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Home » द इंडियन ट्राइबल / हिंदी » विविध » सुरक्षित महावारी के लिए अनूठा मिशन

सुरक्षित महावारी के लिए अनूठा मिशन

मासिक धर्म के दौरान ग्रामीण महिलाओं को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से 26 वर्षीय कोंध युवक अपनी पंचायत में सैनिटरी पैड के उपयोग का महत्व समझाने के मिशन पर निकला है। निरोज रंजन मिश्रा बता रहे हैं उसकी कहानी

December 25, 2023
Sanitary Napkins

बीनू एक आंगनवाड़ी सेविका की मदद से एक माँ को सैनिटरी नैपकिन के फायदे समझाता हुआ

भुवनेश्वर

तमिलनाडु के कोयंबटूर के रहने वाले मुरुगनाथम अरुणाचलम ने इसे अपना मिशन बना लिया कि प्रत्येक भारतीय महिला मासिक धर्म के दौरान सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करे और सुरक्षित रहे। फिल्म ‘पैडमैन’ में सुपरस्टार अक्षय कुमार ने यह किरदार निभाकर सुनिश्चित करने का प्रयास किया कि उनकी कहानी पूरे भारत में करोड़ों घरों तक पहुंचे और महिलाएं असुरक्षित महावारी से बचें।

ठीक इसी प्रकार ओडिशा के रायगड़ा की बड़ाकुटुली पंचायत में 26 वर्षीय कोंध आदिवासी बीनू मिनियाका सैनिटरी नैपकिन के इस्तेमाल के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। अरुणाचलम की तरह बीनू भी अपनी पंचायत में मासिक धर्म के दौरान ग्रामीण महिलाओं द्वारा गंदे कपड़ों के इस्तेमाल से परेशान हो गए और अब नहीं चाहते कि कोई महिला बुरी स्थिति से गुजरे।

शुरुआती दिक्कतों और अड़चनों के बाद बीनू मासिक धर्म के बारे में जानकारी देने में संकोच करने वाली लड़कियों के साथ अब खुलकर बात करते हैं और उन्हें सैनिटरी नैपकिन के साथ स्वस्थ रहने के लिए प्रेरित करते हैं। यूनिसेफ के संपुना बार्टा प्रोजेक्ट (एसबीपी) के तहत और तमाम जानकारियों वाली किट के साथ बीनू महिलाओं से गंदे कपड़ों के दुष्प्रभावों के बारे में स्पष्ट रूप से बात करते हैं। गांव में अमूमन लड़कियां युवावस्था में आते ही शुरू होने वाले पीरियड्स के दौरान पारंपरिक रूप से कपड़े का ही उपयोग करती हैं।

उनकी उत्साहपूर्ण बातचीत से प्रेरित होकर पंचायत के अंतर्गत आने वाले 11 गांवों की किशोरियों ने हिचकिचाहट को परे फेंकते हुए सैनिटरी पैड के उपयोग के बारे में अधिक जानकारी लेने में रुचि दिखाई। यही नहीं, इन प्रयासों से समाज की वर्जनाओं को तोड़ते हुए वे पारंपरिक सख्त पैटर्न से बाहर निकल आई हैं यानी अब वे कपड़े के बजाय सैनिटरी पैड इस्तेमाल करती हैं।

बड़ाकुटुली गांव की 19 वर्षीय कोंध आदिवासी लडक़ी सिरोमनी माझी The Indian Tribal को बताती हैं कि अब उन्हें अपने मासिक धर्म के बारे में बात करने में कोई झिझक महसूस नहीं होती। वह अब अपने मासिक धर्म के दौरान सैनिटरी पैड का ही उपयोग करती हैं।

रायगड़ा में एसबीपी परियोजना समन्वयक कबीराज कहते हैं कि बीनू ने लोगों के साथ संबंध जोडऩे की कला सीख ली है। इसी से तो उन्होंने पिछले पंचायत चुनाव के दौरान वार्ड (नंबर 2) सदस्य की सीट जीत ली।

बीनू के लिए यहां तक का सफर इतना आसान भी नहीं रहा। लड़कियों को रूढि़वादी दायरे से बाहर निकालने के लिए उन्हें बहुत अधिक मेहनत करनी पड़ी। बहुत कुछ सहना पड़ा। 2019 में एसबीपी की शुरुआत हुई, तो बीनू को अहसास हो गया कि जब कोई पुरुष मासिक धर्म चक्र के विषय पर बात करता है तो किशोरवय लड़कियां शरमा जाती हैं। इसलिए, उन्होंने इसका तोड़ निकाला और किशोरियों से बात करने के लिए आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के महिला समूह के साथ मिलकर काम किया, ताकि लड़कियों को शर्मिंदगी से बाहर निकालकर उनमें खुलकर बात करने लायक आत्मविश्वास भरा जा सके।

Sanitary Napkin
मासिक धर्म के प्रति स्वच्छता रखने और भ्रांतियां मिटाने के लिए प्रतिवर्ष 28 मई को विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जाता है

