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Home » द इंडियन ट्राइबल / हिंदी » विविध » मोबाइल रेडियो ने उठाया असुर भाषा को बचाने का बीड़ा

मोबाइल रेडियो ने उठाया असुर भाषा को बचाने का बीड़ा

पिछले तीन वर्षों से सबसे प्राचीन और कमजोर जनजातीय समूहों में से एक की लुप्तप्राय असुर भाषा को संरक्षित करने और उसे बढ़ावा देने की अनूठी पहल शुरू की है झारखंड के स्वदेशी मोबाइल रेडियो ने। क्या है यह पहल, बता रहे हैं सुधीर कुमार मिश्रा

November 2, 2024
Asur Radio

असुर मोबाइल रेडियो टीम काम करते हुए

रांची

आप जब झारखंड की राजधानी से लगभग 100 किलोमीटर दूर लातेहार और गुमला जिलों के आंतरिक क्षेत्रों में जाएंगे तो वहां सार्वजनिक समारोहों और गांव के हाटों यानी साप्ताहिक बाजारों में आपको लाउडस्पीकरों से तेज आवाज में गाने, संगीत, कहानियां और यहां तक कि समाचार भी सुनने को मिलेंगे। वहां ऐसे दृश्य आम हैं। लोग खड़े होकर बड़े ध्यान से अपनी बोली में समाचार सुनते हैं और संगीत का आनंद भी लेते हैं।

जब इस बारे में पूछा गया तो पता चला कि यह लगभग 20 सदस्यों की एक समर्पित टीम है, जो स्वदेशी असुर अखरा मोबाइल रेडियो (एएएमआर) के माध्यम से आदिम कमजोर जनजातीय समूह की असुर भाषा को संरक्षित करने के लिए काम कर रही है।

असुर कौन हैं?

असुर देश के सबसे पुराने विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) में से एक हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में इस आदिवासी समुदाय की आबादी सिर्फ 33,000 ही बची है। इस जनजाति के ज्यादातर लोग झारखंड में रहते हैं। उनकी असुर भाषा की अपनी कोई लिपि नहीं है और यूनेस्को ने इसे लुप्तप्राय भाषा के रूप में सूचीबद्ध किया है।

असुर महिषासुर के संदर्भ में भी बोला जाता है। महिषासुर राक्षसों का राजा है, जिसका देवी दुर्गा ने वध कर दिया था। इस मौके को हर साल दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है, जिसका समापन दशहरा के दिन होता है। इसके अलावा, रावण पर भगवान राम की जीत के अवसर को भी खुशी के मौके के तौर पर मनाया जाता है। लेकिन, कुछ लोगों के अनुसार, महिषासुर को असुर जैसे आदिवासी समुदाय भगवान मानते हैं।

Asur PVTG
असुर आदिवासी नृत्य प्रस्तुति देते हुए

पारंपरिक रूप से असुरों को लोहा गलाने वाले मेहनतकश के रूप में जाना जाता था। हालांकि, समय बीतने के साथ-साथ उनमें से ज्यादातर ने अब खेती-किसानी का रुख कर लिया और जीवनयापन के साधन के रूप में कृषि को ही अपना पेशा बना लिया है।

कैसे आया असुर को बचाने का ख्याल

वर्ष 2006 में झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखरा ने पहली बार असुरों की भाषा और संस्कृति को संरक्षित और समृद्ध करने के लिए पहल की और इसकी शुरुआत ग्रंथों के प्रकाशन से हुई।

झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखरा की महासचिव वंदना टेटे ने The Indian Tribal से बातचीत में बताया, ‘शुरुआत में अपने समुदाय के लिए एक प्रसारण प्रणाली शुरू करने की आवश्यकता महसूस की गई, लेकिन फिर एक आवृत्ति-आधारित सामुदायिक रेडियो स्टेशन को सरकार से मंज़ूरी ली जाती है, जिसमें काफी निवेश की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, आदिवासी क्षेत्र में एक सामुदायिक रेडियो तब तक बेकार है जब तक कि वह उनकी अपनी भाषा में प्रसारण न करे और ऐसा शायद ही कभी होता हो। इसलिए, असुर भाषा के पुनरुद्धार के लिए एक वैकल्पिक अद्वितीय सामुदायिक रेडियो शुरू करने के बारे में विचार किया गया।’

