भुवनेश्वर
ओडिशा के कोरापुट के बिलागुड़ा गांव में रहने वाली गदाबा आदिवासी 32 वर्षीय बासुमती अक्टूबर की नरम-नरम सुबह सारा काम छोड़ पास के जंगल में भागती हुई जाती हैं और जल्दी-जल्दी लाल रंग के छोटे जंगली गिरी (इंडिगो) के फूल एकत्र करके लाती हैं। वह इन फूलों की पंखुडिय़ां तोडक़र अच्छी तरह धोती हैं और दाल के साथ पका लेती हैं। चावल और दाल-गिरी का बेहद स्वादिष्ट मिश्रण खाकर उनके पति अपने धान के खेत पर काम करने चले जते हैं और दोनों बच्चे पास के सरकारी प्राथमिक स्कूल में पढऩे भाग जाते हैं।
बासुमती ने The Indian Tribal को बताया कि मेरे पति, बेटी और बेटा तीनों ही सुबह के भोजन में दाल और गिरी का मिश्रण बड़े चाव से खाते हैं। गिरी के फूल पास के जंगल में आसानी से मिल भी जाते हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि सुबह-सुबह यह सोचने के झंझट से बच जाती हूं कि आज क्या पकाना है।
कोरापुट जिले के कुंडरा ब्लॉक में स्थित नौगुड़ा गांव की भूमिया आदिवासी महिला रायमती घियारिया (31) कहती हैं कि भूमिया सहित कुछ आदिवासी लोग इस गिरी को तलकर चावल के भुने हुए आटे में मिलाते हैं। फिर इसमें पानी और गुड़ मिलाकर शानदार नाश्ता तैयार करते हैं। वह बताती हैं कि आदिवासी कई अन्य तरह के जंगली फूल तोड़ते हैं और उनकी पत्तियां खाने में इस्तेमाल करते हैं।
खाने में जंगली फूलों का इस्तेमाल करने वाली बासुमती अकेली महिला नहीं हैं। कोरापुट जिले में परजा, गदाबा, कोंध और दुरुआ जनजातियों के लोग अपने भोजन में लगभग 122 तरह के जंगली पौधों, जड़ों, फलों और फूलों का इस्तेमाल करते हैं।
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कोरापुट के सुनाबेडा शहर में स्थित ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूओ) के अध्ययन से सामने आया है कि आठ से अधिक जंगली फूल तो आदिवासियों के खान-पान में प्रमुखता से शामिल रहते हैं। हालांकि, उनमें से पांच- गिरी (इंडिगो), धातकी (फायर फ्लेम बुश) कंचना (माउंटेन एबोनी), मुक्तदेई (ग्लिरीसिडिया) और अगस्थी (वेस्ट इंडियन मटर) बहुत अधिक पसंद की जाती हैं।
गिरी के फूल जहां सितंबर और अक्टूबर के बीच खिलते हैं, वहीं धातकी नवंबर और अप्रैल के बीच खिलती है। दूसरी ओर, कंचना फरवरी और मार्च तो मुक्तदेई के फूल फरवरी से अप्रैल तक आते हैं। हां, अगस्थी खिलने का समय दिसंबर से जनवरी तक रहता है।
सीयूओ के जैव विविधता और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. देबब्रत पांडा और उनकी टीम ने पिछले साल पांच पसंदीदा जंगली फूलों पर उनके औषधीय गुणों और पौष्टिक क्षमता का पता लगाने के लिए शोध किया था।
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डॉ. पांडा ने The Indian Tribal को बताया कि उनकी टीम ने पोषक तत्वों, विटामिन और खनिजों की सामग्री की जांच करने के लिए अमेरिकन केमिकल एसोसिएशन द्वारा निर्धारित 10 मापदंडों का सहारा लिया। इस अध्ययन में जंगल फूला (जंगली फूलों) की सभी पांच किस्मों में ये सभी तत्व प्रचुर मात्रा में पाए गए।
