भुवनेश्वर
कोरापुट, ओड़िशा, के लोगों को जब लगा कि लगातार खेती परिवर्तन और ईंधन के लिए जंगलों में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है और उससे उनके जीवन और आजीविका दोनों पर बहुत ही हानिकारक प्रभाव पड़ रहा है, तो उन्हें केवल पौधारोपण में ही इसका समाधान नजर आया। यकीन नहीं होता पर आँखों के सामने की हकीकत है कि इस क्षेत्र के 72 आदिवासी बहुल गांवों के लोग लगभग तीन दशक से लगातार पौधारोपण अभियान चला रहे हैं और यह आज भी उसी जोश के साथ जारी है।
आज कोंध, गदाबा और परजा आदिवासी समुदायों के लोग पर्यावरण योद्धा बन गए हैं, जो हरिडा, बहड़ा, आंवला, जामू, करंजा सिसु और टेंटुली जैसे जंगली, फलदार और औषधीय पौधों के बीज और पौधे रोपने में जुटे हैं। ये आदिवासी लोग अपनी ग्राम सभाओं के नेतृत्व में आसपास के जंगलों में खोई हुई हरियाली को वनरोपण के जरिये पुनर्जीवित कर रहे हैं।
कहा जाता है कि सेमिलीगुडा और पोट्टांगी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले गांवों के पास खदरी, पिंडमाली, सुलियापबली और कसमकेंडा जैसे जंगलों में 1931 से हरियाली धीरे-धीरे गायब होने लगी थी। वर्ष 1960 के बाद तो जैसे प्रकृति को किसी की नजर ही लग गई, दूर-दूर तक हरियाली का नाम नहीं।
नतीजतन, आदिवासियों और यहां तक कि उनके दिसारियों (पुजारी और पारंपरिक चिकित्सक) को आसपास ईंधन की लकड़ी, वनोपज और औषधीय पौधे मिलने बंद हो गए। इसके लिए उन्हें दूर-दूर तक जाना पड़ता। रोजी-रोटी के लाले पड़ने लगे तो आदिवासी लोग काम की तलाश में अपना घर-बार छोड़ कमाने के लिए बाहर जाने लगे। हालात लगातार बिगड़ रहे थे और उपाय कुछ भी नहीं सूझ रहा था। आखिरकार, ऊहापोह में फंसी ‘ग्राम सभाओं’ ने 1989-90 में अपने दम पर कदम उठाया और पूरी शिद्दत से वनीकरण अभियान छेड़ दिया। हरियाली को कोई नष्ट न करे, इसके लिए उन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में सतर्कता नेटवर्क स्थापित किए और हरियाली को नुकसान पहुंचाने वालों के लिए दंड तय कर दिया।
पोट्टांगी ब्लॉक के चंपाकेंडा के ग्राम सभा अध्यक्ष गदाबा आदिवासी त्रिनाथ खिलो The Indian Tribal को बताते हैं, “अगर हमारे गांव में कोई भी व्यक्ति अपने आसपास के जंगलों जैसे गुडियाम गच्छ और सुलियापबली में पेड़ काटता पकड़ा जाए, तो उस पर ग्राम सभा की ओर से 500 रुपये का जुर्माना लगाया जाता है। यदि कोई बाहरी व्यक्ति ऐसा करता पाया गया, तो उस पर 1000 से 5000 रुपये तक का जुर्माना ठोंका जाता है। बाहरी व्यक्ति पर जुर्माना पेड़ के प्रकार, आकार और ऊंचाई के हिसाब से तय किया जाता है। यह अलग बात है कि 500 से 1000 रुपये तक धनराशि का भुगतान करने पर लोगों को पेड़ों की छंटाई कर ईंधन और झोंपड़ी बनाने के लिए लकड़ी और टहनियां एकत्र करने की अनुमति है।”
