कुर्सियांग (पश्चिम बंगाल)
द्ज़ोंगू के रहने वाले दो लोक नर्तक भाई किंगचुम और नामचुंग लेप्चा लोक नृत्य के क्षेत्र में खूब लोकप्रिय हुए, लेकिन मन में एक कसक थी कि उन्हें विलुप्त होती अपनी विरासत के लिए कुछ करना चाहिए। वे एक दायरे से निकल कर पैर फैलाना चाहते थे और जब इसके लिए उन्होंने प्रयास शुरू किए तो परिवार एवं दोस्तों से पूरा समर्थन मिला। इस प्रकार देखते ही देखते लोक फ्यूजन बैंड की शुरुआत हो गई।
18 सितंबर, 2018 की रात को जिस समय अधिकांश लोग गहरी नींद में सो रहे थे तब लासोमंग कुप बैंड (पीढ़ी का जोश) की नींव रखी गई। जोश से भरपूर युवाओं के समूह ने लोगों को प्रेरित करने एवं सपनों को जगाने की उम्मीद के साथ लेप्चा लोक फ्यूजन बैंड की स्थापना की।
इन युवाओं ने अपने बैंड का नाम भी अपने समाज की महान विभूतियों में से एक लासोमंग के नाम पर रखा, जिन्हें पहले लेप्चा के रूप में जाना जाता है।
बैंड की शुरुआत, इसके संघर्षों और उद्देश्यों को लेकर The Indian Tribal ने बैंड के सदस्यों किंगचुम लेप्चा और रिनजिंग शेरपा के साथ-साथ उनके मैनेजर पेनचुंग लेप्चा और बैंड सहायक थिनले लेप्चा से विस्तृत बातचीत की। उन्होंने बताया कि बैंड में छह सदस्य हैं। किंगचुम लेप्चा और सुनोम लेप्चा गायक, गीतकार और संगीतकार हैं। इसके अलावा, किंगचुम इस बैंड में लेप्चा लोक वाद्ययंत्र तुंगबुक बजाते हैं।
निमचुंग लेप्चा बासिस्ट हैं और तुंगदार बोंग बजाते हैं, जो एक प्रकार का लेप्चा लोक ड्रम है। रिनजिंग शेरपा गिटार बजाते हैं। शेरिंग सी. लेफा तालवादक और पाश्र्व गायक हैं। गायक चुसोंग लेप्चा गायकी में इनका साथ निभाते हैं। यह देखकर अत्यंत खुशी होती है कि आज के दौर में 25 से 30 साल की उम्र के युवा अपनी विरासत को सहेजने उसका प्रचार-प्रसार करने के लिए पारंपरिक लोक संगीत वाद्ययंत्रों का उपयोग करते हुए जी-जान से जुटे हैं।
बैंड को शुरू करने की प्रेरणा के बारे में इसके सह-संस्थापक किंगचुम लेप्चा ने कभी बचपन में सुने लेप्चा संगीत को संरक्षित करने की अपनी तीव्र इच्छा को बताया। शुरुआत में उन्हें और उनके भाई को लोक नर्तक के रूप में खूब लोकप्रियता हासिल हुई। बाद में उन्होंने संगीत को अपना करियर बनाने का फैसला किया। यह इतना आसान भी नहीं था, क्योंकि उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि संगीत से जुड़ी नहीं थी। धीरे-धीरे इस बैंड ने लोक संगीत में रॉक का तड़का दिया। इसने उन्हें और भी प्रसिद्धि दिलाई, लेकिन वे स्वाभाविक रूप से पूरी तरह लोक संगीत को ही बढ़ावा देना चाहते हैं और अपने बैंड को लोक संगीत को ही समर्पित करना चाहते हैं । हालांकि, उन्हें इस बात का भी डर सताता है कि कहीं पश्चिमी संगीत शैलियों में डूबा युवा वर्ग उनसे छिटक न जाए।
लेप्चा लोक फ्यूजन बैंड आज अपना संगीत स्वयं तैयार करता है। इसके सदस्य ही अपने गीत लिखते हैं और वे ही प्रस्तुति भी देते हैं। हां, ऑनलाइन जैसे यूट्यूब पर गीत-संगीत अपलोड करने या प्रस्तुति देने के लिए बैंड के सदस्य विशेष रूप से किंगचुम और सुनोम ने गंगटोक के एक लेप्चा संगीत समूह नुनाओम के साथ हाथ मिलाया है।