Asur Radio
एएएमआर समन्वयक वंदना टेटे एक कार्यक्रम के लिए दूरदर्शन रांची कार्यालय में मोबाइल रेडियो टीम के साथ

एएएमआर की समन्वयक टेटे ने कहती हैं, ‘हमारे मातृ संगठन प्यारा फाउंडेशन और हमारे शुभचिंतकों द्वारा दी गई मदद से हमें आगे बढऩे का हौसला मिला।’

असुर अखरा मोबाइल रेडियो (एएएमआर) क्या है ?

असुर अखरा मोबाइल रेडियो की शुरुआत का विचार 2019 में आया था। जी-तोड़ मेहनत कर तीन साल पहले यह सपना साकार हो गया और रेडियो चलने लगा। स्वाभाविक रूप से यह पारंपरिक सामुदायिक रेडियो या एफएम चैनल जैसा बिल्कुल नहीं था। इस मोबाइल रेडियो से जुड़ी टीम के सदस्य ज्यादातर खुले मैदानों और विशेष रूप से गुमला जिले के बिशुनपुर ब्लॉक के जोभीपाट और सखुआपानी गांवों में कार्यक्रम को रिकॉर्ड करते हैं। रिकॉर्ड की गई सामग्री को फिर पेन ड्राइव में स्थानांतरित किया जाता है। इसके बाद वे अपनी साइकिलों या यहां तक कि अपने सिर पर साउंड बॉक्स या लाउडस्पीकर लेकर आसपास के गांवों के बाजारों या जहां भी अधिक भीड़ दिखाई देती, वहां खड़े हो जाते हैं और लोकगीत, आधुनिक संगीत कार्यक्रम, कहानियां और पसंदीदा गानों के साथ-साथ समाचार भी बजाते हैं। उन्होंने बताया कि इस सामुदायिक रेडियो द्वारा निर्मित कार्यक्रम यूट्यूब और सोशल मीडिया के अन्य मंचों पर भी उपलब्ध हैं। समिति के सदस्यों को उनके उपलब्ध संसाधनों और तकनीकों का सर्वोत्तम उपयोग करने में सक्षम बनाने के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किया गया था, टेटे ने बताया कि रेडियो जल्द ही पास के लुपिंगपाट गांव में चालू हो जाएगा।

Asur Mobile Radio
असुर मोबाइल रेडियो का प्रसारण चल रहा है

टीम में कौन-कौन?

टेटे ने बताया, ‘यह 20 सदस्यों की टीम है, जिसका नेतृत्व चैत टोप्पो कर रहे हैं।’ असिंता असुर, रोशनी असुर, मिलन असुर, सुषमा असुर, रोपनी असुर, अजय और श्रद्धानंद कहानीकार हैं, जबकि विवेक असुर, रमेश टोप्पो और बरनबास टोप्पो रेडियो जॉकी हैं। समाचार वाचकों और एंकरों में सुशांति असुर, संतोषी असुर और दिव्या असुर शामिल हैं।

यूं तो इस टीम के पास संसाधनों की कमी के कारण अपना उचित स्टूडियो तक नहीं है, लेकिन यह पहल लगातार लोकप्रिय हो रही है। असुर युवाओं में इसे लेकर क्रेज बढ़ता जा रहा है। यह स्वदेशी रेडियो असुर युवाओं में अपनी भाषा के प्रति रुचि पैदा कर कर रहा है। कुछ युवाओं ने देवनागरी लिपि का उपयोग करते हुए असुर भाषा में लिखना भी शुरू कर दिया है। कहानीकार असिंता असुर को पिछले साल एएएमआर से जुड़े होने के कारण भोपाल में एक अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक समारोह में भी आमंत्रित किया गया था।

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