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Home » द इंडियन ट्राइबल / हिंदी » ओडिशा के आदिवासी थिएटर कलाकारों का उभरना और फिर गर्दिश में खो जाना

ओडिशा के आदिवासी थिएटर कलाकारों का उभरना और फिर गर्दिश में खो जाना

सैकड़ों आदिवासी कलाकारों को थिएटर ने पहचान दिलाई, लेकिन किसी ने रोजी-रोटी के संकट तो किसी ने अन्य कारणों से अपना रास्ता ही बदल लिया। कला और संस्कृति को बढ़ावा देने वाला एक गैर सरकारी संगठन अब उन्हें ढूंढ-ढूंढ कर निखारने की कोशिशों में जुटा है। नीरोज रंजन मिश्रा की रिपोर्ट

August 17, 2022
The Indian Tribal | Odisha Tribal Talent | Theatre Entertainment

रंगमंच हमें अक्सर जीवन की क्षणभंगुरता को दिखाता है, लेकिन ओडिशा में तो कलाकार स्वयं अल्पकालिक हैं। भुवनेश्वर स्थित एक गैर सरकारी संगठन नाट्य चेतना 1986 से आदिवासियों के बीच रंगमंच की संस्कृति को बढ़ावा देने का काम कर रहा है।

इस संगठन ने अनेक आदिवासी कलाकारों को मंच के लिए प्रशिक्षित किया है, जिनके माध्यम से 25 लंबे नाटकों और 50 से अधिक साइकिल अभियानों का मंचन किया गया।

नाट्य चेतना के सचिव डॉ. सुबोध पटनायक कहते हैं कि क्या, कब और कैसे गाना, नाचना और संगीत बजाना है, आदिवासी कलाकार जानते हैं। वे प्रशिक्षण के दौरान आसानी से अपनी योग्यता साबित भी करते हैं, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि वे बिना कोई पहचान हासिल किए कुछ समय बाद ही गायब हो जाते हैं।

साइकिल अभियान रंगमंच का एक ऐसा अभिनव रूप है, जहां नाट्य चेतना टीम छोटे-छोटे नाटकों के मंचन के लिए साइकिलों से गांव-गांव जाती है। दिन डूबने पर साइकिल चालक कलाकारों की यह टीम ठहर जाती है और ग्रामीणों को नाटक मंचन के लिए प्रेरित करती है। इस प्रकार यह टीम क्षेत्र की संस्कृति को पुनर्जीवित करने के बड़े लक्ष्य की दिशा में काम करती है। कई आदिवासी लोग इस टीम के साथ नाटक मंचन में शामिल होते हैं।

पटनायक का दुख गैरवाजिब नहीं है। रायगडा, अंगुल, क्योंझर, मयूरभंज और कंधमाल जिलों के 500 से अधिक युवा आदिवासी कलाकार ऐसे हैं, जिन्होंने अब तक नाट्य चेतना के साथ काम किया है, लेकिन आज उनमें से ज्यादातर इस मंच को छोडक़र चले गए और कभी वापस नहीं लौटे।

The Indian Tribal | Odisha Tribal Talent | Theatre Entertainment | drama based on bihanga bipaba story where Nillambar plays the roe of a monkey
आदिवासी कलाकारों द्वारा नाटक का मंचन

ऐसी ही कंधमाल की आदिवासी लडक़ी लकी हैं, जिन्होंने 2017-18 में भोपाल और कोलकाता में थिएटर ओलंपियाड में नाटक नियान में मुख्य भूमिका निभाई थी। जब उनसे संपर्क करने की कोशिश की गई तो उन्होंने यह कहते हुए बात करने से इनकार कर दिया कि वह अस्वस्थ हैं। लकी अभी खुर्दा में रहती हैं।

ऐसे बहुत से उदाहरण है। कुछ आदिवासी कलाकारों को घर में गरीबी के कारण पांव पीछे खींचने पड़ते हैं। कई लोग छोटे पर्दे पर हाथ आजमाते हैं और असफलता मिलने पर निराश होकर सब कुछ छोड़ देते हैं। बहुत से लोग ऐसे हैं जो रोजी-रोटी के लिए मजदूरी करने निकल जाते हैं, क्योंकि घर की जरूरतें कलाकार पर हावी हो जाती हैं।

कुछ आदिवासी कलाकार ऐसे भी हैं जो अपने पसंदीदा थिएटर के बारे में अधिक सकारात्मक रूप से बात करते हैं। अंगुल के रहने वाले गोंड आदिवासी उमाकांत बताते हैं कि वह भुवनेश्वर में एक आईटी कोर्स कर रहे हैं। वह पूरे आत्मविश्वास के साथ कहते हैं कि नौकरी मिलने के बाद वह अपने थिएटर को भी जारी रखेंगे।

