ईटानगर
पूरब में भारत के आखिरी छोर पर बसे अरुणाचल प्रदेश में महिलाएं आमतौर पर टॉप, ब्लाउज, शॉल, कोट और यहां तक कि सैश के साथ लंबी स्कर्ट और रैपअराउंड पहनती हैं। पुरुष लुंगी, शॉल और कोट को पसंद करते हैं। ऊपरी परिधान के साथ घुटने तक की लंबाई वाली बिना आस्तीन की शर्ट इनकी विशिष्ट पारंपरिक पौशाक है।
आमतौर पर हरा, लाल, पीला, काला और सफेद रंग सभी जनजातियों के लोग पसंद करते हैं और ये रंग यहां खूब पहने जाते हैं । हालांकि भौगोलिक विविधता का असर अब ड्रेसिंग स्टाइल और फैशन पर भी साफ-साफ दिखने लगा है।
इस पहाड़ी और बेहद खूबसूरत राज्य की न्यीशी, गालो, अपातानी, आदि, तागिन, बोरी, बोकार, इडु मिश्मी, मोनपा समेत अधिकांश जनजातियां जातीय रूप से समान मानी जाती हैं यानी इनके पूर्वज एक ही समझे जाते हैं। यही वजह है कि इनका पहनावा एक जैसा ही होता है। ये सभी जनजातियां अपनी अनूठी पारंपरिक बुनाई-कढ़ाई की कारीगरी और शिल्प-कला के लिए मशहूर हैं।
जहां तक पारंपरिक बुनाई की तकनीक का सवाल है, तो इसमें अपातानी जनजाति के लोग सबसे अधिक पारंगत माने जाते हैं। वे पेड़ों, बकरी और मानव बालों से तैयार किए गए रेशों से बुनाई में विभिन्न प्रकार की चित्रकारी व डिजाइन डालते हुए कोट, शॉल, स्कर्ट, सैश और रैपराउंड बनाते हैं।
इसमें भी विशेष यह कि आदि, अपातानी और मिश्मी जैसी जनजातियों की महिलाएं अपने कपड़ों की बुनाई में ज्यामितीय पैटर्न जरूर डालती हैं। डिजाइन में कोण, टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं और धारियां इनके सबसे लोकप्रिय पैटर्न हैं। इन क्षेत्रों में पुष्प पैटर्न भी कपड़ों में खूब दिखता है, लेकिन वह भी ज्यामितीय आकार में ही होता है।
इन जनजातियों के पहनावे में जिंदगी के रंग और स्वभाव भी दिख जाते हैं। जैसे, आदि, अपातानी और न्यीशी जनजातियों के कपड़ों में सरल, सीधी रेखाएँ बहुतायत में मिलती हैं जो इनके अधिक अनुशासित रहन-सहन को दर्शाती हैं, जबकि मिश्मी थोड़ा अधिक उत्सवी पैटर्न को पसंद करते हैं।
अरुणाचल प्रदेश में इडु मिश्मी आदिवासी समूह को उनके विशिष्ट केश, वेशभूषा और उन पर उकेरे गए पैटर्न से आसानी से पहचाना जा सकता है। इडु मिश्मी जानजाति के लोग बेहतरीन शिल्पकार होते हैं। विशेष रूप से महिलाएं तो बहुत ही अच्छी बुनकर समझी जाती हैं। कमर करघे पर बनाए जाने वाले वस्त्रों के डिजाइनों में उनका सौन्दर्य बोध प्रतिबिंबित होता है।
लोक कथाएं
इस जनजातीय समूह में बुनाई की उत्पत्ति के बारे में बड़ी ही रोचक लोककथाएं सुनने को मिलेंगी। इडु मिश्मी जनजाति के लोगों का मानना है कि विश्व में सबसे पहले बुनाई हम्ब्रूमाई नाम की एक लडक़ी ने की थी। उसने बुनाई की कला एक नदी देवी से सीखी थी। हम्ब्रूमाई जाकर नदी के किनारे बैठ जाती थी और आसपास प्रकृति में फैले फूल-पौधों, पहाडिय़ों आड़ी-तिरछी पगडंडियों आदि के डिजाइन को देख अपनी बुनाई में उकेरती थी। नदी के पानी की तरंगें, पेड़-पौधों की हिलती हुई शाखाएं और फूल हम्ब्रूमाई की प्रेरणा बन गए और वह उनके जैसे डिजाइन कपड़े में बड़ी खूबसूरती से बनाने लगी।
हालांकि, हेयरम नाम की एक साही ने एक दिन उसके कपड़े देखे और उन्हें चुराने की जुगत में लग गई, क्योंकि इससे पहले उसने कभी भी इतनी सुंदर कोई चीज नहीं देखी थी।
ललचायी हेयरम ने एक दिन हम्ब्रूमाई की गुफा में चुपके-चुपके रेंगकर जाने का प्रयास किया, लेकिन उसका प्रवेश द्वार बहुत छोटा था। जैसे ही उसने अंदर घुसने की कोशिश की, तो पूरी गुफा ढह गई और हम्ब्रूमाई विशाल चट्टान के नीचे दब गई। उसका करघा भी टूट गया एवं उसके बुने हुए कपड़े के टुकड़े नदी में बहकर मैदानों में चले गए।
वहां तैरते कपड़ों को अन्य लोगों ने निकाल लिया और धीरे-धीरे उस कपड़े जैसी बुनाई सीख ली। ये डिजाइन तितलियों में बदल गए और हम्ब्रूमाई द्वारा बनाए गए पैटर्न आज भी उनके पंखों पर देखे जा सकते हैं।
दूसरी ओर, गालो जनजाति के लोगों का मानना है कि बुनाई की कला देवी पोडी बारबी ने किसी को सपने में सिखाई थी। हालांकि, ऐतिहासिक या पुरातात्विक रूप से इसे बारे में कोई तथ्यात्मक जानकारी उपलब्ध नहीं है कि वास्तव में अरुणाचल प्रदेश के लोगों ने बुनाई कब सीखी और कब से उन्होंने कपड़े पहनने शुरू किये।
आकर्षक आभूषण और जूते
अरुणाचल प्रदेश के आदिवासी लोग पारंपरिक गहनों और श्रंगार के अन्य सामान को खूब पसंद करते हैं। यहां हार, चूडिय़ां, अंगूठियां, पायल, बेल्ट, हेडगियर, हेडबैंड और यहाँ तक कि जूते और टोपी सुलेमानी की बड़ी रेंज देखने को मिलती है, जो पत्थर, पीतल, चांदी, सोना, फिऱोज़ा, लाल मूंगा, हाथी दांत और एम्बर से बनी होती हैं।
मोनपा जनजाति के लोग विशेष प्रकार की टोपी पहनते हैं, जिसे नगामा शोम कहा जाता है। खोपड़ी के आकार की यह खूबसूरत टोपी याक के बालों से बनाई जाती है। इसी प्रकार मोनपा लोगों के पारंपरिक जूते होते हैं जिन्हें महिलाएं और पुरुष दोनों पहनते हैं। ये वैसे तो ऊन के बने होते हैं, लेकिन इनके तलवे याक या गाय के चमड़े से तैयार किए जाते हैं।
ये मजबूत तो होते ही हैं, लेकिन बनाते समय इनमें खूबसूरती का भी विशेष ख्याल रखा जाता है।