सवाई माधोपुर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे होने पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए यह बात जोर देकर कही थी कि प्रकृति की रक्षा करना भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है। वास्तव में, भारत में प्रकृति और संस्कृति के बीच गहरा जुड़ाव है। आप इसका उदाहरण राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से देख सकते हैं, जहां पारंपरिक आदिवासी मांडना पेंटिंग दीवार और फर्श को जीवंत कर देती है।
The Indian Tribal को जिले की बंधा ग्राम पंचायत में ले जाकर मांडना पेंटिंग से सजे घर दिखाने वाले गाइड धुलीलाल मीना कहते हैं कि यहां महिलाएं मिट्टी की कच्ची दीवारों पर पक्षियों, जानवरों और फूलों के सुंदर-सुंदर भित्तिचित्र बनाती हैं।
परंपरागत रूप से सफेद चाक को पानी में घोलकर उससे लाल रंग से लेपी गईं मिट्टी की दीवारों पर ब्रश के जरिए चित्र बनाए जाते हैं। जटिल डिजाइन फर्श पर उकेरे जाते हैं। ये आकार में कुछ-कुछ गोलाकार होते हैं, लेकिन लगते बहुत खूबसूरत हैं।
हर किसी को आकर्षित करने वाली यह कला अब खतरे में पड़ती जा रही है। इसका बड़ा कारण यह है कि जिले में लगातार कच्चे घर अब पक्के मकानों में तब्दील होते जा रहे हैं। सवाई माधोपुर वन प्रभाग में काम करने वाले सुरेंद्र कुमार कहते हैं कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में कंक्रीट के घर बन रहे हैं। इसके कारण मंडाना का के्रज कम हो गया है, क्योंकि यह कला तो कच्चे घरों की दीवारों पर ही अच्छे लगते हैं।
गांवों के अनेक लोगों को लगता है कि कच्चे घरों को बहुत अधिक रखरखाव की आवश्यकता पड़ती है। हर साल बरसात के बाद इन घरों की दीवारों की बाहरी परत को लेप-पोत कर चिकना करना पड़ता है। सुरेंद्र कहते हैं कि आजकल किसी के पास भी इतना समय कहां है? अधिकांश लोग तो टेलीविजन और फोन से भी चिपके रहते हैं।
बंधा के किसान लखपत मीना और उनकी पत्नी जलबाई मीना का घर मांडना पेंटिंग से ऐसा सजा रखा है कि जो देखे, देखता रह जाए। लखपत ने कहा कि हमने अपने घर की दीवारों को मांडना पेंटिंग से खूबसूरत बनाने का प्रयास किया है। लखपत का परिवार खेतों में अमरूद उगाता है।
अपने किले और बाघों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध रणथंभौर में कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता दिव्या खंडाल इस क्षेत्र की पारंपरिक मांडना कला को बढ़ावा देने के लिए कार्य रही हैं। वह कहती हैं कि उनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि स्थानीय परंपरा जीवित ही नहीं रहे, लोगों में इसका प्रसार भी हो। लोगों को कला और शिल्प से जोडऩे की जरूरत है, अन्यथा यह धीरे-धीरे लुप्त हो जाएगी।
कुछ पेंटिंग में प्रकृति की महिमा को दर्शाया गया है। पशु और पक्षी इस पेंटिंग के सामान्य विषय हैं। कहीं-कहीं बाघ के भित्ति चित्र भी देखने को मिलेंगे। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यहां के लोग जानवरों को अपनी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा मानते हैं। ग्राम शेरपुर में गाइड कमलेश कुमार माली ने एक ऐसा घर दिखाया, जिसकी बाहरी दीवार मांडना पेंटिंग से सजी हुई थी। गांव में बुजुर्ग रामनवासी सैनी और एक युवा स्कूली छात्रा टीना सैनी ने रिपोर्टर के सामने अपने घर के अंदर की एक दीवार पर खूबसूरत पेंटिंग बनाई।
रिपोर्टर ने भी मांडना पेंटिंग पर अपना हाथ आजमाया। यहां गांव की हर महिला कलाकार कही जा सकती है। महिलाएं बताती हैं कि भित्तिचित्र सूखने के बाद स्पष्ट दिखते हैं और बहुत ही आकर्षक लगते हैं। पक्के घरों के अलावा, मांडना कला के धीरे-धीरे विलुप्त होने का दूसरा कारण यह भी है कि अब महिलाएं विशेषकर युवा लड़कियां मेहंदी डिजाइन पर अधिक ध्यान देती हैं और वे सोशल मीडिया पर नए-नए ट्रेंड को आजमाती हैं।