उन्होंने बताया कि पौधारोपण से इलाके में जंगली जानवरों और पक्षियों की संख्या भी बढ़ने लगी है। जानवरों के संरक्षण के उद्देश्य से ओडिया महीने चैत्र (मार्च-अप्रैल) के दौरान मनाए जाने वाले हमारे त्योहार ‘चैता परब’ के दौरान पशु बलि पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इससे जंगली जीवों की संख्या बढ़ाने में खासी मदद मिली है।
केडीगुडा जैसे कुछ गांवों में दो परिवार पास के जंगल कदलीजाला की निगरानी करते हैं। एक परिवार के 18 वर्ष या इससे अधिक उम्र के सभी पुरुष सदस्य जंगल की रखवाली में लगे हुए हैं। इसी तरह, बिलपुट गांव जैसे गांवों में भी खदरी जंगल की रखवाली के लिए चौकीदार तैनात किया गया है।
चंपाखेंडा ग्राम सभा ने भी पेड़ों की निगरानी के लिए वन रक्षक नौकरी पर रखा है। वन रक्षक को चंपाखेंडा के 55 घरों में से प्रत्येक परिवार पांच-पांच मन धान, बाजरा और सुआन के साथ-साथ 100 रुपये का दान देता है। साथ ही उन्हें 50 रुपये वार्षिक वेतन भी दिया जाता है।
बिलापुट गांव के अध्यक्ष परजा आदिवासी बुदु हंतल ने कहा, ‘हम वन चौकीदार को तनख्वाह के तौर पर दो मन (एक ओडिया मन 40 किलोग्राम) धान और मंडिया यानी बाजरा देते हैं। यदि सीजन आने से पहले यह अनाज कम पड़ जाता है, तो सभी ग्रामीण मिलकर साल के शेष महीनों में उसके घर का खर्च वहन करते हैं।’
यहां आदिवासी अपने घरों के पिछले हिस्से में उगाए गए पौधे या उनके बीज दान करते हैं। कभी-कभी वे वन विभाग से मुफ्त पौधे लाते हैं। कभी-कभी वे पौधारोपण अभियान को जारी रखने के लिए प्रति पौधा 1 रुपये का भुगतान भी करते हैं।
ग्रामीणों के इन्हीं प्रयासों की बदौलत जंगलों में पुन: पेड़ों की हरियाली दिखाई देने लगी है और आसपास के क्षेत्र को इसके फायदे भी नजर आने लगे हैं। त्रिनाथ दावा करते हुए कहते हैं, ‘यह वृक्षों की वजह ही है, हमारे पड़ोसी गांव सिपाईपुट के जंगल के पास पहाड़ी नदी पेडापकना में अब गर्मियों में भी पानी रहने लगा है, जबकि लगभग पांच साल पहले यह बिल्कुल सूख गई थी।’
वर्ष 1989-90 में शुरू हुआ पौधारोपण अभियान हाल के वर्षों तक बहुत सुस्त गति से चला, लेकिन जब कोरापुट स्थित गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी (एफईएस) वर्ष 2008-09 में इस अभियान से जुड़ा तो पौधे लगाने के काम ने रफ्तार पकड़ी। उस साल तक करीब 2000 एकड़ में पौधारोपण हो चुका था। दूसरी ओर, एफईएस का साथ मिलने के बाद अकेले सेमिलीगुडा ब्लॉक के 5 गांवों में 2011 के दौरान करीब 250 एकड़ में 50,000 पौधे लगाए गए।
एनजीओ ने गांव-गांव नर्सरी तैयार कराईं। इसके अलावा, कंद-मूल रोपण, मिट्टी की नमी संरक्षण, जहरीले पौधों का उन्मूलन जैसे कई जागरूकता अभियान चलाए। इस अभियान में सीएसआर (कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व) फंड से लगभग 2 करोड़ रुपये खर्च किए गए। इसी प्रकार पौधारोपण पर एक्सिस बैंक फाउंडेशन की ओर से भी लगभग 24 लाख रुपये खर्च हुए।
