रांची
बचपन के दिनों में वह अक्सर गांव की महिलाओं को घर की दीवारों और फर्श को मिट्टी तथा गाय के गोबर से लेपते हुए देखा करती थीं। उस समय उन्होंने या गांव की किसी अन्य महिला ने कल्पना भी नहीं की थी कि एक दिन यह लडक़ी लंदन में संगमरमर के फर्श और दीवारों पर इसी तरह लेप कर कलाकृति बनाया करेगी।
लेकिन, ऐसा हुआ। सच न होने वाला सपना भी सच हो गया। कुछ दिन पहले की ही बात है जब लंदन स्थित यूनिवर्सिटी परिसर के फर्श और दीवारों पर उनकी पेंटिंग ने धूम मचा दी और वह एकाएक सुर्खियों में आ गईं। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने स्वयं अपने ‘एक्स’ सोशल मीडिया हैंडल पर उन्हें बधाई दी और उनकी खूब तारीफ की।
अपनी एक्स पोस्ट में झारखंड के मुख्यमंत्री ने लिखा, “बधाई हो वंदना ज्योति। आपको और मारंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा ओवरसीज स्कॉलरशिप और चेवनिंग-मारंग गोमके ओवरसीज स्कॉलरशिप हासिल करने वाले सभी साथियों को मेरी शुभकामनाएं।“
ज्योति वंदना लकड़ा गुमला जिले के चैनपुर ब्लॉक की रहने वाली हैं, जिन्होंने इंग्लैंड में यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट लंदन के डॉकलैंड्स कैंपस में फाइन आर्ट में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है, लेकिन अभी रिजल्ट नहीं आया है। वंदना उन छात्रों में शामिल हैं, जिन्हें विदेश में उच्च शिक्षा के लिए राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई छात्रवृत्ति प्रदान की गई।
छात्रवृत्ति का सहारा मिलते ही वंदना के सपनों को पंख लग गए और उन्होंने इस अवसर का भरपूर उपयोग करते हुए यूनिवर्सिटी में पारंपरिक स्वदेशी कला और संस्कृति को उभारने में अपनी प्रतिभा का शानदार प्रदर्शन किया। वह कहती हैं, यह उनके लिए समृद्ध झारखंडी संस्कृति, रीति-रिवाजों और परंपराओं को विदेशी धरती पर खूबसूरती से प्रदर्शित करने का बेहतरीन मौका रहा।
जब ज्योति से पूछा गया कि उन्होंने दूर देश में यह सब कैसे किया तो कुडुख भाषा और साहित्य को नई पहचान दिलाने के मिशन में आगे चल रही लाकड़ा ने The Indian Tribal को बताया, “मैंने झारखंड से अलग-अलग तरह की सूखी मिट्टी ली, उसमें चंदन की लकड़ी का पेस्ट और सफेद ऐक्रेलिक पेंट मिलाया, ताकि संगमरमर या विट्रीफाइड टाइल्स के फर्श पर पेंट करने पर वे चमकीले दिखें।”
लंदन की उस यूनिवर्सिटी की दीवार पर ज्योति की पेंटिंग बिल्कुल वैसी ही दिख रही थी जैसी भारत में आदिवासी घरों की दीवारें गाय के गोबर या मिट्टी से लेपने पर दिखती हैं।
ज्योति के पिता झारखंड राज्य बिजली बोर्ड में कर्मचारी हैं और मां गृहणी। विदेश में पढ़ने के लिए यह छात्रवृत्ति कैसे मिली, इस सवाल का जवाब देते हुए ज्योति ने कहा, ‘एमए (अंग्रेजी) करने के बाद मैं एक स्कूल शिक्षिका बन गई, लेकिन ललित कला के क्षेत्र में कुछ विशेष करना मेरा असली लक्ष्य था। इसलिए मैंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में स्नातक पाठ्यक्रम में दाखिला लिया, जहां मुझे झारखंड सरकार की महत्वाकांक्षी मारंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा विदेशी छात्रवृत्ति योजना के बारे में पता चला। थोड़ी सी मेहनत करनी पड़ी, लेकिन पिछले साल अगस्त में मेरा चयन हो गया।’
भविष्य की क्या योजना है? वह बताती हैं कि स्कॉलरशिप के नियमों के मुताबिक एक साल के भीतर मास्टर्स कोर्स पूरा करना अनिवार्य था, इसलिए उन्होंने कोई पार्ट-टाइम नौकरी नहीं की। जबकि उसके विश्वविद्यालय में कई अन्य लोग पार्ट-टाइम नौकरी करते हैं, लेकिन अब मेरा मास्टर्स पूरा हो चुका है और मैं रिजल्ट का इंतजार कर रही हूं। रिजल्ट आते ही मैं कोई न कोई नौकरी तलाश करूंगी। निश्चित ही मैं काम करने की योजना बना रही हूं, क्योंकि दो साल का अनुभव ही अच्छी शुरुआत करने के लिए मायने रखता है।
ज्योति उचक कर बताती हैं कि अच्छी खबर है कि यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट लंदन को इंग्लैंड में 7वीं रैंक हासिल हुई है। उच्च रैंकिंग वाले विश्वविद्यालय से पास आउट होने का बड़ा फायदा यह होगा कि फाइन आर्ट्स यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर जैसे पद पर नौकरी पाने में मदद मिल जाएगी। उन्होंने बताया कि यदि ऐसा होता है तो मैं सरकारी कार्यक्रमों के लिए क्रिएटिव क्यूरेटर के पद के लिए भी आवेदन कर सकती हूं।
अपने लक्ष्यों पर बात करते हुए ज्योति स्पष्ट कहती हैं, वैश्विक मंचों पर पारंपरिक स्वदेशी कला और संस्कृति को बढ़ावा देना तथा आने वाली पीढ़ियों को शिक्षित करना उनका मुख्य उद्देश्य है।