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Home » द इंडियन ट्राइबल / हिंदी » द इंडियन ट्राइबल / उप्लाब्धिकर्ता » क्या बैंक की नोकरी छोड़ खेती करने का निर्णय सही था?

क्या बैंक की नोकरी छोड़ खेती करने का निर्णय सही था?

सुगंधित पौधों की खेती करने के लिए उन्होंने बेझिझक होकर बैंक की अपनी पक्की नौकरी छोड़ दी। इन सुगंधित पौधों का तेल बाजार में महंगे दामों पर बिकता है। ऐसे में अब एक साल बाद क्या उन्हें अपने फैसले पर पछतावा है? निरोज रंजन मिश्र के साथ बातचीत में इस उत्साही आदिवासी युवा ने दिए तमाम सवालों के जवाब

September 28, 2024
टेकचंद लेमनग्रास पकड़े हुए | The Indian Tribal

टेकचंद लेमनग्रास पकड़े हुए

भुवनेश्वर

ओडिशा के नबरंगपुर जिले के रायघर गांव में रहने वाले टेकचंद नायक 2022 तक भारतीय स्टेट बैंक की रायघर शाखा में अकाउंटेंट के पद पर कार्यरत थे। एक ही पोजिशन में लगातार घंटों बैठने की वजह से उन्हें स्पॉन्डिलाइटिस का भयंकर दर्द हुआ। अब उनका दिल इस काम में नहीं लग रहा था और वह बार-बार कुछ नया करने के लिए सोचते रहते थे।

नायक को उद्यमिता का कीड़ा काट चुका था। वह अपना काम बदलने के बारे में गंभीरता से सोच रहे थे। इसलिए काफी विचार-विमर्श के बाद उन्होंने आगे बढ़ने का संकल्प लिया। नौकरी छोड़ वह लेमनग्रास, सिट्रोनेला और यूकेलिप्टस की खेती में जुट गए। इसकी शुरुआत उन्होंने 2019 में लगभग पांच एकड़ भूमि पर पौधे लगाकर की थी।

इस बीच, वह अपनी नौकरी के व्यस्त शेड्यूल से समय निकालकर 2020 में लखनऊ स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ एरोमेटिक एंड मेडिसिनल प्लांट (सीआईएएमपी) में एक सप्ताह का प्रशिक्षण लेने पहुंच गए। इसके बाद उन्होंने व्यवस्थित तरीके से इन पौधों की खेती में ध्यान लगाना शुरू कर दिया।

वर्ष 2024 आते-आते टेकचंद पूरी तरह कृषि क्षेत्र के खिलाड़ी बन गए। अब वह लगभग 30 एकड़ में लेमनग्रास, 3 एकड़ में सिट्रोनेला और 40 एकड़ में यूकेलिप्टस की खेती कर रहे हैं। उन्होंने अपने पैतृक गांव में ही 7 लाख रुपये की लागत से आसवन संयंत्र स्थापित किया है, ताकि स्वयं तेल निकालकर बेच सकें। अब वह 20 से अधिक व्यापारियों को लेमनग्रास तेल बेच रहे हैं। इनमें अधिकतर पड़ोसी आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं।

नायक ने सीआईएएमपी से 10 एकड़ भूमि में लगाने के लिए 2.5 लाख लेमनग्रास और दो एकड़ के लिए 40,000 सिट्रोनेला के पौधे मुफ्त हासिल किए। हालांकि उन्हें नबरंगपुर की पेपर मिल से 7 एकड़ भूमि के लिए यूकेलिप्टस के 40,000 पौधे 7 रुपये प्रति पौध के हिसाब से खरीदने पड़े। मालूम हो कि यूकेलिप्टस का उपयोग पेपर मिलों में किया जाता है।

Tribal Agri Entrepreneur
टेकचंद अपने खेत में

टेकचंद ने The Indian Tribal से बातचीत में कहा, ‘मैंने तीनों किस्मों की खेती के लिए 20,000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से 73 एकड़ भूमि पांच साल के लिए पट्टे पर ली है।’ वह कहते हैं, ‘मैंने खेती के लिए कभी कोई ऋण नहीं लिया। नौकरी के दौरान की बचत और नौकरी छोड़ने के बाद जो रकम मिली, मैंने उसी का निवेश इसमें किया। मेरे दो बड़े भाइयों ने भी इसमें पैसा लगाया है। वे दोनों ही खेती नहीं करते, बल्कि पेशे से फिटर हैं।

सिट्रोनेला, लेमनग्रास और यूकेलिप्टस के पत्तों से तेल निकाला जाता है, जिसकी बाजार में बहुत अधिक मांग है। इनके तेलों का उपयोग कॉस्मेटिक, फार्मास्युटिकल उत्पाद और डिटर्जेंट आदि बनाने में किया जाता है। सीआईएएमपी के वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ. प्रशांत कुमार राउत कहते हैं, ‘लेमनग्रास, सिट्रोनेला और यूकेलिप्टस जैसे पौधों से निकलने वाले सुगंधित तेलों से दर्द निवारक बाम, मच्छर भगाने वाली क्रीम, मसाज ऑयल, फिनाइल, रूम फ्रेशनर और कई अन्य उत्पाद भी तैयार किए जाते हैं।’ 

