कटक/भुवनेश्वर।
कडक़ड़ाती सर्दी की रात हो या चिलचिलाती गर्मी की दोपहर अथवा बरसात का चिपचिपा मौसम, किसी भी समय और कहीं से भी कॉल आए, प्रसव पीड़ा से कराहती गर्भवती महिला को निकटतम स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाने के लिए फौरन हाजिर हो जाती है बाइक एम्बुलेंस। यदि गर्भवती अस्पताल तक जाने की स्थिति में नहीं होती और बच्चे को वहीं जन्म देना पड़े तो डिलीवरी वैन भी एक कॉल पर तैयार मिलती है। चिकित्सा सुविधाओं से लैस इस वैन में बेफिक्र होकर प्रसव की प्रक्रिया पूरी कराई जाती है।
ओडिशा के कंधमाल जिले के कोंध जनजाति बहुल 11 ब्लॉकों के लगभग 668 ऐसे गांवों में इस समय यह बाइक और वैन सेवा किसी वरदान की तरह है, जहां आसानी से नहीं पहुंचा जा सकता। पूरे इलाके में पांच बाइक और छह डिलीवरी वैन कहीं से भी इमरजेंसी कॉल आने के इंतजार में घुर्र-घुर्र करती तैयार रहती हैं।
जिला स्वास्थ्य समिति (जेडएसएस) की ओर से शुरू की गई यह बाइक एम्बुलेंस सेवा क्षेत्र में इतनी फायदेमंद हो रही है कि इसने अपनी बेहतर सेवाओं के लिए वर्ष 2020 में प्रतिष्ठित स्कोच अवार्ड भी जीता है। उससे अगले साल यानी 2021 में नीति आयोग ने भी इस बाइक और डिलीवरी वैन सेवा की सराहना की। यहां तक कि मातृत्व स्वास्थ्य के लिए इस योजना पर राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) ने भी अपना भरोसा जताया है। एनएफएचएस-4 के अनुसार जहां 2015-16 में संस्थागत प्रसव 72.7 प्रतिशत था, वहीं 2019-20 में एनएफएचएस-5 के मुताबिक यह बढक़र 93.9 प्रतिशत हो गया।
हालांकि बाइक एम्बुलेंस सेवा मुख्य रूप से गर्भवती महिलाओं को सुविधा देने के उद्देश्य से शुरू की गई थी, लेकिन यह अन्य बीमार लोगों को इलाज के लिए अस्पताल ले जाने का काम भी बखूबी कर रही है।
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सीडीएमओ और जेडएसएस के संयोजक डॉ. एमके उपाध्याय ने The Indian Tribal को बताया कि भले बाइक एम्बुलेंस से अन्य मरीजों को भी सेवा दी जा रही है, लेकिन डिलीवरी वैन केवल महिलाओं के प्रसव के लिए ही रखी गई है। उसे अन्य मरीजों को अस्पताल लाने या ले जाने के इस्तेमाल में नहीं लाया जाता। उन्होंने बताया कि चिकित्सा सेवाओं से लैस इस वैन में दो प्रशिक्षित नर्स और दो चालक हमेशा तैनात रहते हैं।
सरडिंगिया में बाइक एम्बुलेंस चालक गरुड़ कहते हैं कि कभी-कभी ऐसा होता है कि दुर्गम इलाकों में वैन के लिए रास्ता बेहतर नहीं होता तो वहां बाइक एम्बुलेंस भेजी जाती है। वैन को ऐसी जगह तैनात किया जाता है जहां तक बाइक से मरीज को लाया जा सके। बाइक एम्बुलेंस मरीज को दूरदराज के क्षेत्र से मुख्य सडक़ या रास्ते तक लाती है और यहां इंतजार कर रही वैन में बैठाकर उसे अस्पताल ले जाया जाता है।
कंधमाल जिले में बाइक एम्बुलेंस सेवा इतनी चुस्त-दुरुस्त है कि बेहतर सेवाओं के लिए 2019 में 30 जिलों की सूची में कंधमाल शीर्ष पर रहा। बाइक एम्बुलेंस सेवा पहली बार 2017 में दारिंगबाड़ी ब्लॉक के केटिंगा और तुमुदीबांध ब्लॉक के लंकागढ़ में पायलट परियोजना के रूप में शुरू की गई थी। आदिवासी क्षेत्रों में सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने पर इस परियोजना को तीन अन्य ब्लॉकों में शुरू किया गया। उसी वर्ष छह ब्लॉकों में एम्बुलेंस सेवा नेटवर्क को मजबूती देने और मरीजों को त्वरित इलाज की सुविधा मुहैया कराने के लिए डिलीवरी वैन भी सडक़ों पर उतारी गईं।
