रांची
ऐसा बहुत कम होता है कि आप झारखंड के सुदूर क्षेत्रों में जाएं और स्पोर्टवियर में युवा लडक़े और लड़कियों को पूरे अनुशासन के साथ पेशेवर तरीके से प्रशिक्षण लेता देखें। लेकिन, पिछले कुछ महीनों से राज्य के दो जिलों के कई ब्लॉकों में ऐसे नजारे आम हो गए हैं। राज्य के इन हिस्सों में शांत भाव से एक आंदोलन आकार ले रहा है। यहां आपको हर जगह युवा अपने पेशेवर प्रशिक्षकों की निगरानी में पूरी गंभीरता और तल्लीनता से कड़ा प्रशिक्षण लेते हुए दिख जाएंगे।
एनजीओ आशा के ‘प्रोजेक्ट फुटबॉल’ के तहत रांची और रामगढ़ जिलों के विभिन्न ब्लॉकों में ट्रायल में भाग लेने आए सैकड़ों लोगों में से चुने गए 100 फुटबॉल खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस प्रोग्राम को देश की दिग्गज कोयला कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की सहायक कंपनी सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) द्वारा प्रायोजित किया जा रहा है। यह कार्यक्रम कंपनी का कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) का हिस्सा है। यह परियोजना झारखंड में खेल संस्कृति विकसित करने की दिशा में मजबूत कदम माना जा रहा है। इस परियोजना को सीआईएल सीएमडी पीएम प्रसाद ने पहली बार उस समय स्वयं पहल कर शुरू कराया था जब वह सीसीएल के सीएमडी थे।
सीसीएल के पूर्व महाप्रबंधक, सीएसआर, लाडी बालकृष्ण, ने The Indian Tribal को बताया, ‘एक साल का प्रोजेक्ट पिछले साल नवंबर में शुरू हुआ था। इसे रांची और रामगढ़ में लागू किया गया। दोनों ही जिले सीसीएल के कमांड क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। इसमें 10 से 18 वर्ष के आयु वर्ग के 50 लडक़ों और 50 लड़कियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यहां बेहतर से बेहतर तरीके से इन बच्चों के कौशल को निखारने का प्रयास किया जा रहा है।’ इसी साल 31 जनवरी को सेवानिवृत्त हुए बालकृष्ण के कार्यकाल में ही इस परियोजना को मंजूरी दी गई थी।
एसोसिएशन फॉर सोशल एंड ह्यूमन अवेयरनेस (आशा) के सचिव अजय जयसवाल बताते हैं कि प्रशिक्षण के लिए चयनित खिलाड़ियों में खेल के प्रति जबरदस्त जुनून देखने को मिल रहा है। वे इस खेल के माध्यम से अपना, अपने परिवार, राज्य और देश का नाम रोशन करने का सपना लेकर आगे बढ़ रहे हैं।
कांके के नगड़ी जत्रा मैदान में 16 वर्षीय रोहन मुंडा और रोहिणी कुजूर भी फुटबॉल का प्रशिक्षण ले रहे हैं। जयसवाल ने The Indian Tribal को बताया कि रोहन में पागलपन की हद तक फुटबॉल का जुनून भरा है। जयसवाल की बातों पर युवा रोहन मंद-मंद मुस्कराते हैं। वह अपने ख्वाब के बारे में खुलकर बोलते हैं, ‘मैं फुटबॉल का बेहतरीन खिलाड़ी बन कर अपने राज्य और देश का नाम रोशन करना चाहता हूं।’ इतना कहकर वह आगे बढ़ जाते हैं।
किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाली 11वीं की छात्रा रोहिणी पढ़ाई भी करना चाहती है और प्रशिक्षण भी छोड़ना नहीं चाहती। वह चार बहन-भाई हैं। रोहिणी कहती हैं, ‘मैं एक अच्छी डिफेंडर बनना चाहती हूं। मैं रोजाना अपने स्कूल से घर जाती हूं और घर का सारा काम निपटाने के बाद फुटबॉल का प्रशिक्षण लेने ग्राउंड पर आती हूं।’
दस साल की निधि टोप्पो अर्जेंटीना के महान फुटबॉल खिलाड़ी लियोनेल मेसी को अपना आदर्श मानती हैं। निधि भी सामान्य घर-परिवार की बच्ची है। घर में एकमात्र कमाने वाले उनके पिता की मृत्यु हो चुकी है। बच्चों के लालन-पालन के लिए उनकी मां अब खेतों में काम करती हैं। परिवार के समक्ष खड़ी चुनौतियों और कठिनाई को धता बताते हुए वह कहती हैं, ‘मैं मेसी जैसी स्ट्राइकर बनना चाहती हूं। मुझे गोल करना बहुत अच्छा लगता है।’
जयसवाल कहते हैं, ‘इस परियोजना का उद्देश्य फुटबॉल के 600 खिलाड़ी तैयार करना है। पहले चरण में 100 युवाओं को एक साल का प्रशिक्षण देकर कुशल बनाना है। इसके बाद ये युवा ही संभावित 600 अन्य फुटबॉल खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करेंगे।’
भारतीय खेल प्राधिकरण (एसएआई) केंद्रों में नामांकन करने या पेशेवर क्लबों में उनके प्लेसमेंट की सुविधा प्रदान करने के लिए परियोजना के तहत स्कूल-कॉलेजों के अलावा रांची और रामगढ़ के ब्लॉकों में जागरूकता, कोचिंग क्लीनिक और शिविर आयोजित किए जाएंगे।
जयसवाल बताते हैं कि सीसीएल प्रायोजित इस परियोजना में स्पोर्टवियर, स्पोर्टगियर, प्रशिक्षण उपकरण, प्रशिक्षुओं और यहां तक कि परीक्षण के लिए आने वाले लोगों के लिए जलपान, परिवहन, कोचिंग, कंडीशनिंग जैसी तमाम छोटी-मोटी जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। यही नहीं, प्रशिक्षुओं में आपसी संबंध मजबूत करने के लिए समूह लंच या डिनर, फिल्म या जादू शो, समाचार पत्र और पत्रिकाएं वगैरह मनोरंजक गतिविधियां कराई जाती हैं।
इस परियोजना का उद्देश्य प्रशिक्षुओं और लाभार्थियों के सामाजिक-आर्थिक कल्याण में योगदान देना भी है। जयसवाल जोर देकर कहते हैं कि प्रशिक्षण के दौरान युवाओं के कौशल और ज्ञान में वृद्धि कर उनकी रोजगार क्षमता और आय-सृजन क्षमता को बढ़ाने का प्रयास भी किया जाता है, ताकि उन्हें अपने भविष्य की चिंता न सताए।
वह कहते हैं, ‘इस परियोजना के बेहतर से बेहतर परिणाम हासिल करने के लिए कम से कम दो साल के निरंतर अभियान की आवश्यकता है।’