टेकचंद की खेती से मिलने वाले तेल की बात करें तो लेमनग्रास से प्रति एकड़ करीब तीन टन तेल निकलता है, जबकि सिट्रोनेला से दो क्विंटल और यूकेलिप्टस के पत्तों से पांच क्विंटल तेल निकल जाता है।

पूर्व बैंक कर्मी टेकचंद सुगंधित तेलों को बेचकर सालाना 37 लाख रुपये से ज्यादा का कारोबार करते हैं। इसमें अकेले लेमनग्रास के तेल से उन्हें करीब 30 लाख रुपये मिलते हैं जबकि यूकेलिप्टस और सिट्रोनेला तेल से क्रमश: 5 लाख और 2 लाख रुपये का कारोबार हो जाता है। हालांकि, इन तीनों तरह के ही तेलों की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है, जिसका असर उनके कारोबार भी पड़ता है।

लेमनग्रास और सिट्रोनेला की खेती करने वाले अन्य किसान तो पांच साल तक अपनी जमीन को न तो जोतते हैं और न ही उसमें खाद डालते हैं, लेकिन टेकचंद अपनी पट्टे की जमीन में भी हर दूसरे साल जोतने और खाद डालने पर 10,000 से 15,000 रुपये तक खर्च करते हैं। इसका सीधा असर सिट्रोनेला और लेमनग्रास की फसल पर पड़ता है, जो भरपूर उपज देती है।

Tribal Agri Entrepreneur
टेकचंद अपनी डिस्टिलेशन यूनिट में

वह बताते हैं, ‘खेती की लगातार देखभाल के लिए मैंने 8 कर्मचारी रखे हैं। अधिक जरूरत पडऩे पर मैं 15 से 20 अतिरिक्त दिहाड़ी मजदूरों को भी काम पर लगाने से हिचकिचाता नहीं हूं। मेरे पास 50 बकरियां हैं, जिन्हें मैं मांस के लिए पालता हूं। आकार के हिसाब से प्रत्येक बकरी 3000 से 8000 रुपये में बिक जाती है। बकरियां सिट्रोनेला और लेमनग्रास की खेती में घूमती-फिरती हैं, जिससे फसल और अच्छी होती है, क्योंकि वे खेत में उगने वाली जंगली घास और अवांछित पौधों को चर लेती हैं।’

जब उनसे पूछा गया कि खेती के लिए नौकरी छोड़ने का जोखिम लेकर पछता तो नहीं रहे? इसके जवाब में वह तपाक से कहते हैं, ‘बिल्कुल नहीं। नौकरी छोड़ कर खेती में आना मेरे लिए बहुत फायदे का सौदा रहा।’

अब आगे क्या योजना है? इस बारे में टेकचंद बताते हैं कि अगला कदम लेमनग्रास, सिट्रोनेला और यूकेलिप्टस से तेल के अलावा उप-उत्पाद बनाकर अपने कृषि कारोबार में  विविधा लाने का प्रयास करेंगे, ताकि इन पौधों से निकलने वाली पत्ती, जड़ और तने जैसी सभी चीजों का सदुपयोग हो और अधिक से अधिक फायदा हासिल किया जा सके।

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Maloti Hambram, an LL.M. scholar from the National University of Study and Research in Law (NUSRL), Ranchi, and a member of the tribal community from East Singhbhum, represented India at the German-India Innovation Summit (GIIC) 2025, held on October 6th–7th in Berlin, Germany. She actively contributed to the summit’s working sessions.The summit, focused on accelerating innovation and technological collaboration between India and Germany. Following the Berlin summit, Hambram extended her diplomatic engagements during her visit to Belgium from October 9th–10th, 2025, where she held insightful discussions with Members of the European Parliament  and officials from the Belgian Embassy.
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The Indian Tribal is India’s first bilingual (English & Hindi) digital journalistic venture dedicated exclusively to the Scheduled Tribes. The ambitious, game-changer initiative is brought to you by Madtri Ventures Pvt Ltd (www.madtri.com). From the North East to Gujarat, from Kerala to Jammu and Kashmir — our seasoned journalists bring to the fore life stories from the backyards of the tribal, indigenous communities comprising 10.45 crore members and constituting 8.6 percent of India’s population as per Census 2011. Unsung Adivasi achievers, their lip-smacking cuisines, ancient medicinal systems, centuries-old unique games and sports, ageless arts and crafts, timeless music and traditional musical instruments, we cover the Scheduled Tribes community like never-before, of course, without losing sight of the ailments, shortcomings and negatives like domestic abuse, alcoholism and malnourishment among others plaguing them. Know the unknown, lesser-known tribal life as we bring reader-engaging stories of Adivasis of India.

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