भुवनेश्वर
ओडिशा में मयूरभंज के जिला मुख्यालय बारीपदा में रहने वाले संथाल जनजाति के 36 वर्षीय छोकेंद्र हेम्ब्रम ने एक बार तो जिंदगी की उलझनों में फंस कर कला से अपना रिश्ता तोड़ लिया, लेकिन कला से दूर होने के दुख ने उन्हें और भी बेचैन कर दिया। आखिरकार, दोबारा कला के प्रति अपने प्रेम को परवान चढ़ाने के लिए वह ऊहापोह के झंझावातों से बाहर आए और हिम्मत जुटा कर ब्रश थाम लिया। नतीजा सबके सामने है। आज उनके पास अनगिनत पुरस्कार हैं और प्रसिद्धि से सुख की अनुभूति कर रहे हैं।
मयूरभंज जिले के पूर्णापानी गांव के रानीसाही में गरीब मजदूर दंपत्ति के घर जन्मे छोकेंद्र का आठ वर्ष की उम्र से ही कला की तरफ रुझान बढ़ गया था। महाभारत जैसे महाकाव्यों से प्रेरित छोकेंद्र ने अपने अंदर के बाल कलाकार को निखारने के लिए पहले-पहल अर्जुन और कृष्ण जैसे पात्रों को कागज पर उकेरना शुरू किया। वह जितने अधिक चित्र बनाते गए, कला के साथ उनका रिश्ता उतना ही मजबूत होता गया।
वह स्कूल जाने से पहले और फिर स्कूल से आने के बाद हर समय चित्रकारी करने में ही खोए रहते। कागज और पेंसिल के साथ घंटों गुजार देते। यह देख उनके माता-पिता भी चिंतित रहते कि उनका बेटा पढ़ाई के साथ-साथ जीवन में भी कहीं फिसड्डी ही न रह जाए। इस डर से माता-पिता ने उन्हें चित्रकारी करने से रोक दिया और पढ़ाई में मन लगाने को कहा। फिर भी उन्होंने पेंटिंग का साथ नहीं छोड़ा और संघर्ष जारी रखा। चोरी-छिपे वह अपने हुनर को जीते रहे।
![Life with mask: Art by Chhokendra Hembrom | The Indian Tribal](https://theindiantribal.com/wp-content/uploads/2024/02/life-with-mask-art-by-chhokendra-hembrom-1-801x1024.webp)
संथाल कलाकार ने The Indian Tribal के साथ बातचीत में अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, ‘जब भी मेरे पास पॉकेट मनी होती, मैं उसे खर्च करने के बजाय संभाल कर रख लेता और मौका मिलते ही उससे रंग खरीद लाता। मैंने अपनी रचनाओं में समकालीन लाइट और शेड्स भरने सीख लिए थे।’
हालांकि, उनके इस पहले प्रेम के खिलाफ परिवार की नाराजगी इतनी बढ़ गई कि उन्हें ब्रश और रंगों का साथ छोडऩा पड़ा। वह अपने रास्ते से भटक गए और अपनी रचनात्मकता को सीमित कर दिया। यह अलग बात है कि अपने अंदर के कलाकार की आवाज के उन मूक अक्षरों को ज्यादा समय तक दबाकर नहीं रख सके, जो लगातार उनकी अंतरात्मा को मथ रहे थे।
छोकेंद्र ने 2002 में पड़ोसी राज्य झारखंड के गितिलता स्थित गितिलता हाई स्कूल से मैट्रिक पास किया। उन्होंने 2006 में टाटा स्टील फैमिली इनिशिएटिव फाउंडेशन में एक निगरानी और पर्यवेक्षण अधिकारी के रूप में जमशेदपुर में कार्य शुरू किया, लेकिन अंदर का खालीपन उन्हें लगातार परेशान करता रहा और उन्हें वर्षों पहले छोड़ दिए गए ब्रश और रंगों को हाथ में लेकर दोबारा चित्रकारी शुरू करने के लिए उकसाता रहा।
आखिरकार उन्होंने अपनी जमी-जमायी नौकरी छोड़ दी और घर लौट आए। वह अभी भी एक चित्रकार के पुनर्जन्म की पीड़ा से दो-चार हो रहे थे। उनके जीवन ने 2008 में उस समय करवट ली जब वह सरो टुडू के साथ जा रहे थे और जिन्होंने महसूस किया कि हेम्ब्रोम की प्रतिभा धीरे-धीरे खत्म हो रही है। उनके अंदर का कलाकार चुपचाप मर रहा है। बारीपदा में पंचायत राज विभाग के जूनियर इंजीनियर सरो कहते हैं, ‘मैंने उन्हें दोबारा अपनी कला को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित किया।’
![Artist Chhokendra Hembrom - The Indian Tribal](https://theindiantribal.com/wp-content/uploads/2024/02/chhokendra-hembrom-the-indian-tribal.webp)
छोकेंद्र ने इसके बाद अपनी पढ़ाई पुन: आरंभ कर दी और 2015 में झारखंड के सर जेजे गांधी एम इंटर कॉलेज से इंटरमीडिएट पास किया। उन्होंने 2016 में क्रिएटिव स्कूल ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट्स की ओर से बारीपदा में आयोजित 7वीं राज्य स्तरीय प्रदर्शनी में भाग लिया, लेकिन यहां उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। फिर भी वह जिद पर अड़े रहे। उन्होंने 2021 में बालासोर आर्ट एंड क्राफ्ट्स कॉलेज से विजुअल आर्ट में पोस्ट-ग्रेजुएशन पूरा किया। अंतत: 2017 में अलुमनी कलाक्षेत्र की ओर से आयोजित 8वीं जिला-स्तरीय पेंटिंग प्रतियोगिता में इस संथाल कलाकार ने खूब प्रशंसा बटोरी।
उन्हें रास्ता मिल चुका था। उन्होंने अपने हुनर की गाड़ी को टॉप गियर में डाल दिया। दिल्ली, ओडिशा और हरियाणा जैसी जगहों पर ऑनलाइन और ऑफलाइन प्रतियोगिताओं में अनेक पुरस्कार जीते और खूब सराहना समेटी। उन्हें ओडिशा ललित कला अकादमी से नकद पुरस्कार, हरियाणा में ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय कला प्रतियोगिता में रजत पुरस्कार, बालासोर में वार्षिक कला प्रतियोगिता में विभूति कानूनगो मेमोरियल पुरस्कार समेत दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण पदक-बीएएफ कला रतन और उत्कृष्टता पुरस्कार जैसे तमाम सम्मान हासिल हुए।
अब तक 85 प्रतियोगिताओं में अपने हुनर का उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बेहद विनम्र स्वभाव के संथाल कलाकार छोकेंद्र कहते हैं, ‘मैं अभी भी नौसिखिया हूं और बहुत ऊंची उड़ान भरने का सपना देखता हूं। मुझे पक्का यकीन है कि एक दिन मैं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कला क्षेत्र में नई ऊंचाइयां छूऊंगा।’ सरो कहते हैं, ‘हां, वह एक दिन अंतरराष्ट्रीय कला मानचित्र पर अपनी खास जगह बना लेंगे, क्योंकि उनमें आत्मविश्वास दोबारा लौट आया है।’