रांची
एक युग से लुगुबुरु घंटाबाड़ी संथालों का सबसे बड़ा तीर्थस्थल रहा है। इसे वे सोसनोक जुग पुकारते हैं। अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए आज न केवल संथाल बल्कि सभी धर्मों-मान्यताओं का अनुसरण करने वाले लोग यहां आते हैं। यह धार्मिक स्थल सुरम्य प्राकृतिक दृश्यों से घिरे तेनुघाट बांध के निकट स्थित है और यही कारण है कि यह तेजी से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है।
इस जगह की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले डेढ़ दशक से कार्तिक पूर्णिमा उत्सव को यहां राज्य समारोह के रूप में मनाया जा रहा है। वास्तव में, हर महीने बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं।
पारंपरिक आदिवासी समुदाय के संभ्रांत लोगों या ग्राम सभाओं की सहमति से पूर्णिमा और अमावस्या के दौरान बड़े स्तर पर मेलों का आयोजन किया जाता है, जिनमें भारी भीड़ जुटती है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी परिवार के साथ यहां आ चुके हैं।
सरना आस्था का प्रमुख केंद्र धरमघर बोकारो जिले के गोमिया प्रखंड मुख्यालय से लगभग 16 किलोमीटर दूर स्थित है। सरना आस्था का पालन करने वाली संथाल समेत मुंडा, खरिया, बैगा, हो और कुरुख आदि कुछ अन्य जनजातियों द्वारा प्रकृति पूजा की जाती है।
सरना जंगलों में स्थित पवित्र उपवन होते हैं और इन उपवनों, वनों की पूजा पद्धति को सरनावाद के रूप में जाना जाता है। हाल ही में कुछ जनजातियों ने सरना को धर्म के रूप में मान्यता देने की मांग भी उठाई है।
धरमघर जाने का मुख्य कारण लुगु बाबा की गुफा में पूजा करना होता है, जो एक चट्टानी पहाड़ी की चोटी पर स्थित है, जहां सात किलोमीटर पैदल चढ़ाई कर पहुंचा जाता है। इस गुफा के बारे में विशेष मान्यता है। स्थानीय युवक साकेत कुमार कहते हैं कि कहा जाता है कि यहां लुगू बाबा को भगवान शिव ने अपना आशीर्वाद दिया था।
रामगढ़ जिले के रजरप्पा में मां छिन्नामस्तिका मंदिर को पहाड़ी की चोटी और झरने तक दो गुफाओं को जोडऩे वाली गुप्त सुरंगों के बारे में भी कई किस्से प्रचलित हैं। कुमार कहते हैं कि इन सुरंगों का पता लगाने की कोई गंभीर कोशिश नहीं हुई। एक बार मैंने प्रयास किया था, लेकिन कुछ मीटर चलने के बाद ही लौटना पड़ा, क्योंकि गुफा में रहने वाले चमगादड़ों ने आगे चलने ही नहीं दिया।
पिछले 20 वर्षों से अधिक समय से यहां एक अंतरराष्ट्रीय सरना धर्म सम्मेलन आयोजित किया जाता रहा है। इस सम्मलेन में आध्यात्मिक कार्यक्रमों के अलावा आदिवासियों के रीति-रिवाजों, पारंपरिक मूल्यों, साहित्य और स्वदेशी कला-संस्कृति को संरक्षित और समृद्ध करने के तौर-तरीकों पर चर्चा होती है।
राज्य सरकार ने इसे एक आकर्षक पर्यटन स्थल बनाने के लिए रोपवे सहित बेहतर बुनियादी ढांचा विकसित करने का वादा किया था, लेकिन अभी तक जमीनी स्तर पर कुछ भी काम शुरू नहीं हो पाया है।
लुगुबुरु घंटाबाड़ी के इतने लोकप्रिय होने के बावजूद विकास के नाम पर यहां केवल कुछ नए मंदिर और एक ध्यान केंद्र ही बन पाए हैं। राज्य सरकार ने इसे एक आकर्षक पर्यटन स्थल बनाने के लिए रोपवे सहित बेहतर बुनियादी ढांचा विकसित करने का वादा किया था, लेकिन अभी तक जमीनी स्तर पर कुछ भी काम शुरू नहीं हो पाया है।
यह स्थान पिछले साल नवंबर में उस समय सुर्खियों में आया था जब झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपने परिवार के साथ यहां धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने आए थे।