धेमाजी (असम)
जूटीस कारदोंग मिसिंग जनजाति का 25 साल का एक नौजवान है। वो असम के धेमाजी के मेदीपमुआ गांव का रहने वाला है। एक ‘छोटा’ मोबाइल फोन उसके मनोरंजन का एकमात्र साधन है। इस उम्र में ‘प्रेम’ जैसे अहसास के बारे में पूछने पर कहता है, “मन तो करता है लड़की से दोस्ती हो, लेकिन कैसे होगी? आधा साल तो चेन्नई में रहता हूँ।”
चेन्नई में इसलिए क्यूंकि हर साल मई के महीने से अगले कुछ महीनों तक उसका गांव ब्रहमपुत्र और उसकी 26 सहायक नदियों से आई बाढ़ से डूब जाता है। मजबूर होकर उसे चेन्नई पलायन करना पड़ता है। वहां वो टाइल्स लगाने की मजदूरी करता है। आखिर 14 सदस्यों वाले परिवार की जिम्मेदारी ‘बड़ी’ होती है।
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जूटीस ने The Indian Tribal को बताया कि उसके जैसे युवाओं के बारे में ये आम धारणा है कि फ्लड (बाढ़) वाला लड़का है, इससे शादी कौन करेगा? वो पूछता है, गर्लफ्रेंड कैसे होगी जब मैं 6 महीने यहां, 6 महीने चेन्नई में रहता हूँ? फ्लड वाला लड़का हूं, कौन प्रेम करेगी मुझसे? मैं खुद प्रेम कैसे कर सकता हूँ?
साल दर साल बाढ़, और २०२२ में तो एक साल में तीन-तीन बार बाढ़। ये धेमाजी और असम के कई अन्य जिलों के लिए सामान्य बात है। पिछले साल धेमाजी में ३०,००० बच्चों सहित 1,00,000 लोग प्रभावित हुए। 6,86,133 की आबादी वाले धेमाजी में मुख्यत: मिसिंग जनजाति के लोग रहते है। मिसिंग के अलावा ये हाजोंग, बोडो, सोवोवॉल जनजाति के लोगों का भी घर है।
30 साल की बिस्मिता कारदोंग के पति राहुल कारदोंग महाराष्ट्र की एक ग्लास कंपनी में मजदूरी करते है। राहुल दो साल में एक बार घर आते है। बिस्मिता को अपने पति की बहुत याद आती है।
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कांउसिल ऑन एनर्जी, इनवायरमेंट एंड वाटर (CEEW) की साल 2021 में आई रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में असम का ‘क्लाइमेंट वल्नेरेबिलिटी इंडेक्स’ (Climate Vulnerability Index) स्कोर सबसे ज्यादा है। धेमाजी जिला देश में जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित 10 जिलों में से एक है।
धेमाजी ब्रहापुत्र नदी के उत्तरी किनारे पर बसा असम का सबसे पूर्वी कोना है। असम-अरूणाचल प्रदेश के बार्डर पर स्थित इस जिले के 85 प्रतिशत लोगों का मुख्य पेशा खेती था। लेकिन हाल के सालों में अचानक आ रही बाढ़ ने खेती चौपट कर दी है। ‘धान का कटोरा’ माने जाने वाले इस इलाके में बाढ़ का पानी अपने साथ सैंकड़ों टन गाद लेकर आता है, जिसके चलते खेती की जमीन अनुपजाऊ हो रही है। धान की किस्म साली, बाओ, अहु का उत्पादन लगातार घट रहा है।
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असम सरकार के आपदा प्रबंधन विभागके मुताबिक साल 2022 में असम में तीन बार आई बाढ़ से धेमाजी की 2,838,40 हेक्टेयर कृषि भूमि डूब गई। खेती चौपट होने के चलते धेमाजी से जनजातीय लोग बड़े शहरों में पलायन को मजबूर है। एक अनुमान के मुताबिक असम से दूसरे शहरों में पलायन करने वालों की तादाद तकरीबन 4 लाख है।
धेमाजी के जोनाई के सिले पंचायत के वार्ड सदस्य हेम कुमार के बेटे अरूणाचल प्रदेश में सड़क बनाने का काम करता है।हेम कुमार बताते हैँ कि 2020 में बाढ़ उनकी जमीन ले गई। अब वो धान की नहीं बल्कि गोभी, टमाटर आलू उपजाते है और 10 किलोमीटर दूर जोनाई के बाजार में बेचते है।
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वैसे बाढ़ इस इलाके के लिए कोई नई बात नहीं है। लेकिन 80 के दशक तक जो बाढ़ खेतों की उर्वरता को बढ़ाती थी, वो अब अचानक आने लगी और खेतों को बंजर बनाने लगी। धेमाजी में मिसिंग जनजाति के घरों को देखें तो ये खास तरह के है जिन्हें ‘चांग घर’ कहा जाता है। ऊंचाई पर बनने वाले चांग घरों का जलवायु परिवर्तन के खतरों को देखते हुए महत्व बढ़ गया है।
धेमाजी की 32 प्रतिशत बच्चियों का बाल विवाह हो जाता है, 15 से 19 साल के आयुवर्ग की 60 प्रतिशत बच्चियां एनेमिक है। तकरीबन 44 प्रतिशत महिलाएं 10 या उससे ज्यादा साल स्कूल जाती है। लगातार आ रही बाढ़ ने किशोरियों की सेहत के साथ साथ उनकी उच्च शिक्षा पर भी ब्रेक लगा दिया है। अजारबाड़ी गांव की किशोरियां बताती है कि उनके गांव से पहला हाईस्कूल सात किलोमीटर दूर है। बाढ़ के वक्त पूरा रास्ता पानी से भरा होता है, ऐसे में वो स्कूल कैसे जाएं?
असम का आपदा प्रबंधन विभाग और यूनीसेफ मिलकर धेमाजी के सरकारी स्कूलों में छात्र-छात्राओं को जलवायु परिवर्तन के खतरों से लड़ने के लिए ट्रेनिंग दे रही है। इसके लिए स्कूलों में मॉक ड्रिल करवाई जाती है।
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धेमाजी के बुनकरों द्वारा तैयार हैंडलूम मैटेरियल की उत्तर प्रदेश और बिहार सहित पूरे देश में मांग थी। लेकिन बाढ़ ने बुनकरों की बाहरी दुनिया की उस कड़ी को भी तोड़ दिया है। बाढ़ के साथ जीवन जीने की कला जानने वाले धेमाजी के लोगों का हाशियाकरण बढ़ता जा रहा है। इतना ज्यादा कि वहां मनुष्य के सबसे प्राथमिक अहसास ‘प्रेम’ की जगह भी सिकुड़ती जा रही है। जूटीस की एक प्रेमिका के लिए तड़प बहुत कुछ कहती है।