आजकल ओडिशा के देवगढ़ जिले में सरस्वती किशन (50) खूब लोकप्रियता बटोर रही हैं। थिया पाला गायिका सरस्वती जिला कला संस्कृति संघ की उपाध्यक्ष और अपनी मंडली, बीनापानी पाला परिषद (गौदनाली) की मुखिया हैं।
पाला ओडिशा का एक प्रकार का लोकगीत है, जिसके दो रूप होते हैं- बैठकी (बैठना) और थिया यानी खड़ा होना। दोनों भगवान सत्यनारायण की प्रशंसा में गाए जाते हैं। इस लोकगीत को गाने वाली मंडली में पांच या छह गीतकार होते हैं। इनमें एक मुख्य गायक या गायिक, एक ढोलकिया और शेष समूह गान में साथ देने वाले (पलिया) शामिल होते हैं। मुख्य गायक पुराण से संस्कृत छंदों का वर्णन करते हैं और फिर उन्हें ओडिय़ा भाषा में अनुवाद कर समझाते हैं।
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गायिकी की यह अनूठी और कर्णप्रिय कला पूरे ओडिशा में बहुत लोकप्रिय है। आदिवासी गायिका सरस्वती इसके सैकड़ों शो कर चुकी हैं। वह कई सरकारी कार्यक्रमों में भी इन लोकगीतों को प्रस्तुत कर चुकी हैं। हर जगह उन्हीं को याद किया जाता है।
देवगढ़ के संस्कृति अधिकारी मनोरंजन सुतार कहते हैं कि सरस्वती की गायिकी में गहराई है। उनका काम काबिले तारीफ है। कुछ साल पहले उनकी मंडली ने भुवनेश्वर में लोक कला दिवस के अवसर पर हमारे जिले का प्रतिनिधित्व किया था, जहां उन्हें बहुत प्रशंसा मिली थी।
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सरस्वती किशन की जिंदगी की शुरुआत बहुत ही साधारण तरीके से हुई। सात लोगों के बड़े परिवार में पली-बढ़ी वह अपने पिता की आंखों का तारा थीं, लेकिन पढ़ाई-लिखाई में बहुत अच्छी नहीं रहीं। किशोर अवस्था पार करते-करते उनकी आंखों की रोशनी खत्म होने लगी। तमाम इलाज किए, लेकिन कामयाबी नहीं मिली।
सरस्वती का मानना है कि उनके दृढ़ विश्वास ने उस समय उनकी आंखों की रोशनी बचाई थी। पूरे भरोसे के साथ वह कहती हैं कि भगवान सत्यपीर ने उन्हें इस संकट से उबार लिया।
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जब दो साल तक उनकी आंखों की रोशनी लगातार कम होती रही, तो चिंता बढ़ गई और उन्हें लगा कि अब सब कुछ खत्म हो जाएगा। एक बार सरस्वती एक पाला में बैठी थीं। उस समय उन्होंने अपने आराध्य देव सत्यपीर से मन ही मन वादा किया कि यदि उनकी दृष्टि वापस आती है तो वह थिया पाला गाती रहेंगी। और, चमत्कार देखिए कि उसके बाद से उनकी दृष्टि में लगातार धीरे-धीरे सुधार होने लगा।
बात 1994 के आसपास की है। गौदनाली से लगभग दो किमी दूर नुआगांव के घंटेश्वरी मंदिर में एक कार्यक्रम के दौरान पाला के दिग्गज गायक रविनारायण पांडा से उनकी मुलाकात हुई। पश्चिम ओडिशा मां समलेश्वरी पाला परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष पांडा ने उनसे अपनी कला पर और अधिक काम करने का आग्रह किया और ताबीज के रूप में उन्हें एक चमार भेंट किया। चमार एक तरह की उडऩतश्तरी होती है। माना जाता है कि इसे रखने वाले गायक या गायिका की आवाज बहुत ही मधुर हो जाती है और उनकी कला में निखार आता है।
सरस्वती कहती हैं कि देवगढ़ में वह प्रति शो 6,000-8,000 रुपये लेती हैं, लेकिन अपने जिले के बाहर होने वाले शो के लिए उनकी मंडली 14,000 रुपये तक लेती है।
हल्की मुस्कुराहट के साथ सरस्वती धीरे से कहती हैं कि उसके बाद से पाला गायिका के रूप में उनकी यात्रा आज भी जारी है। वह बताती हैं कि प्रत्येक वर्ष उनकी मंडली भुवनेश्वर (ओडिशा) के साथ-साथ छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश आदि राज्यों में विभिन्न स्थानों पर लगभग 200 शो प्रस्तुत करती है। सरस्वती कहती हैं कि देवगढ़ में वह प्रति शो 6,000-8,000 रुपये लेती हैं, लेकिन अपने जिले के बाहर होने वाले शो के लिए उनकी मंडली 14,000 रुपये तक लेती है।
सरस्वती का मानना है कि जिस प्रकार भगवान की कृपा से उनकी आंखों की रोशनी बच गई, उसी प्रकार दिग्गज गायक रविनारायण पांडा ने उन्हें एक साधारण गायिका से मंझी हुई कलाकार बनने के लिए प्रेरित किया। आज वह मशहूर हस्ती हैं। वह बहुत ही समझदार हैं। भगवान में उनका विश्वास और भी मजबूत है।सरस्वती किशन के पति पटेल किशन कहते हैं कि उनकी व्यावसायिक सफलता से साफ पता चलता है कि उन पर मां सरस्वती का आशीर्वाद है। वास्तव में, जैसा नाम, वैसा काम, सरस्वती अपने नाम पर पूरी तरह खरी उतरती हैं।