ईटानगर/गुवाहाटी
अरुणाचल प्रदेश की जनजातियों का प्रकृति के साथ सदियों पुराना जुड़ाव रहा है। उन्हें प्रकृति से कितना लगाव है, यह उनके अनुष्ठानों, लोकगीतों और स्वदेशी खेलों में स्पष्ट झलकता है, क्योंकि इनका हर काम और हर चीज प्रकृति पर ही केंद्रित होती है।
उदाहरण के लिए, अपातानी और गालो जनजातियां अक्सर खजाना खोजने का एक अनोखा और मनोरंजक खेल खेलती हैं। यह जानवरों की नकल करने वाले लोकप्रिय खेल होले तासो डुकनाराम की तरह ही होता है।
खजाना खोजने के इस जनजातीय खेल में तीन से छह खिलाड़ी शामिल होते हैं, जो दो किलोमीटर के दायरे में छिपी सात वस्तुओं को खोजते हैं। उदाहरण के लिए अपोंग की एक बोतल को किसी घने पत्तों वाली शाखा से बांधा जा सकता है या बांस की कोपलों के पैकेट को कहीं झाड़ी में छिपा दिया जाता है।
खेल शुरू होने से पहले खिलाडिय़ों को इन छिपी हुई वस्तुओं के गुप्त स्थानों के बारे में सुराग या संकेत दिए जाते हैं। बस, खिलाडिय़ों को ये संकेत समझने होते हैं और समय रहते वस्तु खोजकर लानी पड़ती है।
इस खेल की रोचकता और मुश्किल स्थिति यही है कि खिलाडिय़ों को किसी जानवर की हरकतों की नकल करते हुए उस छिपी हुई वस्तु तक पहुंचना होता है। खिलाड़ी को नकल करने के लिए सात तरह के जानवरों को चुनने की छूट मिलती है। हालांकि यह स्थिति पर निर्भर करता है कि कौन सा प्राणी छिपे हुए खजाने तक पहुंचने के लिए शारीरिक रूप से सबसे अच्छी तरह फिट बैठता है।
यह खेल एक घंटे का होता है। इस अवधि में जो खिलाड़ी अधिकतम वस्तुएं (खजाना) खोजने में सफल होता है, वही विजेता चुना जाता है। अब खोजे गए खजाने के साथ-साथ विजेता को एक इनाम भी मिलता है। इनाम के तौर पर कुछ खाद्य पदार्थ या हस्तनिर्मित आभूषण दिए जाते हैं।
इस खेल के बारे में आदिवासी जनजातियों का मानना है कि खजाने की यह खोज इस बात को दर्शाती है कि हम जानवरों से कितना कुछ सीख सकते हैं और सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व आदमी के लिए कितना आवश्यक हो सकता है।
खेल का संदेश
यह ऐसा जनजातीय खेल है जिसमें कई स्तर पर ज्ञान की परीक्षा होती है। चूंकि यह खेल गुप्त सुरागों या संकेतों को समझने के साथ शुरू होता है, इसलिए इस दौरान खिलाड़ी को हमेशा यह एहसास होता है कि जीवन में भी यदि कोई जटिल प्रतीत होने वाली चुनौतियों और स्थितियों में सामान्य ज्ञान और तर्क का इस्तेमाल करता है तो उसे इसका फायदा होता ही है।
अरुणाचल प्रदेश की अपातानी जनजाति से ताल्लुक रखने वाली याना नगोबा कहती हैं कि खजाना खोजने वाला खेल यह भी संदेश देता है कि हर चुनौती में कोई अवसर छुपा होता है। इसलिए चुनौती से भागना नहीं चाहिए। कहने की जरूरत नहीं कि होल तासो डुकनाराम खेल तथ्यों को सुसंगत तरीके से मिलाने, चीजों को खोजने के कौशल और यहां तक कि लीक से हटकर रचनात्मक सोचने की क्षमता को बढ़ाता है।
हालांकि, याना यह भी दुख व्यक्त करती हैं कि स्वदेशी या जनजातीय खेल अब अतीत की बात बनते जा रहे हैं, क्योंकि सरकार इन खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए गंभीर नहीं दिखती है। कभी भी इन खेलों के आयोजन का प्रयास नहीं किया गया। उनका सुझाव है कि इन खेलों को बढ़ावा देने के लिए राज्य या जिला स्तर पर इनके आयोजन होने चाहिए, ताकि नई पीढ़ी को इनके बारे में पता चले और नई-नई प्रतिभाएं सामने आएं।