बीनू ने The Indian Tribal  के साथ बातचीत में बताया कि आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने उनकी बहुत मदद की। वर्ष 2020 में रायगड़ा जिला मुख्यालय में इन कार्यकर्ताओं के साथ लिए गए प्रशिक्षण ने न केवल उन्हें एसबीपी की कार्यप्रणाली के बारे में चीजें सीखने को मिलीं, बल्कि यह भी पता चल गया कि एकजुट प्रयास से ही अधिक लाभ कैसे हासिल किया जा सकता है।

बीनू और लड़कियों के बीच अब गहरा रिश्ता है। जो युवा लड़कियां पहले उनके साथ बात करने को तैयार नहीं होती थीं, उनका नजरिया अब बदल गया है। जब बीनू गांवों में स्थित आंगनबाड़ी केंद्रों में बैठक के दौरान मासिक धर्म और सैनिटरी नैपकिन पर चर्चा करते हैं तो वे उन्हें ध्यान से सुनती हैं। यही नहीं, वे बीनू को मासिक धर्म चक्र से संबंधित अपनी समस्याओं के बारे में बताती हैं और बीनू भी उन्हें पूरी गंभीरता से सुनते हैं।

यूनिसेफ के संचार सलाहकार संतोष बेहरा कहते हैं कि हालांकि बीनू बाहरी लोगों के समक्ष बातचीत करने में थोड़ा हिचकिचाते हैं, लेकिन वह गांव के लोगों के सामने एक आदर्श नेता की तरह बात करते हैं।

गांव कुटुली की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हारा मदांगी कहती हैं कि पहले मासिक धर्म के दौरान लड़कियां खुद को एक कमरे में सीमित रखती थीं और अपने परिवार के सदस्यों के सामने भी नहीं आती थीं। यहां तक कि उन्हें अलग खाना परोसा जाता था। अंधविश्वास से भरी यह प्रथा लगभग एक सप्ताह चलती थी, लेकिन अब यह वर्जना टूट चुकी है। वे अंधविश्वास से बाहर निकल आई हैं। जो लड़कियां मासिक धर्म के दौरान गंदे कपड़े का इस्तेमाल करती थीं, वे अब निजी खरीदकर या सरकार के खुशी कार्यक्रम के तहत वितरित किए जाने वाले सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं। एसबीपी के तहत परिवर्तन की यह प्रक्रिया तेज हो गई है और बीनू ने इसमें प्रमुख प्रेरक की भूमिका निभाई है।

रायगड़ा कॉलेज की प्लस-1 की छात्रा संगीता मदांगी बीनू का आभार जताते नहीं थकती हैं, जिन्होंने उनके दिमाग से अंधविश्वास के सभी जाले हटाने में मदद की है। वह कहती हैं कि अब मैं मासिक धर्म के दौरान एक कमरे में कैद नहीं रहती। न ही अब कभी सैनिटरी पैड के रूप में गंदे कपड़े का उपयोग करती हूं। यह सब केवल बीनू के कारण ही संभव हो पाया है।

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Update

PM highlights honey extraction process of Khiamni-Yangan tribe

Prime Minister Narendra Modi in his monthly radio broadcast, Mann Ki Baat, on Sunday spoke about how India is setting new records in honey production. Eleven years ago, he said, honey production in the country was 76,000 metric tons, which has now increased to more than 1.5 lakh metric tons. Honey exports have also risen more than three-fold. He highlighted the cliff-honey hunting in Nagaland. He said the Khiamni-Yangan tribe in Choklangan village of Nagaland has been engaged in honey extraction for centuries. There, bees build their dwellings not on trees but on high cliffs. Therefore, the task of honey extraction is also very risky. That’s why, the people there first speak to the bees politely, and seek their permission, he said adding they tell them that they have come to collect honey, after which they extract the honey. In the hilly areas of Jammu and Kashmir, honeybees produce a unique honey from wild basil, also known as sulai. This honey, white in colour, is called Ramban Sulai honey. A few years ago, Ramban Sulai honey received the GI tag, the PM pointed out.
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The Indian Tribal is India’s first bilingual (English & Hindi) digital journalistic venture dedicated exclusively to the Scheduled Tribes. The ambitious, game-changer initiative is brought to you by Madtri Ventures Pvt Ltd (www.madtri.com). From the North East to Gujarat, from Kerala to Jammu and Kashmir — our seasoned journalists bring to the fore life stories from the backyards of the tribal, indigenous communities comprising 10.45 crore members and constituting 8.6 percent of India’s population as per Census 2011. Unsung Adivasi achievers, their lip-smacking cuisines, ancient medicinal systems, centuries-old unique games and sports, ageless arts and crafts, timeless music and traditional musical instruments, we cover the Scheduled Tribes community like never-before, of course, without losing sight of the ailments, shortcomings and negatives like domestic abuse, alcoholism and malnourishment among others plaguing them. Know the unknown, lesser-known tribal life as we bring reader-engaging stories of Adivasis of India.

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