द इंडियन ट्राइबल
रांची
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय (डीएसपीएमयू), रांची के कुरमाली भाषा विभाग में करम पूजा संबंधित एक पारंपरिक रस्म, जाउआ उठा नेग, का आयोजन रविवार को किया गया।
इसे सात दिन का जाउआ उठा कहा जाता है। झारखंड में कुरमी समाज और कुरमाली संस्कृति में भादो महीने की एकादशी तिथि (11वें दिन) के दिन करम डाली की पूजा की जाती है। इसके पूर्व 9, 7 या 5 दिन पूर्व ही जाउआ को लड़कियों द्वारा उठाये जाने की परंपरा है।
डीएसपीएमयू, रांची के कुरमाली भाषा विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ निताई चंद्र महतो कहते हैं कि कुरमी समाज और कुरमाली संस्कृति में जाउआ पर्व का सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। इसको शादी के पूर्व किया जाता है। कुंवारी लड़कियां इसकी देखभाल एक बच्चे के लालन-पालन के तरीके से करती है। इसमें उन्हें मातृत्व का एहसास होता है। इसलिए करम डाली के पूजा के पूर्व तक कई परहेज में जाउआ माइ को रहना पड़ता है। जिसमें उन्हें गुड़, खट्टा, तीखा, दूध, दही, भोजन में ऊपर से नमक लेकर खाने की मनाही रहती है। सरहुल की तरह ही करम पर्व की प्रकृति के संरक्षण और संवर्द्धन का संदेश देता है।
जाउआ उठाने पूर्व के दिन के अनुसार उतने ही भिन्न-भिन्न प्रकार के बीजों को बालू में अंकुरित करने के लिए रखा जाता है। कुरमाली भाषा विभाग में 7 दिन का जाउआ उठाया गया। इसमें 7 भिन्न तरह के बीज (कुरथी, जनहाइर, बिरही, मूंग, जौ, मटर, चना) को पारंपरिक विधि के अनुसार सर्वप्रथम सरसों तेल और हल्दी डालकर मिलाया गया। फिर जाउआ डाली (बांस की बनी टोकरी) में इसे तीन परत में बोया गया।
पहली परत में बाली डाली गई, फिर सभी सात प्रकार के बीजों को बोया गया फिर इसे बाली से ढंका गया। जिस डाली में जाउआ उठाया गया, उसमें लड़कियों ने सिंदूर व काजल का टीका लगाया और इसे प्रणाम कर उठाया गया।
जाउआ उठाने का कार्य सुबह से उपवास रखकर लड़कियां ही करती हैं। जो लड़कियां जाउआ उठाती है, उन्हें- जाउआ माइ, कहा जाता है और जिस डाली में इसे उठाया जाता है, उसे- जाउआ डाली, कहा जाता है। जाउआ उठाने के बाद लड़कियों ने जाउआ उठा पुरखा नृत्य-गीत प्रस्तुत कर करम पर्व का उल्लास साझा किया।