कुर्सियांग (पश्चिम बंगाल)
अपने चाहने वालों के बीच ज़ेरोन नाम से विख्यात ज़ेरौएंग्मित लेप्चा सिक्किम की बहुत ही होनहार आदिवासी कलाकार हैं। उनकी गायिकी झूमने को मजबूर कर देती है। उनकी प्रस्तुति को देखकर कोई भी अंदाजा नहीं लगा सकता कि उन्होंने कभी संगीत की औपचारिक शिक्षा नहीं ली है। वह स्वयं अपनी गायन की इस प्राकृतिक कला को ईश्वर का उपहार मानती हैं।
संगीतकारों के परिवार से होने के कारण संगीत उनकी परवरिश का अभिन्न हिस्सा रहा है। उन्हें वह पहला लेप्चा गीत ‘सुमी रे…’ आज भी याद है, जो उन्होंने अपनी चाची से तब सुना था जब वह केवल तीन या चार साल की रही होंगी। युवा ज़ेरोन गीत सुन इतनी मंत्रमुग्ध हो गई थीं कि उन्होंने गाना सीखने की ठान ली। इसके बाद उन्होंने स्कूल प्रतियोगिताओं में गाना शुरू किया। यहां पुरस्कार जीते तो हौसला बढ़ता गया। हाई स्कूल तक आते-आते उन्होंने अपना मेटल बैंड बना लिया था।
पिछले दिनों जब वो दिल्ली के दौरे पर थी, तब दूरभाष पर ज़ेरोन ने The Indian Tribal को बताया कि गन्स एंड रोज़ेज़ तथा क्रैडल ऑफ फिल्थ जैसे अंग्रेजी मेटल और रॉक कलाकारों ने उन्हें गायक बनने के उनके सपनों को पंख लगाए और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। ज़ेरोन की पढ़ाई-लिखाई बेंगलुरु में पूरी हुई। वहां उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग और इंटीरियर डिजाइन में कोर्स किए और आज वह एक पेशेवर इंटीरियर डिजाइनर हैं, लेकिन ऐसी पेशेवराना व्यस्तता भी उन्हें संगीत से दूर नहीं कर सकी।
उन्होंने मुख्य रूप से द मोस्टार डाइविंग क्लब के गायक और गीतकार डेमियन काटखुदा से प्रेरणा लेते हुए स्वयं गाने लिखने शुरू किए और फिर उन्हें अपनी आवाज में गाया। वह चाहती हैं कि उनके गीत व्यापक दर्शक वर्ग तक पहुंचें और भाषा इसमें कोई बाधा न बने। उन्होंने भाषाई बंधनों को काफी हद तक तोड़ दिया है। आज यह होनहार गीतकार तीन भाषाओं अंग्रेजी, नेपाली और रोंग में गीत लिखती और अपनी प्रस्तुति देती हैं। दुनिया भर के लोगों ने उनकी लेप्चा धुनें सुनी हैं।
साथी लेप्चा कलाकार सुनोम लेप्चा के साथ गाए गए उनके लावो ज़ोंग नामक युगल गीत ने इंस्टाग्राम पर धूम मचा दी। सोशल मीडिया पर यह गीत बहुत ही लोकप्रिय हुआ। विभिन्न भाषा एवं समुदायों के लोग इस गीत की ओर आकर्षित हुए। इस गीत के बाद ज़ेरोन लेप्चा समुदाय में जाना-पहचाना नाम हो गया। गीत की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस वीडियो को उनके यूट्यूब चैनल पर 52,000 बार और आधिकारिक पेज पर 72,000 बार देखा जा चुका है।
ज़ेरोन बताती हैं, ‘मेरे गाने अमेरिका, अफ्रीका समेत कई अन्य देशों में सुने जा रहे हैं। इससे मेरा बहुत उत्साह बढ़ता है। यह देखकर अच्छा महसूस हो रहा है कि विश्व भर में लेप्चा गीतों की धुनें सुनी जा रही हैं। उम्मीद है अफ्रीकी संगीतकारों की तरह एक दिन हम भी दुनिया भर के आदिवासी कलाकारों के साथ मिलकर गा सकेंगे। मुझे उनका ड्रम संगीत बहुत पसंद है।’
उभरते नए-नए कलाकारों को देख कर उम्मीद बंधती है कि अब समकालीन शैलियों में लोक धुनें फिर धूम मचाएंगी और लोकगीत व्यापक दर्शक वर्ग तक पहुंचेंगे, क्योंकि ज़ेरोन जैसे कलाकारों की खासियत यह है कि वे अपने लोक संगीत को उन शैलियों में ही सहजता से प्रस्तुत करते हैं जिनमें उन्हें आनंद मिलता है। उनकी राय में भारतीय संगीत प्रेमी अब अन्य भाषाओं के गीतों को खूब आनंद के साथ सुनते हैं, इसका प्रमुख कारण है कि के-पॉप ने भाषाई बंधन तोड़ दिए हैं।
वह मानती हैं कि युवा संगीत प्रेमी मुझे लेप्चा गायिका के रूप में आगे बढ़ते देखना चाहते हैं। इससे उन पर बेहतर से बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव रहता है। इसलिए सोशल मीडिया पर कुछ साझा करते समय वह बहुत सावधानी बरतती हैं। वह इस साल अंग्रेजी, रोंग और नेपाली भाषाओं में गानों से सजी एक ईपी (एक्सटेंडेड प्ले) जारी करेगी। इस खबर से उनके प्रशंसक बहुत खुश होंगे।
ज़ेरोन जैसे कलाकारों द्वारा संरक्षित लेप्चा संगीत की विरासत गायकों की अगली पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी। आज उनके जैसे कलाकार भी अपने पूर्वजों की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। एक आदिवासी कलाकार होने के नाते ज़ेरोन को लगता है कि लोगों के दिलों में जगह बनाने के लिए किसी भी कलाकार का अपने काम के प्रति ईमानदार होना बहुत जरूरी है। साथ ही उसके काम में एक भरोसा और परिपक्वता झलकनी चाहिए। वह कहती हैं, ‘लोग ईमानदारी को पसंद करते हैं और सच पूछिए, ईमानदारी ही कला है।