जब सालगे हांसदा के नाम की घोषणा उनके पहले ही उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 2022 के लिए की गई, तो उनके माता-पिता को इस खबर पर यकीन ही नहीं हुआ। उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि इस साधारण से घर में पली-बढ़ी बेटी के अंतर्मन के विचार इतनी ऊंचाई तक पहुंच जाएंगे।
यह कोई साधारण दिन नहीं था। आखिरकार, जमशेदपुर के बाहरी इलाके में स्थित एक छोटे से गांव में रहने वाले सीमांत किसान और उनकी पत्नी को बताया गया था कि उनकी बेटी को साहित्य में राष्ट्रीय सम्मान दिया गया है। पहले तो उन्हें लोगों की बातों पर भरोसा ही नहीं हुआ, लेकिन जब उन्होंने टेलीविजन पर भी अपनी बेटी से संबंधित खबर को देखा तो खुशी से आंखें छलक आईं। उन्होंने अपने पड़ोसियों, मित्रों के साथ खुशी मनाई और सभी का मुंह मीठा कराया।
हांसदा का पुरस्कार विजेता उपन्यास जनम दिसोम उजारोग काना (वीरान होती मातृभूमि) संथाली भाषा में लिखा गया है। यह उपन्यास ग्रामीण-शहरी परिवेश में गहराती खाई और शहरीकरण के कारण मची सामाजिक उथल-पुथल पर आधारित है।
अपने काम के लिए घर से बाहर निकली हांसदा ने जब औद्योगिक और अन्य विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापित लोगों की उजड़ी जिंदगी को करीब से देखा तो वह परेशान हो गईं। कैसे युवा अपनी जमीन बेचकर मिले मुआवजे के पैसे को जुए, शराब और नशे के सेवन पर उड़ा रहे हैं, यह देख वह विचलित हो गईं। उनका पक्का अनुमान था कि यदि इन युवाओं को नहीं रोका गया तो जल्द ही यह राशि समाप्त हो जाएगी और कुछ ही दिन में ये चकाचौंध में खोये युवा सडक़ पर खाली हाथ खड़े होंगे।
लेखिका का मानना है कि अपनी पुश्तैनी जमीन बेचकर कोई भी व्यक्ति अमीर नहीं बन सकता। पैतृक संपत्ति के बंटवारे या बर्बादी से संस्कृति और पारंपरिक मूल्यों का विभाजन भी होता है। मातृभूमि के साथ भावनात्मक संबंध सामुदायिक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।
हांसदा का उपन्यास 2021 में प्रकाशित हुआ और प्रसिद्ध संथाली लेखक पद्मश्री दमयंती बेसरा द्वारा इसका विमाचन किया गया।
परसुडीह बारिगोरा गांव की रहने वाली 32 साल की साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार विजेता हांसदा चार बहनों और एक भाई में सबसे छोटी हैं। उनके पिता गलुराम मामूली पढ़े-लिखे हैं, लेकिन माता सीता संथाली माध्यम स्कूल से मैट्रिक पास हैं।
सीता हांसदा अपने बच्चों को मशहूर संथाली लेखक रघुनाथ मुर्मू के संथाली उपन्यास, बिदु चंदन, की कहानियां सुनाया करती थीं। इस प्रकार हांसदा ने सबसे पहले संथाली साहित्य के बारे में जाना और उनमें इसके प्रति रुचि बढ़ती गई।
हांसदा ने अपनी मैट्रिक तक की पढ़ाई बारिगोरा के सामुदायिक हाई स्कूल से की। इसके बाद वह पास के छोलाघोरा गांव के एक स्कूल में संथाली पढऩे लगीं। इस युवा लडक़ी को संथाली से मानो प्रेम हो गया और इंटरमीडिएट, स्नातक एवं स्नातकोत्तर में संथाली उनका मुख्य विषय बन गई।
हांसदा ने बीएड भी किया है और यूजीसी-नेट की परीक्षा पास कर ली है। वह कोल्हान विश्वविद्यालय के एसआरकेएम डिग्री कॉलेज, चाकुलिया में अतिथि संकाय रही हैं। इस बीच, पिछले पांच वर्षों में अपनी नौकरी के लिए लोकल ट्रेन से यात्रा करने के दौरान न केवल हांसदा को एक उपन्यास लिखने का विचार आया, बल्कि उन्होंने कई दोस्त भी बनाए।
जब हांसदा को साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार मिला और यह समाचार उन महिलाओं तक पहुंचा, जो उनके साथ वर्षों से लोकल ट्रेन के महिला डिब्बे में हर रोज सफर करती थीं, तो वे सब भी बहुत खुश हुईं। उन्होंने हांसदा के लिए नृत्य किया, मिठाइयां बांटी और फूलों की पंखुडिय़ों की वर्षा कर उनका स्वागत किया। इससे अभिभूत हांसदा theindiantribal.com को बताती हैं, “पहली बार मुझे एक सेलिब्रिटी की तरह महसूस हुआ। साथी महिलाओं का यह अपनापन, यह प्रसन्नता भी साहित्य अकादमी के सम्मान से कम नहीं थी।”