शोध में इन जंगली फूलों में विटामिन सी, विटामिन ई, फिनोल, प्रोटीन, फ्लेवोनोइड, फाइबर, वसा और कार्बोहाइड्रेट सहित कई खनिज प्रचुर मात्रा में पाए गए, जो आदिवासियों को हर समय स्वस्थ और फिट रखते हैं। पांच जंगली फूलों में ऊर्जा की मात्रा 49.49 प्रतिशत और 80.64 प्रतिशत (प्रति 100 ग्राम) के बीच होती है। डॉ. पांडा के अनुसार अगस्ती फूल (वेस्ट इंडियन मटर) में ऊर्जा की मात्रा सबसे अधिक पायी जाती है।
जेयपोर, कोरापुट में एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन के टैक्सोनोमिस्ट डॉ. कार्तिक लेंका ने कहा कि ज्यादातर जंगली फूल एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं, जो कैंसर और हृदय रोग से बचाने में मदद करते हैं। हालांकि, उनके विस्तृत विश्लेषण के लिए अभी गहन अध्ययन की जरूरत है।
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वैज्ञानिक जहां इन जंगली फूलों में औषधीय गुणों की संभावित उपस्थिति के गहन विश्लेषण के लिए और अधिक शोध की बात कहते हैं, वहीं आदिवासियों के पारंपरिक चिकित्सक, जिन्हें डिसारिस कहा जाता है, अपने रोगियों के लिए मुख्य हर्बल दवाओं के साथ-साथ इन जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल भी करते हंै।
कोरापुट के सेमिलिगिडा ब्लॉक के अंतर्गत तेंतुलीगुडा गांव में गुप्तेश्वर चिकित्सा और पारंपरिक प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र के निदेशक दिसारी हरि पांगी कहते हैं कि तपेदिक या हड्डी की कमजोरी से पीडि़त मरीजों को हम अन्य संबंधित दवाओं के साथ-साथ अगस्ती के सेवन की सलाह देते हैं। इसी प्रकार ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज में कंचना को आजमाया जाता है। कई अन्य जंगली फूल भी विभिन्न बीमारियों के उपचार में इस्तेमाल किए जाते हैं।
औषधीय जड़ी-बूटियों और पौधों के संरक्षण के लिए पांगी का यह संस्थान लगभग चार साल पहले स्थापित किया गया था। पांगी अपनीचार एकड़ भूमि में ऐसे ही औषधीय फल-फूल उगाते हैं।
हालांकि, कई एकड़ में धान की खेती और विदेशी किस्मों के पौधे रोपे जाने के बाद इन जंगलों से ये जड़ी-बूटी वाले पौधे गायब होते दिख रहे हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, कोरापुट स्थित प्रसिद्ध गैर-सरकारी संगठन फाउंडेशन ऑफ इकोलॉजिकल सिक्योरिटी (एफईएस) 2020 से ओडिशा की सबसे ऊंची पहाड़ी देवमाली हिल से सटे लगभग 70 गांवों में स्वदेशी जड़ी-बूटी, पेड़-पौधों और औषधीय झाडिय़ों का संरक्षण कर रहा है। सरकार द्वारा अरेबिका कॉफी की खेती को बढ़ावा देने से अगस्थी जैसे जंगली फूलों के पौधे और अन्य झाडिय़ां गायब हो रही हैं। एफईएस के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक प्रदीप मिश्रा ने बताया कि अधिकांश आदिवासी अगस्ती की पत्तियों और फूलों का इस्तेमाल अपने खाने में करते हैं। इसलिए, हम 70 गांवों के लोगों के सहयोग से अन्य स्वदेशी पौधों के साथ जंगली रतालू और अगस्ती के पौधे लगा रहे हैं और जंगलों को इनसे हरा-भरा करने की कोशिश में जुटे हैं।