प्रमुख गिटारवादक रिंजिंग शेरपा ने The Indian Tribal को बताया कि युवा वर्ग पारंपरिक लोक संगीत की तुलना में फ्यूजन संगीत को अधिक पसंद करता है। यही वजह रही कि उन्हें अपने संगीत को संरक्षित करने और इसे व्यापक दर्शकों तक पहुंचाने के लिए अन्य शैलियों का सहारा लेना पड़ा। अपने बैंड की संघर्ष की कहानी को आगे बढ़ाते हुए पेनचुंग बताते हैं कि सभी सदस्यों को एक जगह पर जमा करना मुश्किल होता है, क्योंकि उन सभी के पास अन्य काम भी होते हैं। क्योंकि इनमें ज्यादातर के ऊपर पारिवारिक जिम्मेदारियां हैं। वैसे जब सभी साथी एक जगह एकत्र हो जाते हैं तो इसमें कोई दो-राय नहीं कि यह बैंड में तब्दील हो जाते हैं। यह एक ब्वाज क्लब बन जाता है।
रिनजिंग कहते हैं कि शराब की दावत के बाद संगीत, हंसी-मजाक और लंबी बातचीत उनके दिन को शानदार बना देती है। यह ऐसा दिन होता है, जिसमें हर कोई उनके साथ हंसता-मुस्कुराता है।
लासोमंग कूप नियमित रूप से पूरे राज्य में होने वाले संगीत समारोहों, जिनमें अमूमन स्वदेशी कलाकारों को ही बुलाया जाता है, में भाग लेता है। उन्होंने इसी साल फरवरी के महीने में झारखंड में आयोजित एक कार्यक्रम रिदम ऑफ़ द अर्थ में भाग लिया, जिसमें देश भर के आदिवासी कलाकारों ने अपनी प्रतिभा के जौहर दिखाए। यहां उन्हें अन्य आदिवासी कलाकारों और संगीतकारों से मिलने का मौका मिला।
वे इस बात पर अफसोस जताते हैं कि इस प्रकार के आयोजनों के लिए सरकार पर्याप्त कदम नहीं उठा रही है। वह इस तरह की गतिविधियों को शुरू करने के लिए अन्य लोगों और संगठनों के आगे आने का ही इंतजार करती है। उन्हें उम्मीद है कि सरकार आदिवासी कलाकारों, बैंड और संगीतकारों को एक मंच प्रदान करेगी, ताकि लोक संगीत के प्रचार-प्रसार के लिए सुरक्षित वातावरण मिले।
उनके लिए आदिवासी बैंड होना ही सब कुछ है। यह टोली अपनी एकता पर बहुत गर्व महसूस करती है। बैंड के मुख्य गिटारवादक एकमात्र गैर-लेप्चा सदस्य रिनजिंग शेरपा कहते हैं कि बैंड में होने और अन्य सदस्यों को अपनी संगीत विरासत को संरक्षित करने में इतने तल्लीन होते देख उन्हें भी अपनी जनजाति के संगीत और इतिहास को सहेजने की प्रेरणा मिलती है। उन्हें उम्मीद है कि अंतत: युवा शेरपा भी उनके लेप्चा लोक फ्यूजन बैंड से प्रेरित होकर अपने सांस्कृतिक दायित्वों को निभाने के लिए आगे आएंगे।
बैंड के सदस्य बताते हैं, ‘हमारे बैंड को देख कर काफी युवा प्रेरित हुए हैं और अब कई नए बैंड उभर कर आ रहे हैं। हमने महिला गायिकाओं को खूब बढ़ावा दिया है और प्रसिद्ध गायकों को अपने साथ जोड़ा है। उन्होंने बताया कि हमने पिछले साल दिल्ली में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान सिक्किम का प्रतिनिधित्व किया था। आज हमारे कई गाने लेप्चा संगीत जगत की सूची में शामिल हो गए हैं।’
बैंड के सदस्य बड़ी भावुकता के साथ बताते हैं, ‘युवा और खास कर ऐसे लोग जो राज्य से बाहर रह रहे हैं, हमारे लोकगीतों को बड़े शौक से सुनते हैं। इससे पता चलता है कि बड़ी संख्या में लोग पश्चिमी गीतों से हटकर अपने सांस्कृतिक गीतों की ओर वापस आ रहे हैं या आना चाहते हैं। कितने ही लोग ऐसे हैं, जो अभी भी अपनी मातृभाषा में लिखना-बोलना नहीं जानते। मूल रूप से हम इस संगीत के जरिए उन्हें अपनी जमीन, संस्कृति से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। इससे उन्हें अपनी सांस्कृतिक विरासत के बारे में पता चलता है और वे इस पर गर्व महसूस करते हैं।’
यह बैंड केवल प्रसिद्धि का भूखा नहीं है। इसके सदस्य आने वाली पीढ़ी और ऐसे महत्वाकांक्षी कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनना चाहते हैं, जो दूरदराज के छोटे-छोटे गांवों से आते हैं। इस समय यह बैंड एक एकल गीत की रचना करने में जुटा है, जिसे उन्होंने खुद लिखा और संगीतबद्ध किया है।