बेहतर जीवन जीने की आस लिए आगे बढऩे वाले सैकड़ों अज्ञात कलाकारों में से एक है नबरंगपुर के उमरकोट शहर का नीलांबर मिरगन। यह पनिका आदिवासी तीन साल तक नाट्य चेतना से जुड़ा रहा, लेकिन फिर गायब हो गया। जब उनकी अनुपस्थिति के बारे में पूछा गया तो बताया कि वह अब चेन्नई की एक कंपनी में अस्थायी नौकरी कर रहा है। साथ ही साथ लोक रंगमंच पर अपना शोध भी कर रहा है।

हालांकि, कुछ ऐसे भी हैं जो अपने पसंदीदा थिएटर के बारे में अधिक सकारात्मक रूप से बात करते हैं। अंगुल के रहने वाले गोंड आदिवासी उमाकांत बताते हैं कि वह भुवनेश्वर में एक आईटी कोर्स कर रहे हैं। वह पूरे आत्मविश्वास के साथ कहते हैं कि नौकरी मिलने के बाद वह अपने थिएटर को भी जारी रखेंगे।

वर्ष 2011 में चटगांव में एक इंडो-बांग्लादेश प्रोडक्शन बाजे सेई घोंटा में उमाकांत की भूमिका को काफी सराहा गया था।

इसी प्रकार क्योंझर में संथाल जनजाति के कांग्रेस नायक थे। वर्ष 1997-98 में नाट्य चेतना के 28-दिवसीय यूरोप दौरे के दौरान नायक ने फ्रांस, इटली, बेल्जियम और लक्जमबर्ग में 23 शो किए। बाद में उन्होंने सेंटर फॉर यूथ एंड सोशल डेवलपमेंट के लिए कई शो की एंकरिंग की। पटनायक बताते हैं कि दुख की बात यह है कि सेरेब्रल मलेरिया होने के कारण उनका निधन हो गया।

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झारखण्ड स्थापना दिवस: बिरसा मुंडा, शिबू सोरेन पर लगेगी विशेष प्रदर्शनी

झारखण्ड अपनी स्थापना के 25 वर्ष, 15 नवंबर को पूरे कर रहा है। इस ऐतिहासिक अवसर पर राज्य सरकार द्वारा 'रजत जयंती' वर्ष को भव्य और यादगार बनाने का निर्णय लिया है। इसके अन्तर्गत राजधानी रांची के मोराबादी मैदान में 15 और 16 नवम्बर को दो दिवसीय विशेष महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस महोत्सव में झारखंड के सभी विभागों के स्टॉल लगाए जाएंगे, जहां आगंतुकों को सरकार की विभिन्न योजनाओं और उपलब्धियों की विस्तृत जानकारी प्राप्त होगी। महोत्सव का सबसे बड़ा आकर्षण भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती और  'दिशोम गुरु' शिबू सोरेन जी की जीवनी पर आधारित विशेष प्रदर्शनी होगी, जो झारखंड के इतिहास और संघर्ष को जीवंत करेगी। इसके साथ ही, एक इमर्सिव ज़ोन भी बनाया जाएगा, जहां विभिन्न विषयों पर फिल्में और जानकारी प्रदर्शित की जाएगी। इसके साथ ही सरकार की विभिन्न योजनाओं की विस्तृत जानकारी भी आम जनों के लिए रखी गई है जिसका लाभ  महोत्सव परिसर में  घूमते हुए लिया जा सकेंगे। यह महोत्सव आम जनों को झारखंड के अतीत का दर्शन कराएगा और साथ ही भविष्य की आशाओं और कल्पनाओं से जोड़ेगा।
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November 15, 2025

बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातु, खूंटी, में धरती आबा की 150वीं जयंती एवं राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन एवं केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री जुएल ओराम सम्मिलित हुए। The Indian Tribal की रिपोर्ट

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The Indian Tribal is India’s first bilingual (English & Hindi) digital journalistic venture dedicated exclusively to the Scheduled Tribes. The ambitious, game-changer initiative is brought to you by Madtri Ventures Pvt Ltd (www.madtri.com). From the North East to Gujarat, from Kerala to Jammu and Kashmir — our seasoned journalists bring to the fore life stories from the backyards of the tribal, indigenous communities comprising 10.45 crore members and constituting 8.6 percent of India’s population as per Census 2011. Unsung Adivasi achievers, their lip-smacking cuisines, ancient medicinal systems, centuries-old unique games and sports, ageless arts and crafts, timeless music and traditional musical instruments, we cover the Scheduled Tribes community like never-before, of course, without losing sight of the ailments, shortcomings and negatives like domestic abuse, alcoholism and malnourishment among others plaguing them. Know the unknown, lesser-known tribal life as we bring reader-engaging stories of Adivasis of India.

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