रांची
आदिवासी युवाओं के बिजनेस आइडिया को उद्यम में बदलकर उनके लिए अवसरों का द्वार खोलने के प्रयास शुरू कर दिए गए हैं। रांची के खेल गांव स्थित टाना भगत इनडोर स्टेडियम में आठवीं राष्ट्रीय आदिवासी उद्यमिता प्रशिक्षण शिविर संघ व्यवस्था के अधिवेशन की शुरुआत 9 फरवरी को हुई। इसका आयोजन यूनाइटेड ट्राइब गोंडवाना एसोसिएशन राष्ट्रीय आयोजन समिति की ओर से किया जा रहा है। इसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने आदिवासी युवाओं को उद्यमिता (एंटरप्रेन्योरशिप) के गुर बताए, ताकि वह एक सफल उद्यमी के रूप में अपना करियर बना सकें।
अधिवेशन में शामिल होने के लिए झारखंड सहित महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा से प्रतिभागी आए हुए हैं। उद्घाटन सत्र में गोंडवाना एसोसिएशन के निदेशक देवलाल चेरवा, राष्ट्रीय संयोजक सरोज लकड़ा, विजय कुजूर, प्रभाकर तिर्की, रतन तिर्की और निधि गोंड समेत अन्य गणमान्य लोग मौजूद थे।
आदिवासी उद्यमिता अधिवेशन की शुरुआत सरना धर्म विधि के डंडा काटना व अनादि कुरुख प्रार्थना के साथ हुई इसमें राजी पहाड़ा प्रार्थना सभा के डॉ प्रवीण उरांव सहित वाहन ने सभी विधि-विधान पूरे किए।
अधिवेशन में उद्यमियों ने विशेषज्ञ उद्यमिता उत्पादन प्रसंस्करण बाजार व्यापार ऋण आदि पर चर्चा की साथ ही आदिवासी योजनाएं बिजनेस लाइसेंस अनुदान बाजार पूंजी निर्यात एकीकृत व जैविक खेती प्रोसेसिंग ब्रांड इन पैकेजिंग वनोपज वन औषधि डेयरी फार्म स्वास्थ्य खनन इको टूरिज्म खेल मनोरंजन शिक्षा सहित अन्य बिजनेस आइडिया को फलीभूत करने के तरकीब बताए।
शुक्रवार को तकनीकी सत्र में उद्यमियों ने आदिवासी युवाओं को अपने आइडिया को बिजनेस में बदलने के सूत्र बताए। इसमें तेलंगाना की खनन कंपनी वनांचल मिनरल प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक रमैया बोनेवोनिया, लघु वनोपज संघ छत्तीसगढ़ के महाप्रबंधक आरसी दुरग्गा, ट्राइबल एजी लिमिटेड के सीईओ खेला राम मुर्मू सहित अन्य सफल आदिवासी उद्यमियों ने अपने व्यवसाय से जुड़े अनुभव साझा किए व व्यापार की बारीकियों से प्रतिभागियों को अवगत कराया।
जनजातीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना लक्ष्य
यूनाइटेड ट्राइब गोंडवाना एसोसिएशन की ओर से आयोजित इस आदिवासी उद्यमिता अधिवेशन के प्रवक्ता प्रभाकर तिर्की ने The Indian Tribal को बताया कि इस पूरे आयोजन का उद्देश्य जनजातीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है। इसके तहत जनजातीय संसाधनों के आधार पर आदिवासी समुदाय के आदिवासी व्यवसाय और व्यापार को किस तरह बढ़ावा दिया जाए उसकी रणनीति भी तैयार की जानी है।
वह कहते हैं कि कृषि और कृषि आधारित उत्पाद, वनोपज और वनोपज आधारित उत्पाद, पशुपालन, ये तीनों जनजातीय अर्थव्यवस्था के आधार स्तंभ हैं । इनको उपभोक्ताओं तक असरदार तरीके से कैसे पहुंचाया जाए, ताकि जनजाति अर्थव्यवस्था मजबूत हो सके इस पर आदिवासियों को युवाओं को प्रशिक्षित कर उन्हें बाजार की मांग के अनुरूप कुशल उद्यमी बनाना है।