डिप्टी मैनेजर (आरसीएच) आसीस मोहंती कहते हैं कि सरकार ने एम्बुलेंस नेटवर्क को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए सालाना 75 लाख रुपये का इंतजाम किया। इस वक्त यह मोटर बाइक एम्बुलेंस आदिवासी बहुल 12 जिलों में काम कर रही है।
जेडएसएस की तरफ से एक वैन और दो बाइक एम्बुलेंस संचालित करने वाले एनजीओ जागृति के परियोजना समन्वयक कैलाश बेहुरा कहते हैं कि यह सब इतना आसान नहीं था। आदिवासियों को इस सेवा का लाभ उठाने के लिए समझाना बहुत मुश्किल काम रहा। बाइक और वैन एम्बुलेंस का फायदा बताने के लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर हाटों में बड़ी सभाएं की और उनमें ऐलान करवाया। जगह-जगह पोस्टर चिपकाए और लोगों में भी वितरित किए। गांव के गणमान्य लोगों को इसका सकारात्मक पक्ष समझाया। उन्होंने आगे आम लोगों में संदेश पहुंचाया।
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एक अन्य एनजीओ स्वाति के सचिव हरिशंकर राउत The Indian Tribal को बताते हैं कि जब मरीज की हालत खराब होती है और संपर्क का कोई साधन नहीं होता या मोबाइल वगैरह काम नहीं करता, तो गांव की आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता आगे आती हैं। वे अपने स्तर पर भाग-दौड़ कर गर्भवती महिलाओं को लाने ले जाने के लिए बाइक एम्बुलेंस या डिलीवरी वैन की व्यवस्था कराती हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि कोई व्यक्ति संदेश लेकर जाता, वह आगे अस्पताल तक सूचना पहुंचाने के लिए किसी अन्य व्यक्ति से कहता। इस तरह दुर्गम क्षेत्र से अस्पताल या बाइक और वैन एम्बुलेंस तक खबर पहुंचती और फौरन ही संबंधित स्थान पर सेवा पहुंचायी जाती है।
स्वाति एनजीओ एक बाइक एम्बुलेंस और चार डिलीवरी वैन संचालित करती है, जबकि शांति मैत्रयी संगठन के पास दो बाइक एम्बुलेंस हैं। एनजीओ विकल्प विकास एक डिलीवरी वैन संचालित करता है।
दावा किया जा रहा है कि इस एम्बुलेंस नेटवर्क की वजह से क्षेत्र में मातृ मृत्यु दर में 65 प्रतिशत तक की कमी आ गई है। वैसे इतना तो है ही, कि ये सेवाएं अब आदिवासियों के लिए स्वास्थ्य व्यवस्था का अनिवार्य हिस्सा हो गई हैं। मिंगुन पडार गांव की निरदा कहती हैं कि इस एम्बुलेंस सेवा की वजह से ही मेरी और मेरे बच्चे की जान बच पायी। कई अन्य महिलाएं भी इसी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त करती हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस क्या है?
राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस का उद्देश्य गर्भावस्था से पहले, गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद महिलाओं को आवश्यक सेवाओं के बारे में जानकारी देना और उन तक आसान पहुंच के बारे में जागरूक करना है। यह व्हाइट रिबन एलायंस (डब्ल्यूआरएआई) की एक पहल है। इसका 1,800 संगठनों के साथ गठजोड़ है। देश में गर्भवती महिलाओं की मदद एवं जागरूकता के लिए डब्ल्यूआरएआई की अपील पर तत्काल कार्रवाई करते हुए केंद्र सरकार 2003 में 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के रूप में नामित किया। विशेष यह कि यह दिन महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी की जयंती भी है।