की झलक देखने को मिलती है, लेकिन यहां जुलाई में आयोजित होने वाले गोंचा उत्सव का कुछ अलग ही आकर्षण है, जिसे धुरवा जनजाति के लोग बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। धुरवा आदिवासी बांस और सूखे ताड़ के पत्तों से नकली पिस्तौल तुपकी बनाते हैं, जो बहुत लोकप्रिय है। बिंदु पर्यटकों को 6,500 रुपये में चार दिन तक गोंचा उत्सव घुमाती हैं और यहां की सांस्कृतिक विरासत को दिखाती हैं।
बस्तर जिले में पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा देने का श्रेय पूर्व कलेक्टर अमित कटारिया और रजत बंसल को जाता है। वरना इससे पहले लोगों को इस जगह के बारे में बहुत कम ही जानकारी थी। बिंदु ने बताया कि पर्यटन की दृष्टि से अविकसित बस्तर क्षेत्र में उनका अब तक का सफर बहुत ही शानदार रहा, क्योंकि उन्होंने सबसे ज्यादा आजीविका सृजन के लिए संघर्षरत स्थानीय समुदायों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने बताया, ‘वह जब भी बस्तर आती तो काफी हद तक उनका दौरा बस्तर-केंद्रित ही रहता, जिसमें वह ज्यादा से ज्यादा क्षेत्र के आदिवासियों से मिलती-जुलती और उन्हें समझने की कोशिश करती, ताकि उनका भविष्य बेहतर हो सके।’
एक महिला पर्यटन गाइड के रूप में बिंदु चाहती हैं कि अधिक से अधिक महिलाएं उनकी इस यात्रा में शामिल हों। वह कहती हैं, ‘अभी भी अकेली महिला यात्रियों का घर से बाहर निकलना बहुत कम होता है। ज़्यादातर महिलाएं अपने घर के पुरुषों के साथ ही यात्रा या पर्यटन के लिए निकलती हैं। मैं इस ट्रेंड, इस हवा का रुख बदलना चाहती हूं।’