एफईएस के टीम लीडर प्रदीप मिश्रा बताते हैं, ‘वर्ष 2010-11 और 2023-24 के बीच संस्था के सहयोग से ग्रामीणों ने लगभग 2,500 एकड़ में 3,00,000 से अधिक पौधे लगाए हैं। इसके अलावा, हमारे स्वयंसेवकों की 24 टीमें आदिवासियों को पौधे लगाने के लिए प्रेरित करने के लिए गांव-गांव जाती हैं। संस्था ने पहले से अभियान से जुड़े 72 गांवों समेत 581 गांव चिह्नित किए हैं, जहां पौधारोपण पर जोर है और जहां उनकी टीमें लोगों के बीच जाकर पौधों का महत्व समझाती हैं।’
एफईएस द्वारा प्रशिक्षित ग्रामीण चींटी के टीले, गाय के गोबर, गोमूत्र, रेत और राख आदि को एक साथ मिलाकर पौधों के उगने के अनुकूल मिट्टी तैयार करते हैं। वे इस मिट्टी में बीज मिलाकर गेंद बना लेते हैं और फिर उन्हें निर्धारित क्षेत्रों में जाकर बो देते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह प्रक्रिया न केवल बीजों और अंकुरित पौधों को कीटों के हमले से बचाती है, बल्कि लगभग छह महीने तक पौधों की जड़ों में खाद की जरूरत को भी पूरा करती है।
बताया जाता है कि क्षेत्र के आदिवासियों ने वर्ष 2010-2011 और 2016-17 के बीच 10,000 नर्सरियों से 19 गांवों में लगभग 1,80,000 पौधे लगाए। हालांकि, नर्सरियों की संख्या बढ़ने से पैसे की समस्या खड़ी हो गई और उन्हें सीएसआर-फंड मिलने में देर होने लगी। इसका सीधा असर पौधारोपण अभियान पर पड़ा, क्योंकि अमूमन पौधे बरसात की पहली बारिश के साथ लगने शुरू होते हैं। इसलिए, समय से अभियान को चलाने के लिए एफईएस को निजी नर्सरियों से 28 रुपये से अधिक की लागत से पौधे खरीदने पड़े, जबकि अपनी नर्सरी में प्रति पौधा लगभग 12 रुपये खर्च आता है।
अच्छी बात यह रही कि हालात को देखते हुए कोरापुट वन विभाग ने 2020-21 में पौधरोपण अभियान में सहयोग करने के लिए कदम बढ़ाए और प्रत्येक गांव में मुफ्त 200 से अधिक पौधे उपलब्ध कराए। बताया जाता है कि अब तक विभाग ने 1000 एकड़ से अधिक क्षेत्र में वनरोपण करा दिया है।
सेमिलीगुड़ा वन रेंज के वनपाल सुकांत बिस्वाल ने बताया, “शुरुआत में विभाग ने सेमिलीगुड़ा ब्लॉक के तीन गांवों में प्रत्येक को नमूने के तौर पर 250 पौधे मुफ्त में दिए। इसके बाद 2020-21 में विभाग ने 2 रुपये प्रति पौधा शुल्क लिया। ग्रामीणों की लगन और वनों के प्रति उनके प्रेम को देखते हुए वन विभाग ने अब शुल्क घटाकर प्रति पौधा 1 रुपया कर दिया है।“
उन्होंने कहा, “वर्ष 2022-23 में विभाग ने सेमिलीगुड़ा ब्लॉक के तीन गांवों को करीब 12,000 पौधे उपलब्ध कराए थे।”
ग्रामीणों की लगन, समर्पण और सफलतापूर्वक पौधरोपण को देखते हुए राज्य सरकार ने वर्ष 2023 में चंपाकेंडा गांव को प्रकृति मित्र का पुरस्कार प्रदान किया। त्रिनाथ गर्व के साथ कहते हैं, ‘हमारे गांव को पुरस्कार के साथ-साथ 20,000 रुपये का नकद ईनाम भी मिला।’
पोट्टांगी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले कासुगुडा के ग्राम सभा अध्यक्ष परजा आदिवासी दामोदर हंतल ने कहा, “यदि सरकार और एजेंसियां सहयोग करें तो ग्रामीण बाघझोला, माजुझोला और किडाझोला जैसे अपने आसपास के जंगलों को पूरी तरह हरा-भरा बना सकते हैं।”